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उत्तराखंड में मानव–वन्यजीव संघर्ष गहराया: दो महीनों में 9 लोगों की मौत, भालू और गुलदार हमलों से बढ़ी दहशत

 

गोपेश्वर से महिपाल गुसाईं –

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में मानव–वन्यजीव संघर्ष लगातार गंभीर रूप लेता जा रहा है। पिछले दो महीनों में भालू और गुलदार के हमलों में 9 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें कई गंभीर रूप से घायल हैं या उनकी आंखों की रोशनी तथा अंगों को क्षति पहुँची है। वन विभाग के अनुसार यह स्थिति पिछले कई वर्षों की तुलना में अधिक चिंताजनक है।

भालू हमलों में रिकॉर्ड वृद्धि

राज्य में इस वर्ष अब तक छह लोगों की मौत भालू के हमलों में हुई है, जो पिछले 25 वर्षों में सबसे अधिक है। भालू हमलों की बढ़ती घटनाएँ विशेष रूप से मध्य हिमालयी क्षेत्रों में दर्ज की जा रही हैं।

उदाहरण के लिए—

  1. बदरीनाथ और जोशीमठ क्षेत्रों में केवल दो महीनों में दर्जनों बार भालू दिखने की घटनाएँ सामने आई हैं।
  2. उत्तरकाशी में पिछले महीने नौ घटनाओं में दो लोगों की मौत हुई।
  3. विशेषज्ञों  का मानना है कि जंगलों में भोजन की कमी और मानव बस्तियों का विस्तार इस संघर्ष को बढ़ा रहा है।

गुलदार अब भी बड़ा खतरा

हालांकि पिछले वर्षों में गुलदार (तेंदुए) द्वारा सबसे ज्यादा हमले होते थे, पर इस वर्ष भालू हमले अधिक सामने आए हैं। फिर भी गुलदार अब भी पहाड़ी जिलों में स्थायी खतरा बना हुआ है।

वर्ष 2000 से अब तक 546 लोगों की मौत गुलदार हमलों में हुई है।इस वर्ष एक दर्जन लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 90 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।पौड़ी, चमोली, अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग और टिहरी में इस संघर्ष की घटनाएँ अधिक देखी जा रही हैं।

ग्रामीणों में आक्रोश: सड़क जाम की चेतावनी

लगातार हमलों से भयभीत ग्रामीण कई बार प्रशासन को चेतावनी दे चुके हैं। पौड़ी–श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ग्रामीणों ने घोषणा की कि यदि उनकी सुरक्षा और समस्या के समाधान पर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो वे बड़े स्तर पर सड़क जाम आंदोलन शुरू करेंगे। इसी तरह का भय और आक्रोश पोखरी ब्लॉक के पाब गांव के लोगों में प्रकट किया है जहां भालू ने महिला को बुरी तरह नोच डाला था और गंभीर घायल महिला दो दिन बाद जंगल में मिली थी।

बढ़ते संघर्ष के बीच सरकार और वन विभाग की सक्रियता

मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) रंजन मिश्रा के अनुसार—

> “हमारी टीमें संघर्ष की स्थिति में तत्काल सहायता देने के लिए तैनात हैं। लोगों को समूह में चलने, शोर करने और सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही है। ये पारंपरिक तरीके संघर्ष से बचाव में सहायक हैं।”

 

वहीं दूसरी ओर, हालिया घटनाओं पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कड़ा रुख दिखाते हुए कहा है कि:

  • राज्य सरकार भालू और गुलदार हमलों में घायल लोगों का पूरा इलाज अपने खर्च पर कराएगी।
  • विभागों को निर्देशित किया गया है कि आवश्यक संसाधन तुरंत उपलब्ध कराए जाएँ।
  • प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और निगरानी बढ़ाने तथा ‘कॉनफ्लिक्ट मैनेजमेंट’ को मजबूत करने के आदेश दिए गए हैं।

संघर्ष के आँकड़े चिंताजनक

  • वन विभाग के उपलब्ध आंकड़े स्थिति की गंभीरता को स्पष्ट करते हैं
  • 2024 में अब तक 45 लोग वन्यजीव हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं।
  • 393 लोग घायल हुए हैं।

सिर्फ दो महीनों में ही नौ मौतें दर्ज की गईं, जिनमें अधिकांश भालू और गुलदार के हमलों से हुईं।

समाधान में सहअस्तित्व की अवधारणा पर जोर

वन अधिकारियों का कहना है कि मानव–वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि पहाड़ी समाज अपनी पारंपरिक जीवनशैली—सामूहिकता, सावधानी और जंगलों में सक्रिय सतर्कता—को अपनाए।

जागरूकता और सरकारी सक्रियता बढ़ाने की जरूरत

उत्तराखंड में बढ़ता मानव–वन्यजीव संघर्ष न केवल सुरक्षा चुनौती है, बल्कि यह पहाड़ी पारिस्थितिकी और मानव जीवन के बीच बदलते संतुलन का संकेत भी है। सरकार व वन विभाग की त्वरित कार्रवाई जरूरी है, साथ ही समाज को भी जागरूक और सतर्क रहकर सहअस्तित्व की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

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