भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी खोज: रिडबर्ग परमाणु खोल रहे हैं क्वांटम तकनीक का नया द्वार
This first global demonstration of interaction-driven distortions in Rydberg atomic signals at such high states could be a key in building the next generation of quantum computers, sensors, and communication devices. Ordinary atoms are tiny, but Rydberg atoms are giants. By nudging an atom’s outermost electron to a very high energy level, scientists create an atom that balloons in size and becomes hypersensitive to its surroundings. These peculiar atoms are central to the future of quantum computers and ultra-precise sensors. But the same sensitivity that makes them useful also makes them unpredictable.

भारतीय वैज्ञानिकों ने क्वांटम रिसर्च में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने पाया कि जब परमाणुओं को बहुत अधिक ऊर्जा दी जाती है, तो वे सामान्य रूप से स्वतंत्र कणों की तरह व्यवहार करना बंद कर देते हैं। इसके बजाय वे आपस में इस कदर जुड़ जाते हैं कि उनकी रोशनी से प्रतिक्रिया भी बदल जाती है और यह विकृत रूप में दिखाई देती है। इसे पहली बार रिडबर्ग परमाणुओं पर देखा गया है। यह खोज भविष्य में क्वांटम कंप्यूटर, सेंसर और संचार उपकरणों को बनाने की दिशा में बेहद अहम साबित हो सकती है।
रिडबर्ग परमाणु क्यों खास हैं?
साधारण परमाणु बहुत छोटे होते हैं, लेकिन जब किसी परमाणु के सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन को बहुत ऊँचे ऊर्जा स्तर पर ले जाया जाता है, तो वह रिडबर्ग परमाणु कहलाता है। ये सामान्य परमाणुओं से कहीं बड़े होते हैं और अपने आसपास के वातावरण के प्रति बेहद संवेदनशील बन जाते हैं। यही गुण उन्हें क्वांटम तकनीक के लिए बेहद महत्वपूर्ण बनाते हैं, हालांकि यही संवेदनशीलता उन्हें अप्रत्याशित भी बना देती है।
प्रयोग कैसे किया गया?
बेंगलुरु के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) की टीम ने रुबिडियम परमाणुओं को लगभग शून्य के करीब ठंडा किया ताकि वे हिल भी न सकें। फिर लेजर और चुंबकीय क्षेत्रों की मदद से उन्हें फंसा कर उच्च ऊर्जा स्तरों पर ले जाया गया। आमतौर पर इस प्रक्रिया में परमाणु एक साफ पैटर्न दिखाते हैं, जिसे ऑटलर-टाउन्स स्प्लिटिंग कहा जाता है।
लेकिन जब वैज्ञानिकों ने उन्हें 100वें ऊर्जा स्तर से आगे धकेला, तो यह पैटर्न अचानक टूट गया। परमाणुओं का व्यवहार धुंधला और विकृत दिखाई देने लगा। दरअसल, अब वे अकेले नहीं बल्कि समूह में, एक-दूसरे से जुड़कर सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया कर रहे थे — मानो किसी बड़े झुंड ने तालमेल से नृत्य करना शुरू कर दिया हो।
क्वांटम तकनीक के लिए नया रास्ता
ये विचित्र विकृतियाँ संकेत देती हैं कि किस अवस्था में परमाणु अकेले रहते हैं और कब वे आपस में उलझकर एक बड़ी प्रणाली बना लेते हैं। यही समझ भविष्य के क्वांटम कंप्यूटरों, अति-सटीक सेंसरों और संचार प्रणालियों के निर्माण में मदद करेगी।
इस प्रयोग का नेतृत्व प्रो. संजुक्ता रॉय और उनकी टीम (शिल्पा बी.एस. और शोवन के बारिक) ने किया। पुणे स्थित आईआईएसईआर के प्रो. रेजिश नाथ और उनकी टीम ने सैद्धांतिक मॉडलिंग के जरिए सहयोग दिया। खास बात यह रही कि इस प्रयोग में एक अत्यंत संवेदनशील पहचान प्रणाली विकसित की गई, जो बहुत कम रोशनी (फोटॉन) का भी पता लगा सकती है। इससे वैज्ञानिकों को अत्यधिक उच्च ऊर्जा स्तरों पर भी रिडबर्ग परमाणुओं का अध्ययन करने में सफलता मिली।
वैश्विक स्तर पर भारतीय पहचान
यह उपलब्धि भारतीय वैज्ञानिकों को क्वांटम रिसर्च की वैश्विक दौड़ में अग्रिम पंक्ति में ले आई है। इससे साबित हुआ है कि जब परमाणुओं को लगभग स्थिर अवस्था में ठंडा करके अत्यधिक ऊर्जा दी जाती है, तो वे व्यक्तिगत कणों से सामूहिक रूप धारण कर लेते हैं। यही परिवर्तन क्वांटम तकनीक की अगली पीढ़ी की नींव बनेगा।
