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आखिर पौड़ी क्यों नहीं बन पाई पर्यटन नगरी

-डा0 योगेश धस्माना –

पौड़ी की इसे बदकिस्मती न कहे तो ओर क्या,बेपनाह खूबसूरती विशाल हिमालय की पर्वत श्रृंखला,उसके सामने उदात्त भाव से पसरी हुई पौड़ी के सौंदर्य से अभिभूत हो कर डोर्नियर जहाज से पौड़ी के ऊपर उड़ान भरते हुए 1986 में विदेशी ओर स्वदेशी पत्रकारों के दल ने कहा था, कि एक तरफ हिमालय ओर पौड़ी को एक साथ आसमान से नीचे देखना,किसी स्वर्ग से कम नहीं था।एक पल तो पौड़ी को निहारते हुए उन्हें लगा कि काश उनका जहाज कुछ देर आकाश में ठहर जाता ओर वे लोग इसके सौंदर्य को कुछ देर ओर निहार सकते,पर ये हो नहीं सका।
इसी तरह 1994, में भारत में अमेरिकी राजदूत फ्रैंक वाइजनर पौड़ी गाडौली पुरानी टी एस्टेट में रुके थे।एक दिन उन्होंने अपने बच्चे के साथ खिरसू बुवाखाल के बीच साइक्लिंग कर इसे फॉरेस्ट एडवेंचर की खूबसूरत जगह बताया था।

ठीक इसी तरह 1989 में भारत सरकार में पर्यटन सचिव रहे,जो पौड़ी में 1960, में जिलाधिकारी ओर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव रहे, बी के., गोस्वामी दिल्ली से बद्रीनाथ हेलीकॉप्टर से जा रहे थे।पौड़ी के ऊपर उड़ान भरते हुए उन्होंने पायलट से पूछा कि यह जगह नीचे कौन सी दिखाई दे रही ,तब उनके पायलट ने बताया, कि उनका चॉपर पौड़ी के ऊपर से गुजर रहा है,तो उनकी आँखें इसकी याद में भर आई,उन्होंने पायलट से कहा कि उन्हें पौड़ी में उतरना है,जब तक प्रशाशन से इसकी अनुमति मिलती,तब तक पायलट ने हेलीकॉप्टर को कंडोलिया मैदान पर सकुशल उत्तर दिया।जिलाधिकारी राजीव कुमार की अनुपस्थिति में परगना अधिकारी डी एस.भंडारी ने उनकी आगवानी की। दरअसल गोस्वामी जी को बद्रीनाथ जी के दर्शन के बाद वापसी में श्रीनगर में श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेना था। पौड़ी आने का इनका कोई कार्यक्रम ही नहीं था।
रात तक पौड़ी कमिश्नर एस के दास भी उनसे मिलने आ गए।देर शाय तक डी एम राजीव आ गए।जसपाल नेगी जी उनसे मिलन सर्किट हाउस में मिले।
पौड़ी के पुराने लोगों एडवोकेट शंकर सिंह नेगी,ब्रिगेडियर लक्ष्मण सिंह नेगी कोटद्वार के पत्रकार धूलिया जी,घनानंद बहुगुणा के बारे में जसपाल भाई जी ने जानकारी दी कि अब ये लोग नहीं रहे।तब उन्होंने मेरे पिताजी के बारे में पूछा फिर जड़पाल भाई से कहा कि उन्हें जाकर ले आओ।आखिरकार पिताजी वहां गए,मिलते ही उन्हें गले लगाकर अधिकारियों से भी उनका परिचय कराया।स्मरण रहे कि मेरे पिताजी दया सागर धस्माना 1960 में उनके स्टाफ का किस्सा थे।
यहां बातचीत में उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर में रहते हुए उन्होंने अमरनाथ श्राइन बोर्ड का गठन,ओर वैष्णव देवी मंदिर का ट्रस्ट निर्माण कर इन दोनों तीर्थो की यात्रा को सुगम ओर आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर भी,बनाया।
पूर्व मुख्य सचिव ने कहा था कि श्रीनगर से पौड़ी तक रज्जू मार्ग, राष्ट्रीय पर्यटन नक्शे पर पौड़ी अंकित करने ,ओर कॉर्बेट पार्क ढिकाला से रामनगर नैनीताल मार्ग को कोटद्वार से सड़क बनाकर पौड़ी को एक आदर्श नगरी बनाने की कार्ययोजना भी बनवाई थी,किंतु गोधवामी जी के सरकारी नौकरी से हटते ही,ये योजना भी नेपथ्य में चली गई। हा,इतना जरूर हुआ कि तब उनके प्रयासों से पौड़ी दिल्ली डीलक्स बस सेवा शुरू हो गई थी। जो बाद में घाटे के कारण बंद कर दी गई थी।
गढ़वाल मंडल विकास निगम के गठन के बाद इस विभाग ने अपने 08 दिन के गढ़वाल भ्रमण में एक दिन देश विदेश के यात्रियों को पौड़ी में रात्रि विश्राम करवाकर बहुत सार्थक पहल की थी।
इस बारे में गढ़वाल मंडल विकाश निगम के पूर्व वरिष्ठ प्रबंधक प्रशांत नेगी कहते हे कि 1982 में निगम में महाप्रबंधक केदार सिंह फोनिया ओर एक वरिष्ठ अधिकारी बी डी ममगाईं के प्रयासों से पौड़ी में चार धाम यात्रा के पैकेज टूर में पौड़ी को भी सम्मिलित कर पर्यटन केंद्र के रूप में उभारने का प्रयास किया गया। बी डी. ममगाईं जी के प्रयासों से ही,पौड़ी सहित चीला, लैंसडौन , कर्ण आश्रम, मार्ग पर निगम के टूर प्रोग्राम शुरू कर उपेक्षित स्थलों को पर्यटन नक्शे में शामिल किया गया था। तब उतर प्रदेश में केवल गढ़वाल मंडल विकास निगम ही एकमात्र लाभकारी निगम था।
पौड़ी में पर्यटकों को आकर्षित करने में होटल सन एंड स्नो,के मालिक शिबू घिल्डियाल का भी विशेष योगदान रहा।जब पौड़ी में निगम का बंगला नहीं बना था,तब पर्यटकों के लिए आवासीय सुविधा केवल सन एंड स्नो में ही उपलब्ध थी।
इस तरह जब पौड़ी पर्यटन विकास के मार्ग में आगे बढ़ रहा था,तब1990 के बाद उत्तराखंड आंदोलन के चलते,पौड़ी को पर्यटन ओर ब्यापार का जो नुकसान हुआ,उसकी भरपाई नहीं हो सकी।राज्य बनने के बाद तो,कमिश्नरी कार्यालय पौड़ी से देहरादून चले जाने से पौड़ी का गौरव ओर अस्तित्व दोनों सिमट कर रह गया।
पौड़ी के पर्यटन नक्शे में उभर न पाने में में पानी का संकट बहुत अहम रहा। पानी न होने से पर्यटन ओर होटल व्यवसाय उभर नहीं सका।मास्टर प्लान न होने से हम ओर हमारी सरकार हिमालय की सुंदरता को कैश करने में असफल रही।
पौड़ी के साथ सभी सरकारों ने राज्य बनने के बाद सौतेला व्यवहार किया। आज दिन तक जिमकॉर्बेट पार्क,जिसका 70प्रतिशत हिस्सा पौड़ी गढ़वाल में आता है,इसके बाद भी पर्यटन नक्शे में उसे नैनीताल में दिखाया जाता रहा हैं। इसका एक बड़ा कारण कोटद्वार से ढिकाला या दुगड़ा दुर्गापुरी के रास्ते,वन अधिनियमों का वास्ता देकर इस मार्ग को बनने नहीं दिया गया।इसके चलते पौड़ी को पर्यटन मानचित्र में ही स्थान नहीं मिल सका।
पौड़ी को पर्यटन नक्शे में विस्तार न मिलने में में हमारे जन प्रतिनिधि भी,उतने ही दोषी हैं। आज भी ढांचागत सुविधाएं न होने के कारण पानी,अच्छे होटल,ओर स्थानीय कारोबारियों में स्किल का अभाव,उनका रूखापन पौड़ी के विकास में बाधक रहा है।
उतर।प्रदेश के युग में गढ़वाल मंडल विकास निगम के प्रशिक्षित युवा गाइड ओर कर्मचारी अधिकारी अपनी दक्षता के कारण पौड़ी पर्यटन विकास को गति देते रहे,किंतु बाद में उत्तराखंड राज्य ने सबसे पहले गढ़वाल मंडल विकाश निगम को बर्बाद किया। द्रोण होटल को विधायक निवास बना कर उसकी संपतियों को नुकसान पहुंचाया।आज भी करोड़ों रुपए की देनदारी सरकार पर इसकी है। कभी इसे कुमाऊं मंडल विकास निगम के साथ इसे मर्ज करने तक के षडयंत्र की खबरों के बीच,इसे सरकार कमजोर करती रही
,आज यह प्रतिष्ठान मृत सैया पर पड़ा हे।
राज्य बनने के बाद सरकार ने जहां पौड़ी को एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत बर्बाद किया,वही दूसरी ओर गढ़वाल मंडल विकाश निगम की परिसंपत्तियों को बेचने ओर उसकी कई इकाइयों को बंद कर पर्यटन विकास पर ग्रहण लगाया है।
पौड़ी के पर्यटन विकास के लिए चिंतित डॉ चिराग बहुगुणा,जो पौड़ी के चितेरे हैं,का कहना हे कि कुदरत की इस खूबसूरत देन को सजाने संवारने वाला क्यो नहीं,मिलता,इसका जवाब आज हर पौड़ी प्रेमी की जुबान पर है।
इसका एक अन्य कारण यह भी हे कि,उत्तराखंड के कुल 14 सेंचुरी ओर नेशनल पार्कों में 12 स्थान गढ़वाल में पड़ते हे,इनमें इनर लाइन को लेकर किसी भी तरह की मानवीय गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया है। जब की कुमाऊं अंचल से पर्यटकों के लिए खोला गया हे।इन्हीं कारणों से नीति घाटी से कैलाश मानसरोवर की यात्रा,चमोली जिले के रेनी गांव से नंदादेवी रूट को पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित करने के साथ ही,कॉर्बेट पार्क से लगे गढ़वाल वाले हिस्से में वन अधिनियम ओर पार्क क्षेत्र के निकट रह रहे लोगों को उनके प्राकृतिक ओर नैसर्गिक अधिकारों से वंचित रखा गया हे। हैरत की बात तो यह हे कि न विधायक ओर ना ही सांसद ने कभी इस ज्वलंत प्रश्न को सरकार के समक्ष प्रभावी तरीके से उठाया हे।
इस क्षेत्रीय असंतुलन से आज राज्य की अवधारणा वैमनस्यता को जन्म दे रही हे। इस भेदभाव,ओर नियोजन में सोच के चलते पौड़ी को पर्यटन नक्शे से ही बाहर कर दिया गया है।
क्या हमारे जनप्रतिनिधि,ओर योजनाकार प्रशासक पौड़ी के पर्यटन सर्किट के साथ गढ़वाल मंडल विकास निगम के पुराने टूर ऑपरेटर्स को फिर से पौड़ी कोटद्वार,रामनगर कालागढ़ ,ढिकाला, कर्ण आश्रम,,चीला, लैंसडौन,khersu को पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित कर नए स्थानों को विकसित किया जाना चाहिए।
पर्यटन मंत्री से आग्रह हे कि वह गढ़वाल मंडल टूर ऑपरेटर्स में पुनः पौड़ी कोटद्वार लैंसडौन को कार्यक्रम में शामिल करे। नीति घाटी से कैलाश मानसरोवर की यात्रा मार्ग को खोले जाने के लिए केंद्रीय स्तर पर सत्कार से पहल करे।इसके साथ ही,गढ़वाल से पार्क ओर सेंचुरी एरिया में पर्यटकों की आवाजाही को शुरू करने की दिशा में कारगर कदम उठाए।
अतः पौड़ी के व्यवसायियों से भी कहना कि अपने कौशल और सैलानियों को आकर्षित करने के लिए बेबसाइड बनाकर गाइड ओर पैकेज सुविधाएं देकर अपनी क्षमता और हुनर को विकसित करे।
जनप्रतिनिधि ओर प्रशासक एक निष्पक्ष ओर व्यावहारिक सोच के साथ पौड़ी,कोटद्वार,ढिकाला,लैंसडौन , खिरसू के लिए कोई योजना ओर साहित्य का प्रकाशन कर,पौड़ी में पर्यटन की दम तोड़ती सांसों को ऑक्सीजन देने का काम कर सकती हैं।

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