हिमालय में बारिश के बदलते पैटर्न: जलवायु परिवर्तन का गंभीर संकेत

–प्रो. एस.पी. सती
पिछले 24 घंटे जम्मू-कश्मीर के लिए अत्यधिक गंभीर रहे। रांसी में 23 सेमी बारिश दर्ज की गई। यह लेख विशेष रूप से भूगोल, भूविज्ञान और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों तथा जिज्ञासु पाठकों के लिए उपयोगी होगा।
उत्तर भारत में बारिश मुख्यतः दो मौसम प्रणालियों से होती ह
1. दक्षिण-पश्चिम मानसून (South-West Monsoon)
2. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance)
आमतौर पर इन दोनों प्रणालियों के सक्रिय रहने का समय अलग-अलग होता है। पश्चिमी विक्षोभ मुख्यतः सर्दियों में सक्रिय रहता है, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसून गर्मियों से लेकर सितंबर तक वर्षा कराता है।
लेकिन कभी-कभी एक असामान्य मौसमीय स्थिति बनती है, जब मानसून सक्रिय रहने के दिनों में ही पश्चिमी विक्षोभ भी सक्रिय हो जाता है। इसके अलावा, यदि कम दबाव का क्षेत्र (Low-Pressure Zone) बन जाए और अरब सागर से भी अतिरिक्त नमी का प्रवाह हो जाए, तो तीन आर्द्र स्रोतों का यह दुर्लभ संयोजन पश्चिमी और मध्य हिमालय के बड़े हिस्से में एक साथ अत्यधिक वर्षा का कारण बनता है। यह असामान्य स्थिति लगभग एक सप्ताह तक बनी रह सकती है।
केदारनाथ आपदा 2013 इसी तरह की असामान्य मौसम स्थिति का परिणाम थी। उस समय कम दबाव का क्षेत्र उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊपर बना था, जिससे काली नदी से लेकर सतलुज तक एक साथ 16-17 नदियों में बाढ़ आई।
वर्तमान में भी स्थिति लगभग वैसी ही है, अंतर केवल इतना है कि इस बार कम दबाव का क्षेत्र संपूर्ण पश्चिमी हिमालय पर फैला है और कश्मीर क्षेत्र में अधिक सक्रिय है। यही कारण है कि इस समय कश्मीर से लेकर उत्तराखंड तक अधिकांश नदियाँ खतरे के निशान के पास या उससे ऊपर बह रही हैं। निचले मैदानी इलाकों में भी इसका व्यापक असर देखा जा रहा है, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है।
इसके अलावा, हाल के वर्षों में मानसून के आगमन और प्रस्थान का समय भी असामान्य हो गया है।
2013 में उत्तराखंड में मानसून लगभग डेढ़ हफ्ते पहले आ गया था।
2023 और 2024 में मानसून अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक बना रहा, यानी लगभग एक माह देर से समाप्त हुआ।
पहले ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश की घटनाएँ दुर्लभ थीं, लेकिन अब वहाँ भी लगातार भारी वर्षा दर्ज की जा रही है। यह संकेत है कि जलवायु परिवर्तन केवल तापमान में वृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र और जल चक्र को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है।
