खतरनाक पुलों से गुजर रही हैं उत्तराखण्ड की जिन्दगियां

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  • लोगों को कैसे जोड़ेंगे खुद ही टूटने वाले पुल ?
  • देहरादून में पुल गिरने का सिलसिला जारी
  • बेहद खतरनाक हो गये उत्तराखण्ड के 235 पुल
  • सरकार की नाक के नीचे खतरनाक पुल
  • सीमान्त जिला चमोली में भी जर्जर पुल
  • रुद्रप्रयागटिहरी के पुलों की भी हालत खराब
  • सीमान्त उत्तरकाशी भी जर्जर पुलों के भरोसे
  • कुमाऊं मण्डल के पुल भी अपना ही बोझ ढोने में लाचार

 –जयसिंह रावत

सरकार की नाक के नीचे देहरादून के बीरपुर पुल हादसे के बाद अब देहरादून-ऋषिकेश नेशनल हाइवे पर रानीपोखरी का 57 साल पुराना पुल भारी वर्षा को नहीं झेल सका और उसका एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया। शुक्र है कि उसमें कोई बड़ी जनहानि नहीं हुयी लेकिन प्रदेश में ऐसे एक नहीं बल्कि सेकड़ों जर्जर पुल हैं जोकि बड़े हादसों को दावत दे रहे है। भारत-तिब्बत और नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के पुल भी अक्सर खड़े नहीं रह पा रहे हैं। यातायात को ढोने में असमर्थ इन सेकड़ों पुलों से गुजरना उत्तराखण्डवासियों के लिये जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है। स्वयं प्रदेश का लोक निर्माण विभाग ऐसे जर्जर पुलों की संख्या 235 बताता है। लेकिन चुनावी ताहफों की झड़ियां लगाने में व्यस्त राज्य सरकार का एक के बाद एक पुल हादसे भी नहीं झकझोर पा रहे हैं।

देहरादून में पुल गिरने का सिलसिला जारी

प्रदेश की राजधानी के बीरपुर क्षेत्र में 115 साल पुराने पुल के गिर जाने का हादसा लोग अभी भूले भी नहीं थे कि 27 अगस्त को देहरादून-ऋषिकेश नेशनल हाइवे पर 57 साल पुराना रानीपोखरी पुल ढह गया। इस हादसे में संयोग से भले ही कोई बड़ी जनहानि नहीं हुयी लेकिन अति व्यस्त नेशनल हाइवे पर इतना बड़ा हादसा ऑल वेदर रोड बनाने का दावा करने वाली सरकारों की आखें खोलन के लिये काफी है। देहरादून में 115 साल पुराना बीरपुर पुल गत 28 दिसम्बर 2018 को एक वाहन समेत नीचे गिर गया था जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी और 2 अन्य घायल हो गये थे। इससे पहले श्रीनगर गढ़वाल में मार्च 2012 में अलकनन्दा नदी पर बने पुल केगिरने से 6 लोगों की मौत और 18 अन्य घायल हो गये थे।

बेहद खतरनाक हो गये उत्तराखण्ड के 235 पुल

लोक निर्माण विभाग द्वारा कराये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के हजारों मोटर एवं पैदल पुलों में से कम से कम 235 पुलों की सुरक्षा मियाद या उनकी उम्र पूरी हो चुकी है। इन पुलों में से 71 की स्थिति अत्यन्त खराब है। इन बेहद जर्जर पुलों में अल्मोड़ा और चमोली के 9-9, देहरादून, पिथौरागढ़ और हरिद्वार में आठ-आठ, रुद्रप्रयाग में सात, बागेश्वर, नैनीताल और उत्तरकाशी में पांच-पांच , टिहरी में चार और उधम सिंह नगर के तीन पुल शामिल हैं जिनकी तत्काल मरम्मत या पुनर्निमाण की आवश्यकता है। इनमें से भी बेहद जर्जर 31 पुलों को लोनिवि ने उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता की श्रेणी में वर्गीकृत किया है। इस सूची में अलकनंदा नदी पर रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर 65 मीटर लंबा एक पुल भी शामिल है, जिसका उपयोग चार धाम यात्रा के लिए प्रतिदिन सैकड़ों तीर्थयात्री करते हैं। देहरादून के मालसी डियर पार्क के निकट देहरादून-मसूरी राजमार्ग वाला पुल भी बेहद खतरनाक सूची में है। राज्य सरकार के पास वोटरों को लुभाने के लिये खैरात बांटने के लिये तो धन है मगर जनजीवन की सुरक्षा के लिये पुलों की मरम्मत के लिये बजट नहीं है।

सरकार की नाक के नीचे खतरनाक पुल

सरकार की नाक के नीचे राजधानी देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में तीन दर्जन से अधिक छोटे-बड़े पुल जर्जर हालत में हैं। बड़ासी, भोपालपानी जैसे बड़े पुलों की एप्रोच रोड और पुस्तों को नुकसान पहुंचा है। बांदल घाटी, रायपुर व मालदेवता के ग्रामीण क्षेत्रों, मसूरी से लगे इलाकों, रानीपोखरी, डोईवाला व ऋषिकेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसे कई पुल हैं। चकराता, त्यूणी, कालसी, विकासनगर इलाकों में करीब एक दर्जन से ज्यादा पुलों पर लोग जान जोखिम में डाल कर आवाजाही कर रहे हैं।

सीमान्त जिला चमोली में भी जर्जर पुल

सीमान्त जिला चमोली में लगभग एक दर्जन पुल या तो जर्जर हालत में हैं या टूट चुके हैं। घाट ब्लॉक के सलबगड़ में नंदाकिनी नदी पर तागला-बूरा को जोड़ने वाला हल्का मोटर पुल जर्जर हालत में है। पोखरी ब्लॉक में बामनाथ गदेरे पर बना पुल 2018 में टूट गया था। यह नैल ऐथा से सांकरी इंटर कालेज जाने का मुख्य मार्ग है। वहीं, आलीशाल और ढामक ग्राम सभा और देवीखेत इंटर कालेज के बीच बनी डाट पुलिया तीन साल पहले क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसके अलावा मलारी के पास बुरांसखण्डा नामक स्थान पर, चाई और थैंग जाने के लिए गिवाली गदेरे में और टोलमा-सुराई थोटा मार्ग पर लामा गदेरे में पैदल पुल जर्जर हो चुके हैं

रुद्रप्रयागटिहरी के पुलों की भी हालत खराब

टिहरी जिले में प्रतापनगर के चौंधार, बूढ़ाकेदार और छतियारा मार्ग पर जखोलना गदेरे में बनाए गए मोटर वाहन पुल की स्थिति खस्ताहाल है। पिलखी पुल भी जर्जर स्थिति में है। जिससे लोगों को इन पुलों से जोखिमभरा सफर करना पड़ रहा है। भिलंगना ब्लाक के कोटी-झाला और तेड़ में निर्माणाधीन मोटर पुल का कार्य दो साल से पूरा नहीं होने के कारण ग्रामीणों को बरसात में जान जोखिम में डाल कर गदेरा पार करना पड़ रहा है।

केदारनाथ और केदारघाटी सहित तल्लानागपुर क्षेत्र को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाला 60 के दशक में निर्मित बेलणी मोटर पुल जर्जर हो चुका है। लंबे समय से पुल की उचित मरम्मत नहीं होने से इसकी हालत नाजुक बनी हुई है। जिले में रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर बांसवाड़ा में बसुकेदार क्षेत्र को जोड़ने वाले मोटर पुल, सौड़ी, चंद्रापुरी और कुंड में भी मोटर पुलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। दूसरी तरफ अगस्त्यमुनि के भीरी में काकड़ागाड़ में पुलिया भी खतरनाक सिथति में है। राजमाता झूला पुल की स्थित भी दयनीय बनी है।

सीमान्त उत्तरकाशी भी जर्जर पुलों के भरोसे

जर्जर पुलों में गंगोत्री मार्ग का गंगोरी पुल भी 2008 से लेकर अब तक 4 बार गिर चुका है। इसी जिले के मोरी ब्लाक की सुपिन नदी पर बने कलाप गांव के पुल के गिरने से लोग मुख्य मार्ग से लगभग 60 किमी दूर हो गये हैं और वहां खाने के लिये लोगों के पास आलू के सिवा कुछ नहीं हैं। इसी क्षेत्र में बिलसौड़-मातली, और नलोड़ा के पुल 2012 में टूट गये थे और वहां के लोग और स्कूली बच्चे ट्रालियों से नदी पार कर रहे हैं। ओसला का पुल टूटने से कई गावों के लिये मुख्य मार्ग तक की दूरी 10 किमी बढ़ गयी है। 2013 की आपदाग्रस्त केदार घाटी में भी अभी कई पुल बनने बाकी हैं। इस क्षेत्र में ट्राली से गिरने और लोगों के हाथ कटने की जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूरी पर स्वारीगाड़ पर नए पुल का निर्माण उत्तरकाशी से आगे ऑलवेदर रोड़ चौड़ीकरण कार्य रुकने से लटका हुआ है। जबकि चारधाम यात्रा के साथ भारत-चीन सीमा के लिए पहुंच मार्ग पर इस पुल का निर्माण सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। पौड़ी गढ़वाल में 2010 में नयार नदी में आई बाढ़ के कारण बडखोलू झूलापुल क्षतिग्रस्त हो गया था। बाढ़ से नदी में हुए कटाव के कारण एबैटमेंट झुकने के कारण पुल धनुष के आकार में एक तरफ झुक कर हादसे को दावत दे रहा है। जिले के रिखणीखाल ब्लाक में पुल न होने से राजकीय इंटर कालेज करतिया के लड़के-लड़कियों को उफनती मनदाल नदी पार करनी होती है।

 

कुमाऊं मण्डल के पुल भी अपना ही बोझ ढोने में बेजारअल्मोड़ा जिले में आधा दर्जन से अधिक मोटर और पैदल पुल जर्जर हैं। कुछ पुल औसत 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं। अल्मोड़ा और नैनीताल जिले को जोड़ने वाला 57 साल पुराना क्वारब पुल भी बदहाल है। द्वाराहाट में दूनागिरि मार्ग पर 1971 में बने पुल के पिलर की दीवर भी ठीक स्थित में नहीं है। चौखुटिया ब्लाक में 1913 में निर्मित नौगांव-आखोड़िया झूला पुल भी खस्ताहाल है। जैंती तहसील में तल्ला और मल्ला सालम को जोड़ने वाले ल्वाली पैदल पुल के भी पांच दशक पुराना होने से स्थिति ठीक नहीं है, जबकि सोमेश्वर तहसील में ग्राम पंचायत कांटली में कोसी पर बना सीसी पुल तीन साल से ध्वस्त है।

 

पिथौरागढ़ जिले में आपदा से मुनस्यारी, बंगापानी और धारचूला तहसील क्षेत्र में पांच पुल ध्वस्त हो गए हैं। इनमें सोबला में बना कंज्योती और दारमा घाटी को जोड़ने वाला पक्का पुल और सोबला में सीपीडब्लूडी का सीमेंट का अस्थाई पुल भी शामिल है। दराती-मतियाली सड़क में लोनिवि का पक्का पुल भी क्षतिग्रस्त हो गया है। चंपावत जिले में मां पूर्णागिरि क्षेत्र में मल्ला टाक में 2007 में बना 22 फुट लम्बा जर्जर हाल में है। बागेश्वर जिले में भकूना को पिथौरागढ़ के नाचनी से जोड़ने वाले ध्वस्त झूलापुल पर काम शुरू होना है। पुल न बनने से लोगों को ट्राली के सहारे आवागमन करना पड़ रहा है। वहीं कपकोट के नौकोड़ी में बने पैदल पुल का बेसमेंट क्षतिग्रस्त हो गया है। नैनीताल जिले में बेतालघाट के रातीघाट मोटर मार्ग पर घिरोली गधेरे पर बने पुल की दशा बेहद खराब है। भीमताल-रानीबाग में यातायात के बढ़ते दबाव को देखते हुए लोनिवि रानीबाग में पुराने पुल के पास ही टू लेन पुल बना रहा है।

लोगों को कैसे जोड़ेंगे खुद ही टूटने वाले पुल ?

पुल शब्द ही जोड़ने का पर्याय होता है। पुल केवल दो भूभागों को भौतिक रूप से ही नहीं बल्कि आबादी को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से भी जोड़ते हैं। इसलिये किसी भी जगह अगर एक पुल टूट जाता है तो समझिये कि उस क्षेत्र का दूसरे क्षेत्र से सम्पूर्ण सम्पर्क टूट गया। उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी क्षेत्र में ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां अगर पुल टूट गया तो समझो कि उस क्षेत्र का न केवल अपने जिले या प्रदेश से बल्कि समूचे देश से सम्पर्क टूट जाता है। कुछ दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में पुल टूटने पर स्थानीय लोगों को महीनों आलू जैसी स्थानीय उपज या वनोपज पर गुजारा करना पड़ जाता है। इसीलिये भारत-तिब्बत सीमा पर तैनात सैनिकों और आइटीबीपी जैसे अर्ध सैन्य बलों के लिये महीनों का राशन पहले ही पहुंचा दिया जाता है और आपात स्थिति में हेलीकाप्टरों से संकटापन्न सैनिकों को सीमा चौकियों से उठाया जाता है।

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