अमेरिका का टैरिफ झटका: भारतीय निर्यातकों के लिए नई चुनौती

-जयसिंह रावत
अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर हाल ही में लागू किए गए रिकॉर्ड-स्तरीय आयात शुल्क वैश्विक व्यापार समीकरणों को झकझोरने वाला कदम है। 25% मौजूदा शुल्क पर ऊपर से लगाए गए 25% दंडात्मक शुल्क ने कुल आयात कर को 50% तक पहुँचा दिया है। यह निर्णय रूस से तेल खरीदने के मुद्दे को कारण बनाकर लागू किया गया है, पर इसका असर सबसे अधिक भारतीय निर्यातकों और छोटे उद्योगों पर पड़ेगा।
भारत का अमेरिका को माल निर्यात 2024 में 79–80 अरब डॉलर के स्तर पर था। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और वस्त्र, रत्न-आभूषण, समुद्री उत्पाद, रसायन और इंजीनियरिंग वस्तुएँ इसके मुख्य हिस्से हैं। इस नये टैरिफ से इन क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा कठिन हो जाएगी।
निर्यात 40% तक घट सकता है
विश्लेषकों का अनुमान है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की कीमतें बढ़ने के कारण अगले 12–18 महीनों में निर्यात में 40% तक की गिरावट संभव है। उदाहरण के लिए, यदि भारतीय परिधान पर 62% शुल्क लगता है और वियतनामी परिधान पर 20%, तो अमेरिकी उपभोक्ता सस्ता विकल्प चुनेंगे। इससे विशेष रूप से छोटे व मध्यम उद्योग प्रभावित होंगे।
भारतीय रत्न-आभूषण उद्योग, जो अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भर है, को भी बड़ा नुकसान होगा। इसी प्रकार समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग वस्तुएँ, जहाँ पहले से मुनाफ़ा कम है, उनकी मांग भी घट सकती है।
रोजगार पर सीधा असर
भारत के निर्यात-आधारित उद्योग लगभग 1.5 करोड़ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार देते हैं। जब मांग घटेगी, तो उत्पादन घटाना पड़ेगा, जिससे रोजगार पर सीधा असर होगा। कपड़ा उद्योग, समुद्री उत्पाद उद्योग और कारीगर-आधारित ज्वैलरी सेक्टर सबसे पहले प्रभावित होंगे।
अमेरिका में भी उपभोक्ता कीमतों पर दबाव
टैरिफ सिर्फ़ भारत के लिए चुनौती नहीं है; इसका असर अमेरिकी उपभोक्ताओं और बाजारों पर भी होगा। अमेरिकी घरेलू अध्ययन बताते हैं कि इस तरह के टैरिफ का वास्तविक बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है। खुद अमेरिकी वित्तीय विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि 2008 जैसी मंदी की आशंका भले न हो, लेकिन खुदरा महंगाई और क्रेडिट डिफॉल्ट का खतरा बढ़ सकता है।
अमेरिका में पहले से ही “प्राइम” यानी उच्च क्रेडिट रेटिंग वाले उधारकर्ताओं में भी लोन चुकाने में कठिनाई की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे हालात में महंगे आयात उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति और खुदरा बाजार को और कमजोर कर सकते हैं।
राजनीतिक संदेश भी छिपा है
यह शुल्क सिर्फ व्यापार नीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक संकेत भी हैं। अमेरिकी प्रशासन ने इसे रूस से ऊर्जा खरीद को लेकर लागू किया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम अमेरिकी वार्ता-रणनीति का हिस्सा है। चीन पर भी 200% तक शुल्क बढ़ाने की धमकी दी गई है, लेकिन वहाँ मुद्दा “rare earth magnets” है, न कि रूसी तेल।
दरअसल, यह कदम यह संकेत देता है कि अमेरिका व्यापार नीतियों को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। भारत ने कृषि और डेयरी सेक्टर खोलने से इंकार किया, जिससे यह टकराव और बढ़ा।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
भारतीय सरकार ने संकेत दिया है कि वह अमेरिका के साथ बातचीत जारी रखेगी और साथ ही वैकल्पिक बाजार खोजने की दिशा में काम करेगी। विदेश व्यापार विभाग ने यूरोप, मध्य-पूर्व और अफ्रीका जैसे बाजारों में भारतीय उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर जोर देना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा, घरेलू उद्योगों के लिए राहत पैकेज पर भी चर्चा हो रही है। MSMEs को क्रेडिट गारंटी, ब्याज सब्सिडी और प्रोत्साहन दिए जाने की संभावना है, ताकि वे इस झटके से उबर सकें।
विश्व व्यापार संगठ का सहारा और कानूनी विकल्प
भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर इस कदम को चुनौती दे सकता है। WTO के नियमों के अनुसार, किसी देश पर दंडात्मक शुल्क लगाने के लिए ठोस आर्थिक या सुरक्षा कारण होने चाहिए। यदि यह साबित हो गया कि यह शुल्क राजनीतिक दबाव का साधन है, तो इसे WTO में चुनौती दी जा सकती है।
बाजार विविधीकरण की जरूरत
भारत के कुल निर्यात का लगभग 17-18% हिस्सा अमेरिका को जाता है। इस भारी निर्भरता को कम करने की आवश्यकता है। भारतीय उद्योग को यूरोप, अफ्रीका और ASEAN देशों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने पर ध्यान देना होगा।
साथ ही, भारतीय कंपनियों को उच्च मूल्य-वर्धित (value-added) उत्पादों की ओर बढ़ना होगा। यदि हम केवल श्रम-प्रधान, कम मूल्य वाले सामान बेचते रहेंगे, तो ऐसे झटकों से बचना कठिन होगा।
दीर्घकालिक सुधार का अवसर
हालांकि यह निर्णय एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह भारत के लिए संरचनात्मक सुधार का अवसर भी है। निर्यात-आधारित क्षेत्रों में आधुनिक उत्पादन तकनीक, डिजिटलीकरण और लॉजिस्टिक्स सुधार को प्राथमिकता देने से भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अधिक मजबूत स्थान हासिल कर सकता है।
इसके अलावा, घरेलू खपत बढ़ाने के लिए “मेक इन इंडिया” अभियान को वास्तविक धरातल पर और मजबूत करने की आवश्यकता है।
यह केवल एक आर्थिक झटका नहीं
अमेरिका का यह शुल्क निर्णय भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों का एक कठिन मोड़ है। यह केवल एक आर्थिक झटका नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अत्यधिक निर्भरता किसी भी बाजार पर जोखिम भरी हो सकती है। भारत को इस मौके का इस्तेमाल अपने व्यापारिक तंत्र को मजबूत करने, नए बाजार खोलने और निर्यात की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
सरकार की त्वरित कूटनीति, MSMEs के लिए राहत पैकेज, WTO में कानूनी चुनौती और बाजार विविधीकरण—ये चार कदम इस संकट को अवसर में बदल सकते हैं। यदि भारत इस चुनौती का सही जवाब देता है, तो यह न केवल निर्यात की रक्षा करेगा, बल्कि भारत को एक अधिक आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करेगा।
