स्नो ड्रॉट : जब हिमालय की बर्फ ही न आए, तो गंगा कैसे बहेगी
Due to the shortage of snowfall in the Himalayan region, “snow drought” is emerging as a serious threat. According to a new scientific study, if the melting of glacier water is delayed by even a single week, it could have a profound impact on irrigation across Asia’s agricultural regions, potentially putting the livelihoods of millions of farmers at risk. In this report published in the Dehradun edition of The Times of India, experts have warned that due to climate change, the volume of snow in the Himalayas is steadily decreasing, which is directly affecting the flow of Asia’s major rivers — the Ganga, Brahmaputra, Indus, and Yangtze.

-उषा रावत –
हिमालयी पर्वतमाला का मौसम पिछले कुछ वर्षों में इतने तीव्र बदलाव से गुज़रा है कि अब विशेषज्ञ “हिमनद सूखा” या स्नो ड्रॉट को भारत और पूरे दक्षिण-एशियाई क्षेत्र के लिए उभरता हुआ गंभीर जल संकट मानने लगे हैं। यह वह स्थिति है जब सर्दियों में बर्फबारी अचानक कम हो जाती है और गर्मियों में पिघलने वाला हिमनदी जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाता। एक ताज़ा वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि यदि ग्लेशियरों का पिघलाव सिर्फ एक सप्ताह भी देर से शुरू हो जाए, तो एशिया के विशाल कृषि क्षेत्र की सिंचाई व्यवस्था गहरे संकट में पड़ सकती है—और इसके साथ लाखों किसानों की आजीविका भी। एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हिमालय की बर्फ पर इतने तीव्र रूप से पड़ रहा है कि इससे एशिया की चार सबसे महत्वपूर्ण नदियाँ—गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु और यांग्त्ज़ी—सीधे प्रभावित हो रही हैं। ये नदियाँ लगभग 170 करोड़ लोगों की पीने के पानी, कृषि और जल-विद्युत की ज़रूरतें पूरी करती हैं।
बर्फबारी में औसतन 20% की कमी
‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, पिछले दशक में हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी औसतन 20% घट गई है। उत्तर-पश्चिमी हिमालय में कुछ स्थानों पर यह कमी 30–35% तक दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि यह पैटर्न जारी रहा, तो भारत के साथ-साथ चीन, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों को भी गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ेगा।आईआईटी रुड़की के जलवायु विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार बताते हैं: “गर्मियों में सिंचाई का सबसे स्थिर स्रोत हिमनदी जल है। यदि बर्फ का पिघलाव समय पर न हो, तो फसल चक्र पूरी तरह अस्त–व्यस्त हो जाता है।”
उत्तराखंड और हिमाचल में संकट की दस्तक
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में जल संकट के शुरुआती संकेत दिखाई देने लगे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर की नवीनतम माप के अनुसार इस वर्ष बर्फ की मोटाई 15% कम दर्ज की गई। इसका सीधा प्रभाव यमुनोत्री, भागीरथी, अलकनंदा जैसे नदी तंत्रों पर पड़ा है, जिनका जलस्तर सामान्य से 10 से 12% तक कम पाया गया। जलवायु विशेषज्ञ बताते हैं कि हिमालय में यह पहली बार नहीं हो रहा। 2019 से 2024 के बीच 5 वर्षों में तीन बार हिमनद सूखे जैसी स्थितियाँ बन चुकी हैं। किसान संगठनों ने वर्षा जल संचयन, माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम और वैकल्पिक फसल चक्र जैसे उपायों की मांग तेज कर दी है।
रबी फसलों पर खतरा-10 से 15% तक कम हो सकती है पैदावार
अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि हिमनदी पिघलाव अप्रैल–मई की बजाय मई के अंत तक खिसक जाए, तो उत्तर भारत की रबी फसलें—विशेषकर गेहूं और सरसों—की पैदावार 10 से 15% घट सकती है। यह अनुमान ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के डेटा पर आधारित है, जिसके अनुसार उत्तर भारत की लगभग 70% सिंचाई हिमनदी जल पर निर्भर है। देश में कुल गेहूं उत्पादन का लगभग 55% हिस्सा इन्हीं क्षेत्रों से आता है।सिमुलेशन मॉडल बताते हैं कि वैश्विक तापमान में सिर्फ 1°C बढ़ोतरी हिमनदी पिघलाव चक्र को लगभग 7 दिन पीछे धकेल देती है—और इसका प्रभाव मानसून आने से पहले वाले महीनों में सबसे अधिक होता है, जब सिंचाई की ज़रूरत चरम पर होती है।
सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं
केंद्र सरकार ने “हिमालयी जल संरक्षण मिशन” के तहत 500 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया है। उत्तराखंड सरकार ने भी चेकडैम, छोटे जलाशय और पर्वतीय जल-संग्रहण संरचनाओं के निर्माण को तेज करने की बात कही है। पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष खन्ना कहते हैं:“स्थानीय प्रयास महत्वपूर्ण हैं, लेकिन जब तक दुनिया कार्बन उत्सर्जन में निर्णायक कमी नहीं करती, हिमालय का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता।” विशेषज्ञों के अनुसार हिमालयी क्षेत्र दुनिया के उन भू-भागों में शामिल है जहाँ तापमान वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से बढ़ रहा है। इससे बर्फबारी कम होने के साथ-साथ ग्लेशियरों का पिघलना भी तेज हुआ है—जो लंबे समय में जल संकट को और गहरा कर सकता है।
एशिया का 20% कृषि क्षेत्र सूखे की चपेट में आ सकता है
यह रिपोर्ट वैश्विक जलवायु सम्मेलन COP30 से ठीक पहले जारी हुई है। भारत वहाँ एशियाई देशों के लिए सामूहिक जल-सुरक्षा और ग्लेशियर संरक्षण की रणनीति पर जोर देने वाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि तत्काल वैश्विक और राष्ट्रीय कदम नहीं उठाए गए, तो 2030 तक एशिया का 20% कृषि क्षेत्र सूखे या कम जल प्रवाह से प्रभावित हो सकता है।
