क्या भाजपा को भी झटका देंगे कांग्रेसी गोत्र के विधायक और मंत्री ?
- विजय बहुगुणा भी खुश नहीं हैं भाजपा में
- काऊ और हरक की जुगलबंदी नये समीकरणों का संकेत
- हरकसिंह अपनी शर्तों पर झुकाना चाहते हैं नेतृत्व को
- कांग्रेसी गोत्र के मंत्रियों-विधायकों पर नजर
- हरक बोले हम पर भाजपा छोड़ने का दबाव
- बड़ा विद्रोह करा सकते हैं हरक सिंह
–जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव नजदीक आते जाने के साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा के अन्दर का असन्तोष मुखर होता जा रहा है। इस असन्तोष के चलते अब राजनीतिक हलकों में कांग्रेस से बागी होकर भाजपा में शामिल हुये गुट को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। इस सम्बन्ध में पुराने कांग्रेसियों के गुट के विधायक उमेश शर्मा काऊ ने परोक्ष रूप से संकेत दे दिया है कि भाजपा में ही उनका भी गुट है और वह गुट मिल कर अपने भावी कदम को लेकर फैसला लेगा। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह ने काऊ के सुर में सुर मिला कर प्रदेश का राजनीतिक माहौल गरमा दिया है।
काऊ और हरक की जुगलबंदी नये समीकरणों का संकेत
हाल ही में उच्च शिक्षामंत्री धनसिंह रावत की उपस्थिति में रायपुर के विधायक उमेश शर्मा काऊ और क्षेत्रीय भाजपा नेता के बीच तीखी तकरार के बाद काऊ सीधे आला कमान से शिकायत करनेे दिल्ली जा पहुंचे। दिल्ली से लौट कर उन्होंने जो बयान दिये हैं वे उनकी नारजगी के स्पष्ट संकेत हैं और ये बयान सत्तारूढ भाजपा में आने वाले तूफान का संकेत माने जाने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक तो मार्च 2016 का इतिहास दोहराये जाने की आशंका तक प्रकट करने लगे हैं। खास कर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और काऊ की मुलाकात के बाद दानों के बयानों के निहितार्थ निकाले जाने लगे हैं। मार्च 2016 में जब 9 कांग्रेस विधायकों ने बगावत कर हरीश रावत सरकार को गिराने का प्रयास किया था तो उस राजनीतिक ड्रामे के मुख्य पात्र हरकसिंह रावत ही थे। हालांकि इन सभी 9 विधायकों के ऊपर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का हाथ था फिर भी विद्रोह का नेतृत्व हरक सिंह ही कर रहे थे।
विजय बहुगुणा भी खुश नहीं हैं भाजपा में
विजय बहुगुणा भी तब से भाजपा में स्वयं का उपेक्षित ही महसूस कर रहे हैं। हरक सिंह की त्रिवेन्द्र रावत से कभी नहीं निभी इसलिये त्रिवेन्द्र के कार्यकाल में ही हरक से कोई बड़ा कदम उठाये जाने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन नेतृत्व परिवर्तन के बाद तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर धामी का हरक के साथ संबंध तो अच्छे हैं लेकिन कर्मकार बोर्ड के अध्यक्ष के साथ विवाद में धामी का साथ न मिलने से हरक की नाराजगी फिर मुखर हो गयी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस में हरीश रावत दीवर की तरह खड़े न होते तो इन बागियों की वापसी पहले ही हो जाती। अब भी इनकी वापसी में हरीश रावत को ही रोड़ा माना जा रहा है। इंदिरा हृदयेश इन बागियों की वापसी की पक्षधर अवश्य थी मगर उनकी मृत्यु हो गयी।
हरकसिंह अपनी शर्तों पर झुकाना चाहते हैं नेतृत्व को
ऐसी भी चर्चा है कि हरक सिंह ऐसी परिस्थितियां पैदा करना चाहते हैं ताकि मुख्यमंत्री कर्मकार बोर्ड के अध्यक्ष को हटा दें। सत्याल के साथ उनके रिश्ते बहुत कड़ुवे हो चुके हैं। क्योंकि वह मंत्री के खिलाफ आरोपों को हवा दे रहे हैं। सत्याल ने हाइकोर्ट में भी मंत्री के खिलाफ आरोप लगाये हैं। सत्याल पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के करीबी माने जाते हैं, इसीलिये शुरू से उनकी हरक सिंह से नहीं बनीं। इसके साथ ही हरक सिंह अपनी पुत्र बधू सहित अपने गुट के कुछ लोगों के टिकट भी सुनिश्चित करना चाहते हैं। अगर काऊ विवाद बढ़ा और पूर्व कांग्रेसी बगावत पर उतर आये तो उन्हें रोकने के लिये भाजपा को ढुकना पड़ सकता है। उस स्थिति में हरकसिंह भाजपा आला कमान के साथ टिकट आदि मुद्दों को लेकर बारगेनिंग कर सकते हैं। ऐसी भी चर्चा है कि हरक सिंह अपनी पुरानी रणनीति के तहत इस बार एक नये निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसलिये वह जो भी सीट मांगेंगे उस पर मूल भाजपाई का दावा होना स्वाभाविक ही है।
कांग्रेसी गोत्र के मंत्रियों-विधायकों पर नजर
रायपुर क्षेत्र के नाराज भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ के ताजा बयान से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा के अन्दर पूर्व कांग्रेसियों का गुट अब भी बरकरार है और उनकी नियमित बैठकें भी चलती रहती है। इसी एकता में यह गुट अपनी शक्ति देख रहा है। काऊ ने ताजा बयान में कहा है कि ‘‘हम लोगों का भी अपना एक संगठन है। हम जब गये थे तो साथी थे। हम उनके साथ बात करके ही इस प्रकरण पर बात करेंगे। हमारे साथ कुछ मंत्री और विधायक भी है। उनको भी मैं अपना दर्द बता चुका हूं। अब वह भी बैठ कर जो निर्णय करेंगे मैं उस निर्णय के साथ हूं।’’ जाहिर है कि काऊ दिल्ली से सन्तुष्ट हो कर नहीं लौटे हैं।
हरक बोले हम पर भाजपा छोड़ने का दबाव
काऊ से मुलाकात के बाद कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का कहना था कि ‘‘ भाजपा में कुछ लोग ऐसे हैं जो कि पार्टी छोड़ने का दबाव बना रहे हैं। मैं उन सबसे कहना चाहता हूं कि वह पार्टी के हितैषी नहीं हैं। हम जितने भी लोग काग्रेस से भाजपा में आये, वे आज भी एक हैं। एक दूसरे के सुख-दुख के साथ हैं।’’ यह कह कर हरक ने बहुत ही चालाकी से भाजपा आला कमान को एक तरह से धमकी ही दे डाली कि सभी पूर्व कांग्रेसी पाला बदल सकते हैं और उनका पाला बदलना एण्टी इन्कम्बेंसी से आशंकित भाजपा को भारी पड़ सकता है।
बड़ा विद्रोह करा सकते हैं हरक सिंह
चुनावी साल में भाजपा में अन्य कई विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों के खिलाफ विरोध के सुर शुरू हो गए हैं। इससे पहले दून में ही राजपुर विधायक खजान दास के खिलाफ अंबेडकरनगर मंडल के कुछ पदाधिकारी भी अपनी नाराजगी जता चुके हैं। पौड़ी के विधायक मुकेश कोली के खिलाफ भी पार्टी के कुछ युवा कार्यकर्ता बगावती तेवर अपना चुके हैं, रुद्रप्रयाग विधायक भरत चौधरी के विरुद्ध हाल ही में एक गांव की महिलाएं उतर आई थी।
उल्लेखनीय है कि 18 मार्च 29016 को हरीश रावत के मुख्यमंत्री कार्यकाल में ठीक बजट पास कराते समय विजय बहुगुणा, हरकसिंह रावत, सुबोध उनियाल, प्रदीप बत्रा, उमेश शर्मा काऊकुंवर प्रणव चैम्पियन, शैलेन्द्र मोहन सिंघल, शैला रानी रावत एवं अमृता रावत ने विद्रोह कर दिया था। बाद में इन विधायकों के साथ रेखा आर्य भी शामिल हो गयी थी। इस विद्रोह के बदले भाजपा ने इन सभी बागियों को 2017 के चुनाव में टिकट दे दिये थे। हरक सिंह रावत पूर्व में भी हिंट दे चुके हैं कि कांग्रेसी गोत्र के 9 नहीं बल्कि कम से 30 विधायक हैं।