Uncategorized

उत्तराखंड 2025: आपदाओं और सड़क हादसों में चली गयीं 331 से ज्यादा जिंदगियां 

Nestled in the lap of the Himalayas, the state of Uttarakhand is world-renowned for its natural beauty, spiritual significance, and rich biodiversity. However, the year 2025 has emerged as a harsh warning for this mountainous state. Natural disasters and road accidents together have devastated hundreds of families. According to the State Disaster Management Department, 146 people lost their lives in natural disasters between April and December 2025, while 185 deaths were recorded in road accidents from June to December. These total of 331 deaths are not mere statistics; they represent the terrifying consequences of Uttarakhand’s geographical vulnerability, climate change, and human negligence.

— उषा रावत –  

हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड राज्य अपनी नैसर्गिक सुंदरता, आध्यात्मिक पहचान और जैव-विविधता के लिए विश्वविख्यात है। किंतु वर्ष 2025 इस पर्वतीय राज्य के लिए एक कठोर चेतावनी बनकर सामने आया। प्राकृतिक आपदाओं और सड़क दुर्घटनाओं ने मिलकर सैकड़ों परिवारों को उजाड़ दिया। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, अप्रैल से दिसंबर 2025 के बीच प्राकृतिक आपदाओं में 146 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि जून से दिसंबर के बीच सड़क दुर्घटनाओं में 185 मौतें दर्ज की गईं। कुल 331 मौतें केवल आँकड़े नहीं हैं, बल्कि यह उत्तराखंड की भौगोलिक संवेदनशीलता, जलवायु परिवर्तन और मानवीय लापरवाही की भयावह परिणति हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ: जलवायु परिवर्तन और नाजुक हिमालय

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएँ कोई नई बात नहीं हैं। भूस्खलन, बादल फटना, बाढ़ और हिमस्खलन यहाँ की भौगोलिक वास्तविकता हैं। लेकिन 2025 में इन आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति ने चिंता को और गहरा कर दिया। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरकाशी जिले में सर्वाधिक 29 मौतें दर्ज हुईं और 67 लोग लापता हुए, जो कुल प्राकृतिक आपदा मौतों का लगभग 20 प्रतिशत है। देहरादून में 38 और पौड़ी में 12 लोगों की जान गई। इनमें 10 बच्चों की मृत्यु विशेष रूप से पीड़ादायक है, जो बताती है कि आपदाएँ सबसे कमजोर वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं।

2025 का मानसून असामान्य रूप से उग्र रहा। पश्चिमी हिमालय में रिकॉर्ड-तोड़ वर्षा ने बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ा दिया। 3 से 5 अगस्त के बीच हुई अत्यधिक बारिश ने उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में विनाशकारी फ्लैश फ्लड को जन्म दिया। 5 अगस्त को हुए बादल फटने की इस घटना में लगभग 70 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक लोग लापता हो गए। विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने या ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) से जुड़ी हो सकती है, जो जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इन आपदाओं का प्रभाव केवल जनहानि तक सीमित नहीं रहा। राज्य में 6628 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए, 333 घर पूरी तरह नष्ट हो गए और 6861 पशुओं की मृत्यु हुई, जिनमें 6207 मुर्गियाँ शामिल हैं। कृषि, पशुपालन और पर्यटन पर निर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा। अप्रैल में पड़े सूखे, अनियमित बारिश और ओलावृष्टि ने पहले ही फसलों को नुकसान पहुँचा दिया था, जिससे ग्रामीण समुदायों की संवेदनशीलता और बढ़ गई।

यदि 2013 की केदारनाथ आपदा से तुलना करें, जिसमें लगभग 5700 लोगों की जान गई थी, तो 2025 की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि सीख लेने के बावजूद राज्य अब भी उसी जोखिम भरे रास्ते पर चल रहा है। अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई, सड़क और बांध परियोजनाओं का दबाव हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को लगातार कमजोर कर रहा है।

सड़क दुर्घटनाएँ: विकास की कीमत या प्रशासनिक विफलता?

प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ सड़क दुर्घटनाएँ उत्तराखंड की दूसरी बड़ी त्रासदी बनकर उभरी हैं। जून से दिसंबर 2025 के बीच 185 लोगों की सड़क हादसों में मृत्यु और 481 लोग घायल हुए। नैनीताल (27), टिहरी (26) और देहरादून (23) जिलों में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं। पहाड़ी क्षेत्रों की संकरी, घुमावदार सड़कों पर तेज़ रफ्तार वाहन किसी भी छोटी चूक को जानलेवा बना देते हैं।

इन दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में खराब सड़क स्थिति, अपर्याप्त सुरक्षा बैरियर, साइनेज की कमी, ओवरस्पीडिंग और शराब या नशीले पदार्थों के सेवन के बाद वाहन चलाना शामिल हैं। दिसंबर में पाले (फ्रॉस्ट) के कारण सड़कें फिसलन भरी हो गईं, जिससे 11 लोगों की मौत हुई। पर्यटन सीजन में वाहनों की संख्या बढ़ने से दुर्घटनाओं का खतरा और अधिक हो जाता है।

पिछले एक दशक में उत्तराखंड में 11,000 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। वर्ष 2024 में ही 851 मौतें दर्ज की गई थीं। 2023 में हुई 1691 दुर्घटनाओं में से 62 प्रतिशत घातक थीं, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। यह आँकड़े बताते हैं कि सड़क सुरक्षा को लेकर राज्य की नीति और क्रियान्वयन दोनों में गंभीर खामियाँ हैं।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

331 मौतें केवल व्यक्तिगत क्षति नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक और आर्थिक संकट को दर्शाती हैं। इनमें से अधिकांश मृतक 20 से 50 वर्ष के उत्पादक आयु वर्ग से थे, जिससे राज्य की श्रम शक्ति कमजोर होती है। बच्चों और महिलाओं की मौतें परिवारों की सामाजिक संरचना को तोड़ देती हैं। घायल लोगों के इलाज से स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ता है, जबकि पर्यटन में गिरावट राज्य की आय को प्रभावित करती है।

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है, लेकिन उत्तराखंड में इसका प्रभाव स्थानीय मानवीय गतिविधियों से और तीव्र हो गया है। अनियोजित शहरीकरण, पहाड़ काटकर सड़कें बनाना और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की अनदेखी दीर्घकालिक खतरे पैदा कर रही है।

समाधान और आगे की राह

इन त्रासदियों को रोकने के लिए बहुआयामी और दीर्घकालिक रणनीति आवश्यक है। प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में उन्नत पूर्वानुमान प्रणालियों को मजबूत करना होगा। भारतीय मौसम विभाग और इसरो के सैटेलाइट डेटा का बेहतर उपयोग कर समय रहते चेतावनी दी जा सकती है। वन संरक्षण, ढलानों का स्थिरीकरण और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। साथ ही, एसडीआरएफ जैसी एजेंसियों को तकनीकी और मानव संसाधनों से सशक्त करना होगा तथा समुदाय-आधारित चेतावनी प्रणालियाँ विकसित करनी होंगी।

सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सड़क बुनियादी ढाँचे में सुधार, नियमित रखरखाव, क्रैश बैरियर और स्पष्ट साइनेज आवश्यक हैं। ड्राइविंग लाइसेंस प्रक्रिया में सख्ती, ओवरस्पीडिंग और नशे में वाहन चलाने पर कठोर कार्रवाई तथा सर्दियों में विशेष सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!