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चिंताजनक :  भारत में हर साल 1 लाख लोग करते हैं आत्महत्या 

India accounts for a third of global female suicides annually and nearly a fourth of male suicides. On average, more than 100,000 lives are lost to suicide in India each year. The underlying factors include: In India, the National Crime Records Bureau (NCRB) statistics showed a consistent, concerning rise in suicide rates from 9.9 per lakh population in 2017 to 12.4 per lakh population in 2022 . The incidence rates of suicide vary across states, ranging from 0.6 per 100,000 population in Bihar to 43.1 per 100,000 population in Sikkim. The southern cities of Vijayawada (42.6 per 100,000 population) and Kollam (42.5 per 100, 000 population) reported the highest rates in 2022.

हर साल, विश्व स्तर पर 727,000 से अधिक लोग आत्महत्या से मरते हैं (2021 के आँकड़े), और प्रत्येक मृत्यु के लिए, अनुमानित 20 आत्महत्या के प्रयास किए जाते हैं। 2021 में, विश्व स्तर पर 15-29 वर्ष की आयु के लोगों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण आत्महत्या थी, जो व्यापक हस्तक्षेप रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। दुनिया भर में साल भर होने वाली कुल आत्महत्याओं में भारत में एक तिहाई महिलाओं की और लगभग एक चौथाई संख्या पुरुषों की होती है। औसतन, भारत में हर साल 100,000 से ज़्यादा लोग आत्महत्या से अपनी जान गँवा देते हैं। भारत में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों के अनुसार, 2017 में प्रति लाख जनसंख्या पर 9.9 की दर से आत्महत्याओं में लगातार वृद्धि देखी गई, जो 2022 में बढ़कर प्रति लाख जनसंख्या पर 12.4 हो गई।

 

 

उषा रावत

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस, जो हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है, वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है जहां हम आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए जागरूकता बढ़ा सकते हैं, करुणा को प्रोत्साहित कर सकते हैं और सामूहिक कार्रवाई की दिशा में कदम उठा सकते हैं। इस दिवस की शुरुआत 2003 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (आईएएसपी) द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के सहयोग से की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह संदेश फैलाना है कि आत्महत्या रोकी जा सकती है। 2024-2026 की त्रैवार्षिक थीम “आत्महत्या पर नैरेटिव को बदलना” है, जो हानिकारक मिथकों को चुनौती देने, कलंक को कम करने और खुली बातचीत को बढ़ावा देने पर जोर देती है। इस संदर्भ में, भारत में आत्महत्याओं से होने वाली मौतें एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल औसतन 100,000 से अधिक लोग आत्महत्या से अपनी जान गंवा देते हैं। वैश्विक स्तर पर, 2021 में 727,000 से अधिक मौतें आत्महत्या से हुईं, और प्रत्येक मौत के लिए लगभग 20 प्रयास होते हैं। 15-29 वर्ष की आयु वर्ग में यह मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। भारत में यह समस्या और भी गंभीर है, जहां दुनिया भर की कुल आत्महत्याओं में एक तिहाई महिलाओं और एक चौथाई पुरुषों की हिस्सेदारी है। इस लेख में हम भारत में आत्महत्याओं की व्यापकता, ट्रेंड, प्रमुख जनसांख्यिकी, सरकारी पहलों और रोकथाम के उपायों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जो निराशा से परे आशा की दिशा में मिलकर काम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

भारत में आत्महत्याओं की व्यापकता और ट्रेंड

भारत में आत्महत्याओं की दर में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। एनसीआरबी के अनुसार, 2017 में प्रति लाख जनसंख्या पर 9.9 की दर थी, जो 2022 में बढ़कर 12.4 हो गई। यह वृद्धि सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारकों की जटिलता को दर्शाती है। मुख्य कारणों में पारिवारिक समस्याएं, आर्थिक संकट, स्वास्थ्य मुद्दे, शिक्षा संबंधी दबाव और मानसिक स्वास्थ्य विकार शामिल हैं। विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखें तो, यह ट्रेंड शहरीकरण, बेरोजगारी और सामाजिक अलगाव की बढ़ती समस्या से जुड़ा है। उदाहरण के लिए, युवा वर्ग में शिक्षा और करियर संबंधी तनाव आत्महत्या के प्रयासों को बढ़ावा देता है, जैसा कि डब्लूएचओ के आंकड़ों से स्पष्ट है जहां 15-29 आयु वर्ग में यह प्रमुख मौत का कारण है।

भौगोलिक भिन्नताएं भी चिंताजनक हैं। बिहार में प्रति 100,000 जनसंख्या पर मात्र 0.6 की दर है, जबकि सिक्किम में यह 43.1 तक पहुंच जाती है। 2022 में, दक्षिणी शहरों जैसे विजयवाड़ा (42.6) और कोल्लम (42.5) में सबसे ऊंची दरें दर्ज की गईं। यह असमानता क्षेत्रीय कारकों जैसे कृषि संकट (दक्षिण भारत में), सांस्कृतिक दबाव और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जुड़ी है। विश्लेषण से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्याएं (जो कुल का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं) फसल विफलता और कर्ज से प्रभावित होती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में कार्यस्थल तनाव और अकेलापन प्रमुख हैं। यदि हम इन ट्रेंड्स का गहन विश्लेषण करें, तो पता चलता है कि कोविड-19 महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य संकट बढ़ा है, जिसने अलगाव को बढ़ावा दिया और आत्महत्या दरों में उछाल लाया। हालांकि, इन आंकड़ों की सीमा यह है कि कई मामले रिपोर्ट नहीं होते, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, जिससे वास्तविक संख्या और भी अधिक हो सकती है।

प्रमुख जनसांख्यिकी और प्रभावित समूह

जनसांख्यिकीय दृष्टि से, भारत में महिलाओं की आत्महत्या दर वैश्विक औसत से अधिक है, जो कुल वैश्विक महिला आत्महत्याओं का एक तिहाई हिस्सा है। पुरुषों में यह एक चौथाई है। युवा, विशेषकर किशोर और युवा वयस्क, सबसे अधिक प्रभावित हैं। डब्लूएचओ के अनुसार, 15-29 आयु वर्ग में यह मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। विश्लेषण से स्पष्ट है कि लिंग-आधारित असमानताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं: महिलाओं में घरेलू हिंसा, विवाह संबंधी दबाव और सामाजिक अपेक्षाएं प्रमुख कारक हैं, जबकि पुरुषों में आर्थिक जिम्मेदारियां और असफलता का डर। किशोरों में स्कूल दबाव, परीक्षा तनाव और सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, मनोदर्पण जैसी पहलों का फोकस छात्रों पर है, जो इस समूह की कमजोरी को स्वीकार करता है। विश्लेषणात्मक रूप से, इन समूहों पर ध्यान केंद्रित करने से रोकथाम रणनीतियां अधिक प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन कलंक (स्टिग्मा) के कारण कई लोग मदद नहीं मांगते, जो समस्या को जटिल बनाता है।

सरकारी पहलें और राष्ट्रीय रणनीति

भारत ने 2022 में अपनी पहली राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (एनएसपीएस) शुरू की, जिसका लक्ष्य बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई के माध्यम से 2030 तक आत्महत्या मौतों को 10% कम करना है। यह रणनीति जागरूकता, हस्तक्षेप और अनुसंधान पर आधारित है। प्रमुख पहलों में टेली-मानस (टेली मेंटल हेल्थ असिस्टेंस एंड नेटवर्किंग अक्रॉस स्टेट्स) शामिल है, जो 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 53 केंद्रों के साथ काम करता है और दस लाख से अधिक कॉलों को संभाला है। यह दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंच बढ़ाता है, जहां पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं। जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) 767 जिलों में सामुदायिक स्तर पर संकट देखभाल प्रदान करता है, जबकि राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) और स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम युवाओं पर फोकस करते हैं।

मनोदर्पण, शिक्षा मंत्रालय द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत शुरू की गई, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करती है। इसके घटक जैसे वेब पोर्टल (संसाधन, एफएक्यू, वीडियो), 24×7 टोल-फ्री हेल्पलाइन (8448440632), काउंसलर डायरेक्टरी, ’21वीं सदी के कौशल की हैंडबुक’ और इंटरैक्टिव प्लेटफॉर्म (चैटबॉट्स, ऐप्स) व्यापक सहायता देते हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि ये पहलें प्रभावी हैं, क्योंकि वे कलंक को कम करती हैं और पहुंच को बढ़ाती हैं। उदाहरण के लिए, टेली-मानस ने ग्रामीण क्षेत्रों में मदद पहुंचाई, जहां आत्महत्या दर ऊंची है। हालांकि, चुनौतियां जैसे प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी और जागरूकता का अभाव बनी हुई हैं। 1.78 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का एकीकरण एक सकारात्मक कदम है, जो स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करता है।

विशेष अभियान और सामुदायिक प्रयास

2024 में, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर एक जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें स्टेशनों पर बैनर, डिजिटल डिस्प्ले और सोशल मीडिया पर संदेश जैसे #NeverGiveUp और #ChooseToLive शामिल थे। यह अभियान यात्रियों तक पहुंचकर करुणा और सहयोग को बढ़ावा देता है। विश्लेषणात्मक रूप से, ऐसे अभियान कलंक को कम करने में सफल होते हैं, क्योंकि वे सार्वजनिक स्थानों पर बातचीत शुरू करते हैं। हालांकि, इनकी प्रभावशीलता मापने के लिए लंबी अवधि के अध्ययन की आवश्यकता है। सामुदायिक स्तर पर, व्यक्ति मदद कर सकते हैं: सुनना, सहानुभूति दिखाना, मदद की पेशकश करना और हेल्पलाइनों को प्रचारित करना।

आगे की राह और विश्लेषण

भारत का बहु-स्तरीय दृष्टिकोण सराहनीय है, लेकिन विश्लेषण से स्पष्ट है कि 10% कमी का लक्ष्य हासिल करने के लिए और अधिक निवेश चाहिए। चुनौतियां जैसे कलंक, सेवाओं की असमान पहुंच और आर्थिक कारक बाधा हैं। सकारात्मक पक्ष यह है कि पहलें जैसे मनोदर्पण और टेली-मानस डिजिटल युग में प्रभावी हैं, विशेषकर युवाओं के लिए। भविष्य में, डेटा-संचालित हस्तक्षेप, जैसे क्षेत्रीय ट्रेंड्स पर आधारित कार्यक्रम, आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए, सिक्किम और दक्षिणी शहरों में विशेष फोकस से दरें कम हो सकती हैं। कुल मिलाकर, मिलकर काम करने से हम निराशा से परे आशा की ओर बढ़ सकते हैं।

जटिल समस्या, लेकिन रोकथाम संभव

भारत में आत्महत्याओं से मौतें एक जटिल समस्या हैं, लेकिन रोकथाम संभव है। राष्ट्रीय रणनीति और पहलों से प्रगति हो रही है, लेकिन सामूहिक प्रयासों से ही हम 2030 के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है: बातचीत शुरू करें, मदद मांगें और दें। #NeverGiveUp का संदेश हमें याद दिलाता है कि जीवन चुनौतीपूर्ण है, लेकिन समर्थन से हम जीत सकते हैं।

 

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