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मौसम अब पहले से ज़्यादा अनिश्चित हो गया है?

 

-उषा रावत
कभी बेमौसम बारिश, कभी अचानक बादल फटना, तो कभी भीषण गर्मी और लंबे सूखे—पिछले कुछ वर्षों में मौसम के ऐसे अप्रत्याशित रूप आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को सीधे प्रभावित कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में मौसम का मिज़ाज तेजी से बदल रहा है और इसकी सटीक भविष्यवाणी एक बड़ी चुनौती बन गई है। इसी चुनौती से निपटने के लिए केंद्र सरकार और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) देश की मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने में जुटे हैं, ताकि समय रहते चेतावनी देकर जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके।

मौसम पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय लगातार अपनी अवलोकन क्षमताओं और अनुसंधान एवं विकास (R&D) अवसंरचना को मजबूत कर रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने बीते वर्षों में कई आधुनिक तकनीकों और उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाया है, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हो रहे अत्यधिक और असामान्य मौसमीय घटनाओं—जैसे भारी वर्षा, लू, चक्रवात और सूखा—की बेहतर निगरानी और समय पर चेतावनी संभव हो सकी है। देश भर में मौसम से जुड़े डेटा के संग्रह, विश्लेषण, पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाओं के लिए अवसंरचना का तेजी से विस्तार किया गया है।

सरकार की एक अहम पहल ‘मिशन मौसम’ इसी दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। इस मिशन के तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में डॉप्लर वेदर रडार लगाए गए हैं, जो बादलों की गतिविधि, बारिश और तूफानों पर लगातार नज़र रखते हैं। वर्तमान में भारत में 47 डॉप्लर वेदर रडार सक्रिय हैं, जिनके ज़रिए देश के लगभग 87 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को कवर किया जा चुका है। आने वाले वर्षों में उन क्षेत्रों में भी रडार लगाए जाएंगे, जहाँ अभी कवरेज नहीं है, ताकि किसी भी मौसमीय खतरे को समय रहते पहचाना जा सके।

मिशन मौसम के अंतर्गत विकसित की गई ‘भारत पूर्वानुमान प्रणाली’ (Bharat Forecast System – BharatFS) को मौसम विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। यह उन्नत मॉडल 6 किलोमीटर के उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन पर काम करता है और 10 दिनों तक वर्षा सहित मौसम की भविष्यवाणी करने में सक्षम है। खास बात यह है कि यह प्रणाली अब जिले तक सीमित न रहकर पंचायत या पंचायत समूह स्तर तक सटीक मौसम पूर्वानुमान उपलब्ध कराती है, जिससे स्थानीय प्रशासन और आम लोगों को समय रहते तैयारी का अवसर मिल पाता है।

IMD ने चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले नुकसान को समझने के लिए “क्लाइमेट हैज़र्ड एंड वल्नरेबिलिटी एटलस ऑफ इंडिया” भी तैयार किया है। इसमें देश की 13 सबसे खतरनाक मौसमीय आपदाओं को चिह्नित किया गया है, जिनसे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ इंसानों और पशुओं की जान को भी खतरा होता है। यह एटलस राज्य सरकारों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों को संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने, जोखिम आकलन करने और आपदा से पहले ठोस कार्ययोजना बनाने में मदद करता है।

आम लोगों तक मौसम की जानकारी सीधे पहुँचाने के लिए IMD ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी खास ध्यान दिया है। ‘मौसम’, ‘मेघदूत’ और ‘दामिनी’ जैसे मोबाइल ऐप आज करोड़ों लोगों के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। जहाँ ‘मौसम’ ऐप आम नागरिकों को रोज़ाना का पूर्वानुमान देता है, वहीं ‘मेघदूत’ किसानों को मौसम आधारित कृषि सलाह उपलब्ध कराता है। ‘दामिनी’ ऐप आकाशीय बिजली गिरने से पहले चेतावनी देकर कई इलाकों में जान बचाने में मदद कर रहा है। इसके अलावा UMANG ऐप के ज़रिए भी मौसम से जुड़ी कई सेवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।

IMD अब एक निर्णय समर्थन प्रणाली (Decision Support System) आधारित बहु-खतरा, प्रभाव-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के साथ काम कर रहा है। यह प्रणाली वास्तविक समय और ऐतिहासिक डेटा, उन्नत कंप्यूटर मॉडल और स्थानीय प्रभावों को जोड़कर जिला और शहर स्तर तक चेतावनी जारी करती है। भारी बारिश, सूखा, चक्रवात या हीटवेव जैसी घटनाओं के लिए न सिर्फ चेतावनी दी जाती है, बल्कि यह भी बताया जाता है कि आम लोगों और प्रशासन को क्या कदम उठाने चाहिए।

इन तमाम प्रयासों का नतीजा यह है कि पिछले दस वर्षों में चरम मौसम की घटनाओं के पूर्वानुमान और चेतावनी देने की क्षमता में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक सुधार दर्ज किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे तकनीक और डेटा विश्लेषण और बेहतर होगा, वैसे-वैसे मौसम की अनिश्चितता के बीच भी नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकेगा।

जलवायु परिवर्तन के इस चुनौतीपूर्ण दौर में मौसम की सटीक जानकारी अब सिर्फ वैज्ञानिकों की ज़रूरत नहीं, बल्कि आम नागरिक, किसान, यात्री और प्रशासन—सबके लिए जीवन और आजीविका से जुड़ा अहम सवाल बन चुकी है। इसी दिशा में भारत की मौसम पूर्वानुमान प्रणाली लगातार नए स्तर पर पहुँचने की कोशिश कर रही है।

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