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‘पाथजेनी’ (PathGennie): भारतीय वैज्ञानिकों का वह ‘जादुई चिराग’ जो बदल देगा नई दवाओं की खोज का तरीका

IN THE DEVELOPMENT OF NEW PHARMACEUTICALS, UNDERSTANDING THE “RESIDENCE TIME”—HOW LONG A DRUG MOLECULE STAYS ATTACHED TO ITS TARGET PROTEIN—IS OFTEN MORE CRITICAL THAN BINDING AFFINITY ALONE. HOWEVER, SIMULATING THE UNBINDING PROCESS (THE DRUG LEAVING THE PROTEIN POCKET) IS COMPUTATIONALLY EXPENSIVE. THESE “RARE EVENTS” HAPPEN ON TIME SCALES OF MILLISECONDS TO SECONDS, WHICH IS CHALLENGING OR EVEN IMPOSSIBLE TO ACCESS USING STANDARD CLASSICAL MOLECULAR DYNAMICS (MD) SIMULATIONS, EVEN WITH THE MOST POWERFUL SUPERCOMPUTERS. TRADITIONALLY, SCIENTISTS FORCE THESE EVENTS TO HAPPEN BY APPLYING ARTIFICIAL BIAS FORCES OR ELEVATED TEMPERATURES, WHICH CAN DISTORT THE PHYSICS OF THE INTERACTION, LEADING TO INACCURATE PREDICTIONS OF THE TRANSITION PATHWAY

                                                                              चित्र: समाधान: दिशा-निर्देशित एडाप्टिव सैम्‍पलिंग

-By- Jyoti Rawat /Aditya Rawat

दवाइयों की दुनिया में एक पुरानी कहावत है—”दवा का असरदार होना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है यह जानना कि वह शरीर में कितनी देर टिकेगी।” इसी पहेली को सुलझाने के लिए कोलकाता स्थित ‘एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज’ के वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी कम्प्यूटेशनल टूल विकसित किया है, जिसका नाम है—पाथजेनी (PathGennie)। यह नया सॉफ्टवेयर नई दवाओं की खोज (Drug Discovery) की जटिल और महंगी प्रक्रिया को न केवल तेज करेगा, बल्कि उसे अभूतपूर्व सटीकता भी प्रदान करेगा।

दवा की ‘विदाई’ का विज्ञान: चुनौती क्या थी? जब हम कोई दवा लेते हैं, तो उसके अणु हमारे शरीर के प्रोटीन (लक्ष्य) से चिपक जाते हैं। दवा कितनी असरदार होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह अणु उस प्रोटीन से कितनी देर तक जुड़ा रहता है (इसे ‘रेजिडेंस टाइम’ कहते हैं)। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कंप्यूटर पर इस बात का सटीक अनुमान लगाना बेहद मुश्किल था कि दवा का अणु प्रोटीन से अलग कैसे और कब होगा।

यह प्रक्रिया मिलीसेकंड या सेकंड में होती है, जो सुनने में कम लग सकता है, लेकिन कंप्यूटर सिमुलेशन की दुनिया में यह अनंत काल जैसा है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर भी पुरानी तकनीकों (जैसे क्लासिकल मॉलिक्यूलर डायनामिक्स) से इसे नहीं पकड़ पाते थे। वैज्ञानिक इसे जबरदस्ती करने के लिए अक्सर सिमुलेशन में कृत्रिम बल या बहुत ज्यादा तापमान का इस्तेमाल करते थे, जिससे नतीजे गलत हो जाते थे—ठीक वैसे ही जैसे किसी ताले को चाबी से खोलने के बजाय हथौड़े से तोड़ देना।

‘पाथजेनी’ का कमाल: डार्विन का सिद्धांत और स्मार्ट तकनीक प्रो. सुमन चक्रबर्ती के नेतृत्व में, दिब्येंदु मैती और शहीरा शाहिद की टीम ने इस समस्या का एक बेहद स्मार्ट समाधान निकाला है। ‘पाथजेनी’ किसी बाहरी ताकत या गर्मी का इस्तेमाल नहीं करता। इसके बजाय, यह ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ (Survival of the fittest) के सिद्धांत पर काम करता है।

इसे ऐसे समझें: कल्पना करें कि अंधेरे में रास्ता खोजने के लिए आपने 100 लोगों (सिमुलेशन के छोटे टुकड़ों) को भेजा। इनमें से जो लोग दीवार से टकरा गए, उन्हें वहीं रोक दिया गया। लेकिन जो लोग सही रास्ते की तरफ थोड़ा भी आगे बढ़े, उन्हें चुना गया और उन्हें ही आगे बढ़ने दिया गया। ‘पाथजेनी’ यही करता है। यह कंप्यूटर पर हजारों छोटे-छोटे सिमुलेशन शुरू करता है और केवल उन्हीं को आगे बढ़ाता है जो सही दिशा (दवा के अलग होने की प्रक्रिया) की ओर जा रहे हों। इससे बिना किसी छेड़छाड़ के, बिलकुल कुदरती तरीके से यह पता चल जाता है कि दवा कैसे काम करेगी।

सफलता के प्रमाण: कैंसर की दवा पर सटीक निशाना अपनी सटीकता साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने ‘पाथजेनी’ का परीक्षण वास्तविक दवाओं पर किया।

  1. बेंजीन और एंजाइम: इसने बहुत तेजी से पता लगा लिया कि बेंजीन का अणु एक गहरे एंजाइम पॉकेट से बाहर कैसे निकलता है।

  2. कैंसर की दवा (ग्लीवेक): सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब इसने कैंसर रोधी दवा ‘इमाटिनिब’ (ग्लीवेक) के प्रोटीन से अलग होने के तीन अलग-अलग रास्तों को खोज निकाला। ये नतीजे प्रयोगशाला में किए गए महंगे प्रयोगों से पूरी तरह मेल खाते थे।

भविष्य की राह: सबके लिए मुफ्त ‘जर्नल ऑफ केमिकल थ्योरी एंड कम्प्यूटेशन’ में प्रकाशित यह शोध केवल दवाओं तक सीमित नहीं है। ‘पाथजेनी’ एक ‘ओपन-सोर्स’ (मुफ्त) सॉफ्टवेयर है। इसका मतलब है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओं, उत्प्रेरक प्रक्रियाओं और अन्य जटिल वैज्ञानिक गुत्थियों को सुलझाने में कर सकते हैं।

भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत विकसित यह तकनीक ‘कंप्यूटर-सहायता प्राप्त दवा खोज’ (CADD) के क्षेत्र में भारत की एक बड़ी छलांग है। अब बिना करोड़ों खर्च किए और बिना भौतिकी के नियमों को तोड़े, हम बेहतर और सुरक्षित दवाइयां बना सकेंगे।


मुख्य बिंदु (सारांश):

  • नवाचार: पाथजेनी (PathGennie) – एक नया कम्प्यूटेशनल फ्रेमवर्क।

  • संस्थान: एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता।

  • लाभ: दवाओं के प्रोटीन से अलग होने की सटीक भविष्यवाणी, वो भी बिना कृत्रिम छेड़छाड़ के।

  • तकनीक: यह ‘प्राकृतिक चयन’ की तरह काम करता है, केवल सही दिशा में जाने वाले डेटा को आगे बढ़ाता है।

  • उपलब्धता: यह वैज्ञानिक समुदाय के लिए पूरी तरह निःशुल्क (ओपन-सोर्स) है।

प्रकाशन लिंक: https://pubs.acs.org/doi/10.1021/acs.jctc.5c01244

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