भारत की हरित उपलब्धि में उत्तराखण्ड भी अग्रणी

The greenery of India’s forests is no longer just a matter of memories or concern; it has now become evident in concrete data. Between 2010-11 and 2021-22, the country’s forest cover increased by 17,444 square kilometers, reaching a total of 7.15 lakh square kilometers, which accounts for 21.76 percent of the national land area. This achievement highlights that our efforts toward conservation and restoration are bearing fruit. Notably, the Himalayan state of Uttarakhand has been a frontrunner in this green success, with a remarkable 6.3 percent increase in Recorded Forest Area (RFA) between 2013 and 2023. Thus, this report is not merely an account of India’s greenery but also a glimpse of a greener future. The Ministry of Statistics and Programme Implementation adopted the United Nations’ System of Environmental-Economic Accounting (SEEA) in 2018. In continuation, the eighth publication, “Environmental Accounting for Forests-2025,” was released in 2025. For the first time, a detailed environmental accounting framework focusing on forests has been presented at both the national and state levels. This includes a systematic assessment of the physical assets, extent, condition, and services of forests.

–जयसिंह रावत
भारत के वनों की हरियाली अब केवल स्मृतियों या चिंता का विषय नहीं रही, बल्कि यह ठोस आँकड़ों में दिखाई देने लगी है। वर्ष 2010-11 से 2021-22 के बीच देश का वन क्षेत्र 17,444 वर्ग किलोमीटर बढ़कर कुल 7.15 लाख वर्ग किलोमीटर हो गया है, जो राष्ट्रीय भू-भाग का 21.76 प्रतिशत है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि संरक्षण और पुनर्निर्माण की दिशा में हमारे प्रयास सार्थक हो रहे हैं। खास बात यह है कि इस हरित उपलब्धि में हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड भी अग्रणी रहा है, जहाँ 2013 से 2023 के बीच रिकॉर्ड किए गए वन क्षेत्र (आरएफए) में 6.3 प्रतिशत की उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज हुई। ऐसे में यह रिपोर्ट केवल भारत की हरियाली का लेखा-जोखा नहीं, बल्कि आने वाले हरित भविष्य की झलक भी है।

पर्यावरणीय लेखांकन की पहल
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 2018 में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण आर्थिक लेखा प्रणाली (एसईईए) को अपनाया था। इसी क्रम में 2025 में उसका आठवां प्रकाशन “वन पर पर्यावरण लेखा-2025” जारी किया गया है। यह पहली बार है जब वनों को केंद्र में रखकर राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विस्तृत पर्यावरणीय लेखांकन प्रस्तुत किया गया है। इसमें वनों की भौतिक संपत्ति, विस्तार, स्थिति और सेवाओं का क्रमबद्ध आकलन किया गया है।
वन क्षेत्र और विस्तार
2010-11 से 2021-22 तक, भारत का वन क्षेत्र 17,444.61 वर्ग किलोमीटर (22.50%) बढ़कर 7.15 लाख वर्ग किलोमीटर (भौगोलिक क्षेत्र का 21.76%) हो गया, जो प्रभावी पुननिर्माण और संरक्षण प्रयासों का संकेत है। राज्यवार स्तर पर प्रमुख वृद्धि: केरल (4,137 वर्ग किलोमीटर), कर्नाटक (3,122 वर्ग किलोमीटर), और तमिलनाडु (2,606 वर्ग किलोमीटर)।
विस्तार लेखा : 2013 और 2023 के बीच, भारत के वन विस्तार लेखा में 3,356 वर्ग किलोमीटर की शुद्ध वृद्धि दर्ज की गई, जो मुख्यतः पुनर्वर्गीकरण और सीमा समायोजन की वजह से हुई। रिकॉर्ड किए गए वन क्षेत्र (आरएफए) में विशेष वृद्धि वाले राज्य: उत्तराखंड (6.3%), ओडिशा (1.97%), और झारखंड (1.9%)।

वन स्थिति और संसाधन
वन स्थिति लेखा में एक प्रमुख संकेतक, वृद्धि क्षेत्र, जीवित वृक्षों में इस्तेमाल योग्य लकड़ी की मात्रा को प्रतिबिंबित करता है। 2013 और 2023 के बीच, भारत के वृद्धि क्षेत्र में 305.53 मिलियन घन मीटर (7.32%) की बढ़ोतरी हुई। सबसे बड़े योगदानकर्ता: मध्य प्रदेश (136 मिलियन घन मीटर), छत्तीसगढ़ (51 मिलियन घन मीटर), और तेलंगाना (28 मिलियन घन मीटर); केंद्र शासित प्रदेशों में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (77 मिलियन घन मीटर)।
सेवाएं: जीवन और अर्थव्यवस्था का आधार
भारत के वन केवल लकड़ी और गैर-लकड़ी उत्पाद नहीं देते, बल्कि वे जलवायु और समाज के लिए अनमोल सेवाएं प्रदान करते हैं।
प्रोविजनिंग सेवाएं: 2011-12 से 2021-22 के बीच इनकी कीमत 30.72 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 37.93 हजार करोड़ रुपये हो गई। इसमें महाराष्ट्र, गुजरात और केरल शीर्ष पर हैं।
विनियमन सेवाएं (कार्बन प्रतिधारण): 2015-16 से 2021-22 के बीच इन सेवाओं का मूल्य 409.1 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 620.97 हजार करोड़ रुपये हो गया, यानी 51.82 प्रतिशत की वृद्धि। यह जीडीपी का 2.63 प्रतिशत हिस्सा है। प्रमुख योगदानकर्ता रहे अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और असम।
उत्तराखण्ड की भूमिका
भारत के वन सेवा खाते के अनुसार, 2015-16 और 2021-22 के बीच कार्बन प्रतिधारण विनियमन सेवाओं में 51.82% की बढ़ोतरी हुई है, जो ₹409.1 हजार करोड़ से बढ़कर ₹620.97 हजार करोड़ हो गई है, जो जलवायु परिवर्तन शमन और राष्ट्रीय लक्ष्यों में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देती है। 2021-22 में इसका मूल्य वर्तमान मूल्य पर जीडीपी के 2.63% के बराबर है। प्रमुख योगदानकर्ता: अरुणाचल प्रदेश (296) हजार करोड़, उत्तराखंड (156.6) हजार करोड़, और असम (129.96) हजार करोड़। उत्तराखण्ड के लिए यह रिपोर्ट विशेष महत्व रखती है। हिमालयी ढलानों पर फैली हरियाली न केवल राज्य की सुंदरता और पर्यटन का आधार है, बल्कि यह कार्बन प्रतिधारण और जलवायु शमन में भी अहम योगदान देती है। 6.3 प्रतिशत की वृद्धि यह साबित करती है कि यहां संरक्षण नीतियों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी ने बड़ा असर डाला है।
हरित भारत की यह तस्वीर
“वन पर पर्यावरण लेखा-2025” हमें यह सिखाता है कि वनों को केवल प्राकृतिक धरोहर मानना पर्याप्त नहीं है। वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, जलवायु संतुलन और समाज की जीवनरेखा हैं। उत्तराखण्ड से लेकर अरुणाचल तक, और केरल से लेकर अंडमान तक—हरित भारत की यह तस्वीर बताती है कि यदि संरक्षण और सतत प्रबंधन को प्राथमिकता दी जाए, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक और अधिक सुरक्षित और हरित भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
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