टाटा ग्रुप में झगड़ा क्यों हो रहा है?

-MILIND KHANDEKAR-
टाटा ग्रुप मार्केट कैप के हिसाब से देश का सबसे बड़ा ग्रुप है. इसके शेयरों की क़ीमत अभी ₹26 लाख करोड़ है. इस ग्रुप में झगड़ा इतना बढ़ गया कि सरकार को सुलह करनी पड़ी. फिर भी ऐसा लगता है कि झगड़ा इतनी आसानी से नहीं सुलझेगा क्योंकि टाटा संस का 18% शेयर होल्डर मिस्री परिवार अब IPO लाने की माँग को लेकर खुलकर सामने आ गया है.
पहले समझ लीजिए कि टाटा परिवार टाटा ग्रुप का मालिक नहीं है जैसे अंबानी अड़ानी परिवार अपने अपने ग्रुप के सबसे बड़े शेयर होल्डर हैं. टाटा ग्रुप में 29 कंपनियाँ शेयर बाज़ार में लिस्ट हैं. इन सबका प्रमोटर टाटा संस है. टाटा संस में 66% शेयर टाटा ट्रस्ट के पास है. टाटा संस के डिवीडेंड से यह ट्रस्ट अस्पताल, शिक्षा संस्थान और अन्य सामाजिक संस्थाएं चलाता है. यह मॉडल टाटा ग्रुप को बाकी घरानों जैसी लड़ाई से बचाने में मददगार रहा है. टाटा परिवार के पास 3% शेयर है जबकि मिस्त्री परिवार के पास 18%.
टाटा संस प्राइवेट कंपनी है और सारा झगड़ा चल रहा है इसका IPO लाने के लिए यानी शेयर बाज़ार में लिस्टिंग करने के लिए. झगड़ा शुरू हुआ टाटा ट्रस्ट से. रतन टाटा के निधन के बाद नोएल टाटा चेयरमैन बनें . नोएल रतन के सौतेले भाई हैं. ट्रस्ट टाटा संस के बोर्ड पर तीन सदस्यों को भेजता है. यह ट्रस्ट दो गुटों में बंट गया है. नोएल के साथ पूर्व IAS विजय सिंह और TVS के वेणु श्रीनिवासन है जबकि दूसरे गुट में मेहिल मिस्री मिलाकर चार सदस्य. दूसरे गुट ने विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड में दोबारा भेजने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया. उनकी उम्र की दुहाई दी गई. वो 77 साल के हैं. दूसरे गुट का कहना है कि उन्हें टाटा संस के कामकाज की जानकारी नहीं मिलती है. वो पारदर्शिता की माँग कर रहे हैं. इशारों में टाटा संस का IPO लाने की माँग कर रहे हैं. मेहिल मिस्री का उस मिस्री परिवार के रिश्तेदार है जो टाटा संस में 18% का मालिक है. हालाँकि मेहिल को ट्रस्ट में रतन टाटा ही लेकर आए थे.
टाटा और मिस्री परिवार का रिश्ता खट्टा मीठा रहा है. रतन टाटा ने सायरस मिस्री को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. फिर बेदख़ल भी किया. सायरस की मृत्यु बाद में कार दुर्घटना में हुई थी. अब मिस्री परिवार माँग कर रहा है कि टाटा संस का IPO लाया जाए. मिस्री परिवार शॉपुरजी पॉलनजी (SP) ग्रुप चलाता है मुख्य रूप से इंफ़्रास्ट्रक्चर ,रियल इस्टेट जैसे क्षेत्र में है. उसे टाटा संस में अपने शेयर बेचने है ताकि वो क़र्ज़ चुका सकें. टाटा संस की क़ीमत दस लाख करोड़ रुपये के आसपास आँकी गई है यानी मिस्री परिवार डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का मालिक है. टाटा परिवार और टाटा ट्रस्ट इसके लिए राज़ी नहीं है. वो टाटा संस को पब्लिक नहीं करना चाहते हैं.
इस लंबी कहानी में रिजर्व बैंक भी एक पात्र है बल्कि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में. रिज़र्व बैंक ने 2022 में टाटा संस को Non Banking Finance Company ( NBFC) घोषित किया. टाटा संस को 30 सितंबर 2025 तक शेयर बाज़ार में लिस्टिंग के लिए कहा था. टाटा संस ने IPO से बचने के लिए अर्ज़ी लगा दी कि हम NBFC नहीं रहना चाहते हैं. रिज़र्व बैंक ने अब तक कोई फ़ैसला नहीं लिया है. सरकार और रिजर्व बैंक की भूमिका यहाँ निर्णायक होगी कि टाटा संस पब्लिक कंपनी बनेगी या प्राइवेट. पब्लिक कंपनी बनने पर डेढ़ सौ से ज़्यादा सालों के इतिहास में पहली बार टाटा संस में बाहरी निवेशकों का दख़ल होगा. जो ट्रस्ट टाटा ग्रुप को पारिवारिक झगड़े के कारण टूट से बचाता रहा है वहीं अब झगड़ा हो रहा है.
