अर्धकुंभ को “कुंभ” के रूप में प्रचारित करने पर कांग्रेस प्रवक्ता ने ऐतराज जताया

देहरादून, 29 नवंबर। उत्तराखंड की धामी सरकार द्वारा हरिद्वार में होने वाले आगामी अर्धकुंभ को “कुंभ” के रूप में प्रचारित करने के प्रयासों पर कांग्रेस ने कड़ा एतराज़ जताया है। कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि सरकार का यह कदम न केवल परंपराओं से छेड़छाड़ है, बल्कि धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक सत्य के साथ गंभीर खिलवाड़ भी है। उन्होंने कहा कि धार्मिक परंपराओं को राजनीतिक लाभ के लिए तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।
गरिमा मेहरा दसौनी ने स्पष्ट किया कि हमारे वेद–पुराणों में कुंभ और अर्धकुंभ दोनों की परिभाषा स्पष्ट रूप से दर्ज है। शास्त्रों के अनुसार कुंभ पर्व सूर्य, चंद्र और बृहस्पति के विशेष खगोलीय योग से निर्मित एक अद्वितीय आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में होता है। वहीं, अर्धकुंभ छह वर्ष के अंतराल पर आयोजित होने वाला पर्व है, जिसकी परंपरा और मान्यता अलग एवं स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि भारत की किसी भी धार्मिक परंपरा या ग्रंथ में अर्धकुंभ को “कुंभ” कहना प्रमाणित नहीं है। ऐसा करना धार्मिक मर्यादा के उल्लंघन के साथ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ है।
दसौनी ने धामी सरकार से पूछा कि अर्धकुंभ को कुंभ घोषित करने की जल्दबाज़ी क्यों की जा रही है और सरकार क्या छिपाना चाहती है? उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में हुए कुंभ घोटाले से पहले ही उत्तराखंड की साख को भारी आघात लगा है। ऐसे में बिना शास्त्रीय आधार के अर्धकुंभ को “कुंभ” बताना परंपराओं की अवहेलना, संत समाज की अनदेखी तथा धार्मिक आयोजनों का भ्रमित प्रचार साबित होगा।
उन्होंने कहा कि संत समाज का भी मानना है कि अर्धकुंभ को उसके पारंपरिक नाम और स्वरूप में ही स्वीकार किया जाना चाहिए। धार्मिक आयोजनों को “शासन–प्रचार” का मंच बनाना अस्वीकार्य है। धर्म राजनीति का उपकरण नहीं, बल्कि जीवन की आस्था है। इसलिए अर्धकुंभ को अर्धकुंभ ही कहा जाएगा और धार्मिक निर्णय सत्य, शास्त्र और परंपरा के आधार पर ही होने चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।
