राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्षों से भरा है नेपाल का इतिहास
–जयसिंह रावत-
नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा देश जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन इसकी राजनीतिक यात्रा अस्थिरता, सत्ता संघर्ष और बार-बार होने वाले परिवर्तनों से भरी पड़ी है। 19वीं सदी से लेकर 2025 तक, नेपाल ने राजतंत्र की जड़ों से लेकर गणतंत्र की स्थापना तक का सफर तय किया है, लेकिन राजनीतिक स्थिरता हमेशा एक दूर का सपना बनी रही। यह लेख नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता के इतिहास को तथ्यों के आधार पर उजागर करता है, जिसमें सत्ता के लिए होने वाले संघर्ष, प्रमुख घटनाएं और उनके प्रभाव शामिल हैं।
राजतंत्र की जड़ें और प्रारंभिक संघर्ष
नेपाल का राजनीतिक इतिहास 1846 से शुरू होता है, जब राणा परिवार ने सत्ता हथिया ली और एक वंशानुगत प्रधानमंत्री प्रणाली स्थापित की, जो 1951 तक चली। इस दौरान राजा मात्र नाममात्र के रह गए, और राणाओं का निरंकुश शासन चला। 1951 में, प्रजातंत्र समर्थक आंदोलनों ने राणा शासन का अंत किया और संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की। हालांकि, यह स्थिरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी। 1961 में, राजा महेंद्र ने राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया और पंचायत प्रणाली लागू की, जो सत्ता को राजा के हाथों में केंद्रित करती थी। यह प्रणाली 1990 तक चली, जब जन आंदोलन ने राजा बीरेंद्र को राजनीतिक दलों पर से प्रतिबंध हटाने और बहुदलीय लोकतंत्र बहाल करने के लिए मजबूर किया।
1990 के बाद का दौर और भी उथल-पुथल भरा रहा। 1996 में, माओवादियों ने राजतंत्र और संसदीय प्रणाली के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया, जो एक दशक तक चला और 17,000 से अधिक लोगों की जान ले गया। इस विद्रोह का उद्देश्य एक जन गणतंत्र की स्थापना था। 2001 में, राजपरिवार में एक नरसंहार हुआ, जिसमें क्राउन प्रिंस ने राजा और अन्य सदस्यों की हत्या कर दी, जिससे राजनीतिक संकट और गहरा गया। 2005 में, राजा ज्ञानेंद्र ने माओवादी विद्रोह को दबाने के नाम पर प्रत्यक्ष शासन ग्रहण किया, लेकिन 2006 के जन आंदोलन ने संसद की बहाली कराई। अंततः, 2008 में राजतंत्र का अंत हुआ और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बना। राजा ज्ञानेंद्र अब काठमांडू में एक सामान्य नागरिक के रूप में रहते हैं।
गठबंधनों का खेल और बार-बार बदलती सरकारें
2008 के बाद, नेपाल ने 14 सरकारें देखीं, जिनमें से कोई भी अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। 2015 में नया संविधान अपनाया गया, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता जारी रही। प्रमुख राजनीतिक ताकतें—कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) (सीपीएन-यूएमएल), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) (सीपीएन-एमसी), और नेपाली कांग्रेस (एनसी)—के बीच सत्ता संघर्ष ने गठबंधन सरकारों को अस्थिर बना दिया।
के.पी. शर्मा ओली ने 2015, 2018, 2021 और 2024 में प्रधानमंत्री का पद संभाला, लेकिन हर बार गठबंधन टूटने से सरकार गिरी। 2022 के चुनावों के बाद, सीपीएन-एमसी के नेता पुष्प कमल दहाल (प्रचंड) प्रधानमंत्री बने, लेकिन 2024 में सीपीएन-यूएमएल और एनसी के गठबंधन ने उन्हें हटा दिया, और ओली चौथी बार प्रधानमंत्री बने। इस गठबंधन समझौते के तहत, ओली और एनसी नेता शेर बहादुर देउबा 2027 के चुनाव से पहले बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनेंगे। 1990 से बहुदलीय लोकतंत्र की बहाली के बाद से नेपाल ने 32 सरकारें देखी हैं, और गणतंत्र बनने के बाद 13।
अस्थिरता के कारण: दलगत गुटबाजी, व्यक्तिगत स्वार्थ
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता के मुख्य कारणों में दलगत गुटबाजी, व्यक्तिगत स्वार्थ, नेताओं की जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार शामिल हैं। माओवादी विद्रोह के बाद की मानवाधिकार मुद्दे और संक्रमणकालीन न्याय की कमी ने लोकतंत्र को कमजोर किया। बाहरी ताकतें, जैसे भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता, अमेरिका का प्रभाव और यूरोपीय संघ के हित, भी अस्थिरता को बढ़ावा देते हैं। राजतंत्रवादियों का पुनरुत्थान, जो संघीयता की आलोचना करते हैं और हिंदू राज्य की मांग करते हैं, गणतंत्र को चुनौती दे रहा है। हाल के घोटालों, जैसे गोल्ड स्कैम, ने जनता के असंतोष को बढ़ाया है।
आर्थिक अनिश्चितता और विकास में बाधा
यह अस्थिरता नेपाल की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। 2024 में 4% की वृद्धि हुई, लेकिन निवेश की कमी, राजस्व संग्रह की समस्या और बैंकिंग सेक्टर की कमजोरी बनी हुई है। आईएमएफ की ऋण सुविधा 2025 में समाप्त हो रही है, और अमेरिकी सहायता में कटौती ने भारत व चीन पर निर्भरता बढ़ा दी है। असमानता, बेरोजगारी, प्रवासन और जलवायु संकट जैसे मुद्दे अनसुलझे हैं, जो राजनीतिक अस्थिरता से और गहराते हैं।
हाल की घटनाएं: 2025 में बढ़ती चुनौतियां
2025 में अस्थिरता चरम पर पहुंच गई। मार्च में, काठमांडू में राजतंत्र समर्थकों की रैली हिंसक हो गई, जिसमें दो मौतें हुईं और कई घायल हुए। अप्रैल में, ऋण माफी की मांग करने वाले कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे। सितंबर 9, 2025 को, प्रधानमंत्री ओली ने भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया, जो सोशल मीडिया प्रतिबंध से शुरू हुए थे (जो बाद में हटा लिया गया)। सेना की गश्त और कर्फ्यू ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया। राजतंत्रवादी, भारतीय ताकतों के कथित समर्थन से,全国 स्तर पर विरोध की योजना बना रहे हैं, जबकि वामपंथी दल गणतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट हो रहे हैं।
स्थिरता की तलाश में एक राष्ट्र
नेपाल का राजनीतिक इतिहास सत्ता संघर्ष की एक अंतहीन कहानी है, जो जनता की आकांक्षाओं को कुचलती रही है। राजतंत्र से गणतंत्र तक का सफर क्रांतिकारी था, लेकिन अस्थिर सरकारें और भ्रष्टाचार ने विकास को बाधित किया। यदि नेपाल को स्थिरता चाहिए, तो नेताओं को जवाबदेही, एकता और जन-केंद्रित नीतियों की ओर बढ़ना होगा। अन्यथा, यह अस्थिरता न केवल आर्थिक संकट को जन्म देगी, बल्कि सामाजिक एकता को भी खतरे में डाल देगी। नेपाल की जनता, जो बार-बार आंदोलनों से बदलाव लाई है, फिर से उम्मीद की किरण बन सकती है।

