शिक्षक दिवस: उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था का चिंताजनक सच – सुधार की पुकार

– जयसिंह रावत-
शिक्षक दिवस पर जब हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शिक्षकों के योगदान का सम्मान करते हैं, तब यह सवाल भी उठता है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था सचमुच शिक्षकों का मान बढ़ा रही है और छात्रों का भविष्य सुरक्षित कर रही है? देवभूमि कहलाने वाला उत्तराखंड, जो प्राचीन काल से शिक्षा का केंद्र रहा है, आज अपनी शिक्षा व्यवस्था की बदहाली से जूझ रहा है। पहाड़ी इलाकों में शिक्षकों की भारी कमी, स्कूलों का बंद होना, छात्रों का पलायन और सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों की ओर रुझान – ये समस्याएँ न केवल चिंताजनक हैं बल्कि राज्य के भविष्य को संकट में डाल रही हैं।
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था: एक गंभीर तस्वीर
राज्य में कुल 17,787 स्कूल हैं, लेकिन इनमें से 59% यानी 10,470 स्कूलों में कोई प्रिंसिपल ही नहीं है। सरकारी स्कूलों पर निर्भरता के बावजूद पहाड़ी जिलों की हालत और भी खराब है। यहां के 12,065 प्राथमिक स्कूलों में से 1,149 में एक भी शिक्षक नहीं है। 3,504 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक शिक्षक पूरे विद्यालय की जिम्मेदारी उठाता है। 263 स्कूलों में तो किसी भी विषय के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं है – इनमें से 249 स्कूल पहाड़ी जिलों में स्थित हैं।
क्या एक अकेला शिक्षक सभी विषय पढ़ाकर दर्जनों बच्चों का भविष्य गढ़ सकता है? यह न केवल शिक्षक पर अनुचित बोझ है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डालता है।
ट्रांसफर नीति और शिक्षकों की अनिच्छा
शिक्षकों की कमी का सबसे बड़ा कारण है – स्थानांतरण नीति और पहाड़ों में सेवा देने की अनिच्छा। हाल ही में सरकार ने एक नई नीति लागू की है, जिसके तहत खराब प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों को अनिवार्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में भेजा जाएगा। यह कदम सही दिशा में है, लेकिन पर्याप्त नहीं। आज भी पहाड़ी जिलों में 10,946 स्थायी पद रिक्त पड़े हैं। यह रिक्तता शिक्षा की जड़ों को खोखला कर रही है।
पहाड़ी स्कूलों की विकट स्थिति
पिथौरागढ़, पौड़ी और चमोली जैसे जिलों में सबसे अधिक एक-शिक्षक वाले स्कूल हैं। हैरानी की बात यह है कि प्राथमिक से ऊपरी प्राथमिक स्तर तक 180 स्कूल ऐसे हैं, जहां 242 शिक्षक केवल एक-एक छात्र को पढ़ा रहे हैं। पूरे राज्य में 8,324 कक्षाओं में केवल एक ही छात्र है, जबकि 19,643 कक्षाएँ पूरी तरह खाली हैं। कहीं शिक्षक नहीं, कहीं छात्र नहीं – यह शिक्षा व्यवस्था का मजाक नहीं तो और क्या है?
शिक्षा की कमी का सीधा असर प्रवासन पर पड़ता है। उत्तराखंड प्रवासन निवारण आयोग की रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा की कमी प्रवास का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। 15.2% लोग अपने गांव छोड़ने को मजबूर होते हैं क्योंकि बच्चों को पढ़ाने की सुविधा उपलब्ध नहीं है। 2018 से पहले 700 गांव पूरी तरह खाली हो गए थे और 3.83 लाख लोग पलायन कर चुके थे। 2018-22 के बीच 24 और गांव निर्जन हो गए, जिनमें पौड़ी, अल्मोड़ा और चमोली प्रमुख हैं।
स्कूल बंद होना: सबसे प्रभावित पौड़ी और अल्मोड़ा
2023-24 में पहाड़ी क्षेत्रों में 24 स्कूल बंद हो गए क्योंकि इनमें छात्रों की संख्या शून्य हो गई थी। पिथौरागढ़ में 21 प्राथमिक और जूनियर स्कूल बंद हुए, जबकि अल्मोड़ा और बागेश्वर में 30 स्कूलों पर ताले लग गए। इसका कारण है – प्रवास, शिक्षकों की कमी और घटती जन्म दर। कई स्कूलों को पास के केंद्रों में मर्ज किया गया, लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चों को लंबी और खतरनाक दूरी तय करनी पड़ रही है।
सरकारी से निजी स्कूलों की ओर पलायन
यह विडंबना है कि लोग मजबूर होकर महंगे निजी स्कूलों का सहारा ले रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 2023-24 से 2024-25 में सरकारी स्कूलों में नामांकन 4.6% घटा, जबकि निजी स्कूलों में 5.8% बढ़ा। उत्तराखंड में यह प्रवृत्ति और भी स्पष्ट है। चार वर्षों में सरकारी स्कूलों ने 1.46 लाख छात्र खो दिए, जबकि निजी स्कूलों में 77,000 छात्रों की वृद्धि हुई।
और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि स्वयं सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं। जब शिक्षक ही अपने सिस्टम पर भरोसा नहीं करते, तो आम जनता से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे सरकारी स्कूलों पर विश्वास करें?
सुधार की दरकार
शिक्षक केवल ज्ञान के प्रदाता नहीं, बल्कि समाज के निर्माता हैं। लेकिन उत्तराखंड में शिक्षकों की भारी कमी और असमान वितरण राज्य को अंदर से खोखला कर रहे हैं। प्रवासन रोकने के लिए शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना अनिवार्य है। इसके लिए आवश्यकता है – स्पष्ट और न्यायसंगत ट्रांसफर नीति, नए शिक्षकों की समयबद्ध भर्ती और स्कूलों का आधुनिकीकरण।
सरकार की नई ट्रांसफर नीति एक शुरुआत जरूर है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। सामूहिक प्रयास जरूरी है, जिसमें शिक्षक, समाज और सरकार सभी की भागीदारी हो। अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ शिक्षा से वंचित रह जाएँगी।
शिक्षक दिवस हमें यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि शिक्षा सबका अधिकार है, और इसे बचाना हमारी साझा जिम्मेदारी है।
