वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की कुछ प्रावधानों पर रोक, पूरे कानून पर नहीं
नई दिल्ली, 15 सितंबर । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने पूरे अधिनियम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कुछ विशिष्ट प्रावधानों को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया। अदालत का यह आदेश उन अनेक याचिकाओं पर आया, जिनमें मुस्लिम संगठनों, राजनेताओं और अन्य पक्षकारों ने अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को संसद ने अप्रैल 2025 की शुरुआत में पारित किया था। राष्ट्रपति की मंजूरी इसे 5 अप्रैल को मिली और 8 अप्रैल को अधिसूचित कर दिया गया। यह अधिनियम मौजूदा वक्फ कानून में कई बड़े बदलाव करता है, जैसे—वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को हटाना, वक्फ संपत्तियों पर नई सीमाएं लगाना और सरकारी अधिकारियों को कुछ विवादों में निर्णय देने का अधिकार।
याचिकाकर्ताओं में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, दिल्ली के AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, समाजवादी पार्टी सांसद जिया उर रहमान, डीएमके और अन्य शामिल थे। उन्होंने विशेष रूप से उन प्रावधानों को चुनौती दी जिनमें गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में शामिल करने, वक्फ बनाने के लिए कम से कम पाँच वर्ष तक इस्लाम का अभ्यास करने की शर्त, और सरकारी अधिकारियों द्वारा संपत्ति विवाद तय करने का अधिकार शामिल है।
केंद्र सरकार ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ एक ‘सेकुलर अवधारणा’ है और इस पर पूर्ण रोक की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पूरी कर मई 2025 में आदेश सुरक्षित रख लिया था। उस दौरान केंद्र ने यह आश्वासन दिया था कि मामले के लंबित रहने तक वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति नहीं की जाएगी और घोषित वक्फ संपत्तियों पर यथास्थिति बनी रहेगी।
मुख्य फैसले
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पूरे अधिनियम पर रोक से इनकार: कोर्ट ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि संविधान इसे वैध मानकर चलता है।
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जिन प्रावधानों पर रोक लगी:
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सेक्शन 3(1)(r): इसमें वक्फ बनाने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम पाँच साल तक इस्लाम का अभ्यास करने की शर्त रखी गई थी। कोर्ट ने कहा कि इस शर्त की जांच का कोई स्पष्ट तंत्र नहीं है, जिससे मनमानी का खतरा है। इसलिए इस प्रावधान को फिलहाल राज्य सरकारों द्वारा नियम बनने तक स्थगित कर दिया गया।
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सेक्शन 3C(2) का प्रोविजो: इसमें कलेक्टर या अन्य सरकारी अधिकारियों को यह तय करने की शक्ति दी गई थी कि कोई संपत्ति वक्फ है, सरकारी है या उस पर अतिक्रमण हुआ है। कोर्ट ने इसे शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत बताते हुए रोका और कहा कि ट्रिब्यूनल के निर्णय तक किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ अधिकार नहीं बनाए जा सकते।
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जिन प्रावधानों पर रोक नहीं लगी, लेकिन टिप्पणियां की गईं:
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वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति की अनुमति बरकरार रही, लेकिन अदालत ने निर्देश दिया कि जहां संभव हो, एक्स-ऑफिसियो सदस्य मुस्लिम हों। केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्डों में अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम सदस्य रखे जा सकते हैं।
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वक्फ बोर्ड के सीईओ के रूप में गैर-मुस्लिम नियुक्त करने पर भी रोक नहीं लगी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकता मुस्लिम उम्मीदवारों को दी जाए।
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रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि यह पहले से ही 1995 और 2013 के कानूनों में मौजूद थी। केवल समयसीमा को बढ़ाया गया है।
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कोर्ट की टिप्पणियां और कारण
अदालत ने कहा कि पाँच साल तक इस्लाम का अभ्यास करने की शर्त के लिए जांच का कोई तंत्र न होने से यह मनमाने फैसलों का कारण बन सकती है। वहीं, सरकारी अधिकारी द्वारा विवादों का निर्णय देना संविधान के शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि यह न्यायपालिका का अधिकार है। कोर्ट ने अधिनियम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उससे जुड़े विवादों का भी उल्लेख किया।
व्यापक प्रभाव और आगे की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, विवाद समाधान और बोर्डों की संरचना को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगा। हालांकि, यह केवल अंतरिम आदेश है और अंतिम निर्णय बाकी है। याचिकाकर्ताओं की अन्य चुनौतियां—जैसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारकों पर वक्फ की सीमा, महिलाओं की सदस्यता से जुड़ी पाबंदियां और अपील की प्रक्रिया—अब भी लंबित हैं।
केंद्र सरकार ने इस मामले में 1,332 पन्नों का हलफनामा दाखिल कर पूरे कानून पर रोक लगाने का विरोध किया था। अब अदालत की अगली सुनवाई में इन शेष मुद्दों पर भी विचार किया जाएगा।
