भारत में गोद लेने के मामलों में दशक का रिकॉर्ड, महाराष्ट्र सबसे आगे; कुल का 20% हिस्सा
-उत्तराखंड हिमालय डेस्क-
महाराष्ट्र ने बीते वित्तीय वर्ष में 849 अंतर-देशीय और घरेलू गोद लेने (Adoptions) के साथ देशभर में पहला स्थान हासिल किया। यह आंकड़ा देश की कुल संख्या का लगभग 20% है और राज्य के पिछले वर्ष के 522 गोद लेने के मामलों से 38% अधिक है।
देशभर में 4,515 बच्चों को परिवार मिले — यह पिछले एक दशक से अधिक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। वहीं, इस समय 36,000 से अधिक संभावित दत्तक अभिभावक (PAPs) प्रतीक्षा सूची में हैं, जो केवल 2,749 कानूनी रूप से उपलब्ध बच्चों को गोद लेने की उम्मीद कर रहे हैं। केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (CARA) के अनुसार, इनमें से 1,808 बच्चों को विशेष आवश्यकता (special-needs) वाले बच्चों की श्रेणी में रखा गया है।
कुल 4,515 गोद लेने में से 4,155 मामले देश के भीतर ही हुए जबकि 360 अंतरराष्ट्रीय गोद लेने के मामले रहे। घरेलू गोद लेने में महाराष्ट्र (790) सबसे आगे रहा, इसके बाद तमिलनाडु (438) और पश्चिम बंगाल (297) का स्थान रहा। अंतरराष्ट्रीय गोद लेने में भी महाराष्ट्र (59) पहले स्थान पर रहा, इसके बाद पंजाब (41) और बंगाल (31) रहे।
औसतन, दत्तक माता-पिता (PAPs) की प्रतीक्षा अवधि ढाई साल है। अधिकांश PAPs लड़कियों और 0-2 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को गोद लेना चाहते हैं। छोटे बच्चों और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को गोद लेने में कठिनाई आती है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 2,554 लड़कियां गोद ली गईं, जो देश में कुल गोद लेने के 56% हैं।
पूर्व CARA सदस्य विनीता भार्गव ने कहा, “एक कारण यह है कि अधिक लड़कियों को छोड़ा जाता है, जिससे वे गोद लेने के लिए उपलब्ध हो जाती हैं।”
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (WCD) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “कुछ माता-पिता मानते हैं कि लड़कियां अधिक देखभाल करने वाली और संवेदनशील होती हैं और भविष्य में अपने माता-पिता की देखभाल करेंगी। कुछ को लगता है कि लड़कियां परिवारिक जीवन में आसानी से ढल जाती हैं। सामाजिक जागरूकता और अविवाहित महिलाएं भी लड़कियों को गोद लेना अधिक पसंद करती हैं।”
कई PAPs का मानना है कि शिशुओं और छोटे बच्चों के साथ भावनात्मक संबंध बनाना आसान होता है। एक अधिकारी ने कहा, “कुछ के लिए, छोटे बच्चों को गोद लेना उनके व्यक्तित्व और मूल्यों को आकार देने का अवसर देता है। वहीं, कुछ लोग शैशवावस्था से वयस्कता तक पूरे पालन-पोषण का अनुभव करना चाहते हैं।”
बड़े बच्चों के लिए गोद लेना कठिन हो जाता है। समाजसेवी जयप्रकाश जाधव (अरुण आश्रय चैरिटेबल ट्रस्ट) ने कहा, “सात साल से अधिक आयु के बच्चों को गोद लेना मुश्किल होता है, जबकि कई बड़े बच्चे कानूनी रूप से गोद लेने के लिए उपलब्ध होते हुए भी प्रतीक्षा में रहते हैं।”
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की स्थिति और कठिन होती है। WCD मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में केवल 364 विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को गोद लेने के लिए आरक्षित किया गया। एक WCD अधिकारी ने कहा, “विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को गोद लेने में कई चुनौतियाँ आती हैं, जैसे जुड़ाव (attachment) की समस्या, व्यवहार संबंधी चिंताएं या चिकित्सकीय जरूरतें।”
