ब्लॉगशिक्षा/साहित्य

“बाबुओं” की वजह से महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन *बीएचयू* के प्रोफेसर न हो सके

– गोविंद प्रसाद बहुगुणा –

एक तो महामना मदनमोहन मालवीय जी थे जिन्होंने जगह- जगह से विद्वानों को इक्क्ठा कर विश्वविद्यालय की फैकल्टी तैयार की थी और एक ये “बाबू जी” रजिस्ट्रार महाशय थे, जिन्होंने एक पल में उनकी सारी मेहनत पर पानी फेरने का काम किया – यह किस्सा मैंने ममालवीय स्मृति ग्रंथ में ही पढ़ा था ।
BHU के भूतपूर्व छात्रों ने मिलकर मालवीय जी की स्मृति में एक ग्रन्थमाला का प्रकाशन किया । यह पुस्तक मुझे अपनी छोटी बहिन के सौजन्य से प्राप्त हुई । इसमें मैंने एक दिलचस्प संस्मरण पढ़ा जिसे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी ,के अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर (डॉ० ) सी० एन०मेनन ने लिखा है । प्रो० मेनन भी मालवीय जी की ही खोज थे, जो कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डी०लिट की उपाधि प्राप्त एक मेधावी छात्र थे।

प्रो० मेनन ने लिखते हैं कि- १९४० के आस- पास जब यहूदी समुदाय के लोग जर्मनी से पलायन कर दुनिया के अन्य देशों में शरण ले रहे थे , उस समय सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को अपनी सेवायें देने की इच्छा प्रकट करते हुए बनारस में रहने की इच्छा प्रकट की थी । उन्होंने उस समय वीएचयू के रजिस्ट्रार को इस सम्बन्ध में एक पत्र भेजा था ।

संयोगवश उस दौरान मालवीय जी और बीएचयू के उप कुलपति डॉ एस ० राधाकृष्णन बनारस से बहार प्रवास पर थे, अतः रजिस्ट्रार ने आइंस्टीन के पत्र के उत्तर में उनको एक लम्बा- चौड़ा छपा हुआ आवेदनपत्र का फार्म भेज दिया,कि इसे भरकर हमें भेज दीजियेगा।
आइंस्टीन ने उस आवेदनपत्र को भरकर भेजने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए खेदपूर्वक उस फॉर्म को वापस यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार को लौटा दिया ।

प्रवास से बनारस लौटने पर जब मालवीय जी को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने आइंस्टीन से क्षमा याचना करते हुए उन्हें विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद को सुशोभित करने का विनम्रतापूर्वक पअनुरोध पत्र भेज तो दिया था किन्तु तब तक बहुत देर हो गई थी, आइन्सटाइन अमेरिका के लिए प्रस्थान कर चुके थे । इस प्रकार बाबुओं की मूर्खता के कारण विश्वविद्यालय उस गौरव से बंचित हो गया कि उसने एक विश्वविख्यात वैज्ञानिक को नियुक्ति प्रदान की ।
ये वही आइंस्टीन थे जिन्होंने कहा था कि – “We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made”-GPB

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