क्रिसमस: शांति, सद्भाव और मानवीय संवेदनाओं का महापर्व
–आदित्य सिंह रावत-
क्रिसमस केवल ईसाइयों का त्योहार नहीं, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर प्रेम, क्षमा और उदारता के मानवीय मूल्यों का उत्सव बन चुका है। प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह पर्व प्रभु यीशु मसीह (जीसस क्राइस्ट) के जन्मोत्सव का प्रतीक है। परंतु यदि हम इसकी गहराई में उतरें, तो पाएंगे कि क्रिसमस का संदेश किसी एक धर्म या संप्रदाय तक सीमित न रहकर संपूर्ण मानवता के कल्याण की बात करता है।
ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
ईसाई मान्यताओं के अनुसार, जब दुनिया में अत्याचार, पाप और अज्ञानता का अंधकार बढ़ गया था, तब ईश्वर ने मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए अपने पुत्र यीशु को पृथ्वी पर भेजा। बेथलहम की एक साधारण गौशाला में उनका जन्म हुआ। यह सादगी इस बात का प्रमाण थी कि महानता विलासिता में नहीं, बल्कि विनम्रता में निहित है।
यीशु मसीह का जीवन एक ऐसी किताब है जिसके हर पन्ने पर प्रेम और करुणा लिखी है। उन्होंने सिखाया कि “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो” और “अपने शत्रुओं को भी क्षमा कर दो।” क्रिसमस का आध्यात्मिक सार इसी ‘क्षमा’ और ‘त्याग’ में छिपा है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हम अपने भीतर के अहंकार को त्यागकर दूसरों के प्रति संवेदनशील बनें।
शांति और सद्भाव का वैश्विक प्रतीक
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और वैश्विक संघर्षों के बीच क्रिसमस का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह त्योहार हमें ‘शांति के राजकुमार’ (Prince of Peace) के आगमन की याद दिलाता है। क्रिसमस ट्री की सजावट, जो कड़ाके की ठंड में भी हरा-भरा रहता है, जीवन की निरंतरता और आशा का प्रतीक है। जगमगाती मोमबत्तियाँ और लाइटें इस बात का संदेश देती हैं कि सत्य का प्रकाश अज्ञानता के किसी भी अंधकार को मिटा सकता है।
सांता क्लॉज और दान की परंपरा
क्रिसमस का जिक्र सांता क्लॉज के बिना अधूरा है। चौथी शताब्दी के संत निकोलस से प्रेरित यह पात्र निस्वार्थ दान और खुशी बाँटने का प्रतीक है। वे रात के अंधेरे में आकर बच्चों को उपहार देते हैं, जो हमें सिखाता है कि दान ऐसा होना चाहिए जिसमें लेने वाले को गौरव मिले और देने वाले को कोई अहंकार न हो।
वर्तमान समय में, क्रिसमस का ‘गिफ्टिंग कल्चर’ (उपहार देने की परंपरा) केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। वास्तविक उपहार वह है जब हम किसी असहाय की मदद करें, किसी अकेले व्यक्ति का साथ दें या किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकें।
आधुनिक दौर में क्रिसमस की प्रासंगिकता
आज के डिजिटल और उपभोक्तावादी युग में त्योहारों का स्वरूप बदल रहा है। बाजारीकरण ने क्रिसमस को शॉपिंग और पार्टियों तक समेट दिया है। ऐसे में हमें इस पर्व के मूल तत्व की ओर वापस लौटने की आवश्यकता है। सार्थकता तब है जब:
- समानता का भाव: हम समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी उत्सव का हिस्सा बनाएँ।
- क्षमाशीलता: साल भर के गिले-शिकवे भुलाकर नए रिश्तों की शुरुआत करें।
- पर्यावरण चेतना: प्रकृति का सम्मान करते हुए उत्सव मनाएँ।
क्रिसमस का सार जानें
क्रिसमस का सार ‘साझा करने’ में है। यह हमें सिखाता है कि खुशी तब दोगुनी हो जाती है जब उसे दूसरों के साथ बाँटा जाता है। यह पर्व हमें एक बेहतर इंसान बनने, नफरत को प्रेम से जीतने और समाज में सौहार्द बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
जैसे ही आधी रात को चर्च की घंटियाँ गूंजती हैं और ‘कैरोल्स’ गाए जाते हैं, वह संगीत हमें याद दिलाता है कि भले ही हमारी भाषाएँ और संस्कृतियाँ अलग हों, लेकिन मानवता का धर्म एक ही है। आइए, इस क्रिसमस हम अपने हृदय में प्रेम की ज्योति जलाएं और दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाने का संकल्प लें।
