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प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आपदा राहत राशि को हरीश रावत ने पीड़ितों का उपहास बताया

 

देहरादून, 12 सितम्बर। उत्तराखंड की भीषण आपदा पर केंद्र सरकार की ओर से घोषित केवल ₹1,200 करोड़ की राहत राशि को कांग्रेस ने “ऊँट के मुँह में जीरा” बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। राजीव भवन में शुक्रवार को आयोजित संयुक्त प्रेस वार्ता में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सबसे तीखे स्वर में कहा कि यह राशि न केवल आपदा पीड़ितों की उम्मीदों से बहुत कम है, बल्कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत ₹5,702 करोड़ के नुकसान के आकलन के भी साथ अन्याय है। उन्होंने साफ चेतावनी दी कि यदि केंद्र और राज्य ने प्रभावितों के पुनर्वास, कर्ज माफी और पर्याप्त सहायता राशि की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो कांग्रेस बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेगी।

राष्ट्रीय नीति की जरूरत पर जोर

रावत ने कहा कि राज्यवासियों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री आपदा का जायजा लेने के बाद हिमालयी क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही आपदाओं—बादल फटना, ग्लेशियर पिघलना और भूस्खलन—से निपटने के लिए कोई ठोस राष्ट्रीय नीति या कम से कम उसके संकेत देंगे। लेकिन प्रधानमंत्री न तो इस दिशा में कुछ बोले और न ही कोई रणनीति सामने रखी। “प्रधानमंत्री जी यहां कई बार तपस्या करने आए, पर हिमालयी क्षेत्र के भविष्य पर बोलना जरूरी नहीं समझा। यह निराशाजनक और दुखद है,” रावत ने कहा।

उन्होंने याद दिलाया कि यूपीए सरकार के समय जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आठ राष्ट्रीय मिशन शुरू हुए थे, जिनमें से एक मिशन मध्य हिमालय क्षेत्र के लिए भी था। “आज उस पर कोई चर्चा नहीं होती, न ही कोई प्रगति दिखती है। जबकि हिमालयी राज्यों की आजीविका, संस्कृति और अस्तित्व ही दांव पर लगे हैं,” उन्होंने जोड़ा।

पुनर्वास व राहत पर सवाल

रावत ने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों — भटवाड़ी, हर्षिल, थराली और सोल गांव पट्टी के 16 गांवों — में खेत, बगीचे, होमस्टे और घर तबाह हो चुके हैं। कई परिवार कर्ज में डूब गए हैं और लगातार खतरे की जद में हैं। “2013 की आपदा में हमारी सरकार ने प्रभावितों को 5 लाख की सहायता दी थी। 12 साल बाद भी वही राशि क्यों? निर्माण लागत और महंगाई कई गुना बढ़ चुकी है। राहत के मानक धामी युग के अनुसार बदले जाने चाहिए,” रावत ने कहा। उन्होंने मांग की कि प्रभावितों का कर्ज तत्काल माफ हो और उनकी आजीविका को पहले जैसी स्थिति में पुनर्जीवित किया जाए।

सड़क निर्माण और पर्यावरणीय संवेदनशीलता

पूर्व मुख्यमंत्री ने चारधाम परियोजना और ऑल वेदर रोड के निर्माण तरीकों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पहाड़ों को विस्फोटकों से तोड़ने और मलवा नीचे फेंकने की नीति आपदा को और भयावह बना रही है। “हमने अपने समय पर तय किया था कि मलबा केवल डंपिंग जोन में डाला जाएगा। आज उस पर कोई पालन नहीं हो रहा है,” उन्होंने आरोप लगाया।

मलिन बस्तियों पर कांग्रेस का आक्रोश

प्रेस वार्ता में मलिन बस्तियों का मुद्दा भी उठा। रावत और प्रीतम सिंह ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ‘एलिवेटेड रोड’ के नाम पर विधानसभा में पारित मलिन बस्ती संरक्षण कानून को दरकिनार कर रही है। “एक्ट को विधानसभा ने पारित किया है, उसे कोई ऑर्डिनेंस खत्म नहीं कर सकता। यह असंवैधानिक है,” रावत ने कहा। उन्होंने दावा किया कि मलिन बस्तियों में लाल निशान लगाकर लोगों को डराने और उगाही करने का वातावरण बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने साफ चेतावनी दी कि यदि यह उत्पीड़न बंद नहीं हुआ तो राज्यव्यापी आंदोलन होगा।

कांग्रेस का वादा

प्रीतम सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा मलिन बस्तियों और आपदा पीड़ितों के साथ खड़े होकर राहत और पुनर्वास सुनिश्चित किया है। उन्होंने केंद्र की राहत को “निराशाजनक” बताते हुए कहा कि राज्य सरकार को और मजबूती से पैरवी करनी चाहिए।

कांग्रेस ने केंद्र की राहत राशि को अपर्याप्त बताते हुए राष्ट्रीय नीति, प्रभावितों के पुनर्वास और मलिन बस्तियों की सुरक्षा की माँग तेज कर दी है। साथ ही साफ कर दिया है कि यदि सरकार ने कदम नहीं उठाए, तो पार्टी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेगी।

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