एक संस्मरण : अटल जी बोले”-लेकिन मुझे इसको तकिये के नीचे छुपाकर रखना पड़ता है

–गोविंद प्रसाद बहुगुणा –
सत्तर के दशक में एक अंगरेजी पत्रिका छपनी शुरू हुई जिसका नाम था ” Debonair ” इसके पाठक युवा लोग ही अधिक होते थे क्योंकि इसके मध्य पृष्ठों में स्त्री मॉडल्स के रंगीन चित्र छपते थे । पवित्रवादी लोग दूसरों की नजर बचाकर इस तरह की पत्रिकाओं की लुक- छुप कर देखते -पढते थे ।
कुछ वर्ष बाद इसका संपादन विनोद मेहता ने संभाला तो उन्होंने इस पत्रिका को नया कलेवर और प्रतिष्ठा देने की कोशिश की । इसमें नामी लेखकों जैसे -VS नैपॉल,नीरद चौधरी ,खुशवंतसिंह ,विजय तेंदुलकर ,निस्सीम ईजेकील , अरुण कोलारकर,और आर०के० नारायण के अलावा प्रसिद्ध कहानीकार रस्किन बांड का उपन्यास भी धारावाहिक रूप में छपने लगा था । कुछ समय बाद विनोद मेहता ने सोचा कि इसमें राजनीतिकों के इंटरव्यू भी छापे जाय, तो पत्रिका की कुछ और प्रतिष्ठा बढ़ेगी । इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को चुना । बड़ी मुश्किल से बाजपेयी जी से मुलाक़ात के लिए समय मिला । मुलाकात जब हुई तो विनोद ने उन्हें समय देने के लिए ह्रदय से धन्यवाद दिया तो बाजपेयी जी ने कहा -आपकी पत्रिका है तो बहुत अच्छी लेकिन मुझे इसको तकिये के नीचे छुपाकर रखना पड़ता है I
विनोद लिखते हैं कि इतना सुनने के बाद मैंने Debonair को छोड़ने का आख़िरी बार मन बना लिया था कि जिस पत्रिका को मैं लोगों की नज़रों में ऊंचा उठाना चाहता था वह अभी भी वहीँ की वहीँ है ।
(विनोद मेहता की आत्मकथा -Lucknow Boy से चित्र सहित साभार -GPB )
