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क्या सोनिया नागरिक बनने से पहले मतदाता थीं? : अदालत ने जांच याचिका खारिज की

 

नई दिल्ली 12  सितम्बर : एक दिल्ली अदालत ने गुरुवार को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्हें 1983 में भारतीय नागरिकता हासिल करने से तीन साल पहले ही मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया था।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौधरी ने कहा कि नागरिकता का मुद्दा पूरी तरह से केंद्र सरकार के “विशेष संवैधानिक और वैधानिक अधिकार क्षेत्र” के अंतर्गत आता है। उन्होंने कहा, “इस तरह की प्रक्रिया, वास्तव में कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान है, जिसमें किसी नागरिक या साधारण विवाद को आपराधिक मामले का रूप देकर केवल ऐसा अधिकार-क्षेत्र बनाने की कोशिश की जाती है जो अस्तित्व में ही नहीं है।”

अदालत ने कहा कि यह शिकायत इस अदालत को ऐसे मामलों पर अधिकार देने के लिए तैयार की गई थी, जो कानूनी रूप से अस्थिर, सारहीन और इस मंच के अधिकार क्षेत्र से बाहर थे। अदालत ने टिप्पणी की, “ऐसा हथकंडा केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसे यह अदालत स्वीकार नहीं कर सकती।”

यह शिकायत अधिवक्ता विकास त्रिपाठी, केंद्रीय दिल्ली कोर्ट बार एसोसिएशन (राउस एवेन्यू कोर्ट) के उपाध्यक्ष ने दायर की थी। त्रिपाठी की ओर से अधिवक्ता पवन नारंग ने दावा किया कि जनवरी 1980 में गांधी का नाम नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता के रूप में दर्ज किया गया था, जबकि वे भारतीय नागरिक नहीं थीं। उन्होंने “कुछ जालसाजी” और एक लोक प्राधिकरण के “धोखा खाने” का आरोप लगाया।

हालाँकि, अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने केवल एक आपराधिक कानून प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की थी ताकि इस अदालत को ऐसे मामले की सुनवाई के लिए राज़ी किया जा सके, जो इसके अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं।

अदालत ने कहा, “रिकॉर्ड की गई सामग्री की जांच से पता चलता है कि धोखाधड़ी और जालसाजी से संबंधित अपराधों को लागू करने का प्रयास किया गया है ताकि इस मंच को अधिकार क्षेत्र मिल सके। लेकिन कथित अपराधों को साबित करने के लिए आवश्यक बुनियादी तत्व पूरी तरह अनुपस्थित हैं।”

अदालत ने यह भी कहा कि “सिर्फ खोखले आरोप, जो धोखाधड़ी या जालसाजी के आवश्यक विधिक तत्वों के बिना लगाए गए हों, किसी ठोस आरोप का स्थान नहीं ले सकते। याचिका केवल मतदाता सूची के एक अंश पर आधारित थी, जो 1980 की एक अप्रमाणित मतदाता सूची के अंश की फोटोकॉपी की फोटोकॉपी थी।”

शिकायत की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा, “वास्तव में इस प्रकार का कदम कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के समान है, जिसमें एक सामान्य नागरिक विवाद को आपराधिक मामले का रूप देकर ऐसा अधिकार क्षेत्र बनाने की कोशिश की जाती है, जो अस्तित्व में ही नहीं है।”

दिल्ली की अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसे नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर निर्णय देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह केंद्र सरकार के विशेष संवैधानिक और वैधानिक अधिकार क्षेत्र में आता है।

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