थोड़ी दारू पीकर गाड़ी चलाना जुर्म नहीं, ज्यादा पीकर जुर्म है
नैनीताल हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: शराब की गंध मात्र से ड्रंक ड्राइविंग साबित नहीं, वैज्ञानिक प्रमाण जरूरी
नैनीताल, 09 सितंबर : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी वाहन चालक को केवल शराब की गंध के आधार पर नशे में ड्राइविंग करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ड्रंक ड्राइविंग साबित करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण, जैसे ब्रेथ एनालाइजर या ब्लड टेस्ट, आवश्यक है, जिसमें रक्त में अल्कोहल की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक पाई जाए। यह फैसला मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 की व्याख्या पर आधारित है और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशानिर्देश साबित हो सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला 2016 में रुद्रपुर के एसआईआईडीसीयूएल चौक पर हुई एक सड़क दुर्घटना से जुड़े मामले में आया। इस हादसे में 39 वर्षीय साइकिल सवार जय किशोर मिश्रा की मौत हो गई थी। मिश्रा पंतनगर स्थित नीम मेटल प्रोडक्ट्स लिमिटेड में कार्यरत थे और उनका मासिक वेतन 35,000 रुपये था। उनकी पत्नी, बच्चे और माता-पिता ने बीमा कंपनी से 75 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की थी।
जनवरी 2019 में ट्रायल कोर्ट ने बीमा कंपनी को करीब 21 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, लेकिन कंपनी को यह राशि वाहन चालक और मालिक से वसूलने का अधिकार भी दे दिया। इसका आधार यह था कि डॉक्टर ने कहा था कि चालक से “शराब की तेज गंध आ रही थी”। हालांकि, हाईकोर्ट में अपील पर इस फैसले को पलट दिया गया।
कोर्ट की टिप्पणियां और तर्क
उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक महरा ने फैसले में कहा कि बिना ब्लड या यूरिन टेस्ट के केवल गंध या संदेह के आधार पर नशे में ड्राइविंग साबित नहीं की जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ड्रंक ड्राइविंग तभी साबित होती है जब ब्रेथ एनालाइजर या ब्लड टेस्ट से सिद्ध हो कि चालक के रक्त में अल्कोहल की मात्रा 30 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर से अधिक है।
कोर्ट ने मामले में पाया कि दुर्घटना के बाद चालक का कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं किया गया था। इसलिए, ट्रायल कोर्ट का फैसला कि चालक नशे में था, निराधार था। परिणामस्वरूप, बीमा कंपनी को पूरा मुआवजा देने की जिम्मेदारी दी गई और उसे चालक या वाहन मालिक से राशि वसूलने का कोई अधिकार नहीं दिया गया। कोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा जमा बैंक गारंटी को भी रिलीज करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति महरा ने फैसले में कहा, “केवल शराब की गंध के आधार पर चालक को नशे में मान लेना कानूनी रूप से वैध नहीं है। वैज्ञानिक प्रमाण के बिना ऐसा अनुमान आधारहीन है।”
कानून की व्याख्या: मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185
यह फैसला भारत के मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 (संशोधित) की धारा 185 पर आधारित है, जो ड्रंक ड्राइविंग को परिभाषित करती है। धारा 185 के अनुसार:
- कोई व्यक्ति वाहन चलाते या चलाने का प्रयास करते समय: (a) यदि उसके रक्त में अल्कोहल की मात्रा ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट से 30 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर से अधिक पाई जाती है, या (b) यदि वह किसी ड्रग के प्रभाव में इतना असमर्थ है कि वाहन पर उचित नियंत्रण नहीं रख सकता,
तो वह अपराधी माना जाएगा।
पहली बार अपराध पर सजा: 6 महीने तक की कैद या 10,000 रुपये जुर्माना या दोनों। दूसरी बार: 2 साल तक कैद या 15,000 रुपये जुर्माना या दोनों। इसके अलावा, लाइसेंस निलंबन या रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट की व्याख्या के अनुसार, धारा 185 में “प्रभाव में होना” को साबित करने के लिए मात्र गंध या लाल आंखें जैसे लक्षण पर्याप्त नहीं हैं। वैज्ञानिक टेस्ट अनिवार्य है, क्योंकि गंध कई कारणों से आ सकती है, जैसे मुंह से आने वाली गंध या पास के व्यक्ति से। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और निर्दोष व्यक्ति दंडित न हों। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह फैसला बीमा दावों के संदर्भ में है, लेकिन आपराधिक मामलों में भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
फैसले के निहितार्थ
यह फैसला पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक सबक है कि ड्रंक ड्राइविंग के मामलों में वैज्ञानिक प्रमाण इकट्ठा करना अनिवार्य है। इससे मनमाने चालान या गिरफ्तारियों पर अंकुश लगेगा। साथ ही, बीमा कंपनियां अब केवल संदेह के आधार पर दावों से बच नहीं सकेंगी। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला ड्रंक ड्राइविंग के खिलाफ सख्ती को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि इसे और अधिक वैज्ञानिक बनाएगा।
उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाएं एक बड़ी समस्या हैं, और यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है। यदि आप इस फैसले से प्रभावित हैं, तो कानूनी सलाह लें।
