भारतीय शोधकर्ताओं ने बिना सर्जरी के मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित करने वाली नैनो सामग्री का आविष्कार किया

Normally, treatments such as deep brain stimulation (DBS) require surgical implants, while other methods use magnetic or ultrasound waves to reach brain tissue. These are effective but invasive or limited. By contrast, graphitic carbon nitride, which has been identified by scientists from the Institute of Nano Science and Technology (INST), an autonomous institute of the Department of Science and Technology (DST), is able to “talk” to neurons naturally. When placed near nerve cells, it generates tiny electric fields in response to the brain’s voltage signals. These fields open calcium channels on neurons, triggering growth and improving connections between cells—without any external device.
By- Jyoti Rawat
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है जो मस्तिष्क विकारों के उपचार में बदलाव ला सकती है। इस नई खोज से पता चला है कि ग्राफिटिक कार्बन नाइट्राइड (g-C₃N₄) नामक एक विशेष नैनो सामग्री बिना इलेक्ट्रोड, लेजर या चुंबक की आवश्यकता के मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित कर सकती है।
एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्ष से स्पष्ट होता है कि ग्रेफाइटिक कार्बन नाइट्राइड मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि का उपयोग करके न्यूरॉन्स को बढ़ने, परिपक्व होने और अधिक प्रभावी ढंग से क्रियाशील करने में मदद करता है। इस पदार्थ ने उल्लेखनीय रूप से प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क जैसी कोशिकाओं में डोपामाइन उत्पादन को भी बढ़ावा दिया और पशु मॉडलों में पार्किंसंस रोग से जुड़े विषाक्त प्रोटीन को कम किया।
आमतौर पर, गहन मस्तिष्क उत्तेजक (डीप ब्रेन स्टिमुलेशन – डीबीएस) जैसे उपचारों में सर्जिकल इम्प्लांट की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य विधियों में मस्तिष्क के ऊतकों तक पहुंचने के लिए चुंबकीय या अल्ट्रासाउंड तरंगों का उपयोग किया जाता है। ये प्रभावी तो हैं, लेकिन आक्रामक या सीमित हैं।

इसके विपरीत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों द्वारा पहचाने गए ग्रेफाइटिक कार्बन नाइट्राइड, न्यूरॉन्स से स्वाभाविक रूप से “क्रियाशील” करने में सक्षम है। तंत्रिका कोशिकाओं के पास रखे जाने पर, यह मस्तिष्क के वोल्टेज संकेतों के प्रत्युत्तर में सूक्ष्म विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। ये क्षेत्र न्यूरॉन्स पर कैल्शियम चैनल खोलते हैं, जिससे कोशिकाओं की वृद्धि होती है और उनके बीच सम्बंध बिना किसी बाहरी उपकरण के बेहतर होते हैं।
यह पदार्थ एक स्मार्ट स्विच की तरह कार्य करते हुए न्यूरॉन्स की विश्राम और सक्रिय अवस्थाओं के साथ प्रतिक्रिया करता है तथा स्वस्थ मस्तिष्क गतिविधि के लिए सही परिस्थितियां निर्मित करता है।
वैश्विक जनसंख्या के वृद्धावस्था वर्ग में, अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां तेजी से आम होती जा रही हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए आईएनएसटी के शोधकर्ताओं ने इस अर्धचालक पदार्थ को इस परिकल्पना के साथ चुना कि ऋणात्मक झिल्ली क्षमता की उपस्थिति में यह पदार्थ चालू अवस्था में होगा और कोशिकाओं को उत्तेजित करेगा, जबकि धनात्मक झिल्ली क्षमता की उपस्थिति में यह बंद अवस्था में होगा, जिससे कोशिकाएं थकान की स्थिति से गुजर नहीं पाएंगी।
उन्होंने व्यापक प्रयोगों के आधार पर इस परिकल्पना की पुष्टि की है। इसमें न्यूरोनल नेटवर्क गठन और परिपक्वता, जीन अभिव्यक्ति विश्लेषण और इम्यूनोफ्लोरेसेंस-आधारित अध्ययन को समझने के लिए Ca2+ इमेजिंग अध्ययन शामिल थे।
मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित करने और रोग-सम्बंधी प्रोटीन को कम करने की क्षमता वाला यह जैव-संगत नैनोमटेरियल लाखों लोगों के लिए एक संभावित गैर-आक्रामक चिकित्सा प्रदान करता है।
अध्ययन को निर्देशित करने वाले डॉ. मनीष सिंह ने बताया है कि यह अर्धचालक नैनोमटेरियल द्वारा बिना किसी बाहरी उत्तेजना के सीधे न्यूरॉन्स को नियंत्रित करने का पहला प्रदर्शन है। यह पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के लिए नए उपचार का मार्ग प्रशस्त करता है।
यह सफलता “ब्रेनवेयर कंप्यूटिंग” जैसी भविष्य की तकनीकों के लिए भी लाभदायक हो सकती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक ब्रेन ऑर्गेनॉइड्स—प्रयोगशाला में विकसित छोटे मस्तिष्क ऊतकों—का जैविक प्रोसेसर के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। इन्हें g-C₃N₄ जैसे अर्धचालक नैनोमैटेरियल्स के साथ जोड़कर इन लिविंग कंप्यूटरों को और अधिक कुशल बनाया जा सकता है और इससे जैव-प्रेरित कंप्यूटिंग में नए आयाम खुल सकते हैं।
डॉ. सिंह यह भी कहा, “हमारा मानना है कि यह न्यूरोमॉड्यूलेशन अनुसंधान में एक बड़ा बदलाव है। मस्तिष्क की चोटों के उपचार से लेकर न्यूरोडीजनरेशन के प्रबंधन तक, अर्धचालक नैनोमटेरियल भविष्य के लिए अपार संभावनाएं रखते हैं।”
आईएनएसटी की टीम ने बताया कि मानव अनुप्रयोगों से पहले अधिक प्रीक्लिनिकल और क्लिनिकल अध्ययनों की आवश्यकता है।
मस्तिष्क की चोटों के उपचार या अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के इलाज में मदद करने के लिए विकल्प खोजने की दिशा में यह शोध ऊतक इंजीनियरिंग प्रयोजनों के लिए अर्धचालकों के चिकित्सीय अनुप्रयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
