भारतीय रेलवे: 21वीं सदी का आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और राष्ट्रीय एकता का विस्तार
Indian Railways is carrying out some of the most ambitious infrastructure projects of the 21st century. These projects are strengthening national integration, improving logistics, and expanding the modern railway network. From iconic bridges in difficult terrain to freight corridors and high-speed rail, they reflect India’s growing engineering strength and long-term vision.

-A PIB Feature edited by Usha Rawat-
भारतीय रेलवे 21वीं सदी की कुछ सबसे महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी आधारभूत संरचना परियोजनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। ये परियोजनाएँ न केवल आधुनिक रेलवे नेटवर्क के विस्तार का माध्यम हैं, बल्कि राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने, लॉजिस्टिक्स व्यवस्था को मजबूत करने और भारत की इंजीनियरिंग क्षमता को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं। दुर्गम भौगोलिक क्षेत्रों में बने ऐतिहासिक पुलों से लेकर समर्पित माल ढुलाई गलियारों और हाई-स्पीड रेल परियोजनाओं तक, भारतीय रेलवे विकास के नए मानक स्थापित कर रहा है।
उधमपुर–श्रीनगर–बारामूला रेल लिंक: रणनीतिक उपलब्धि
भारतीय रेलवे की सबसे महत्वपूर्ण और रणनीतिक परियोजनाओं में उधमपुर–श्रीनगर–बारामूला रेल लिंक (यूएसबीआरएल) शामिल है। लगभग 44,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह 272 किलोमीटर लंबी रेल लाइन हिमालय के अत्यंत दुर्गम और संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुजरती है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर को वर्षभर देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
इस परियोजना का सबसे प्रमुख आकर्षण चिनाब रेलवे पुल है, जो विश्व का सबसे ऊँचा रेलवे मेहराबदार पुल है। यह पुल चिनाब नदी के तल से 359 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, जो एफिल टॉवर से भी अधिक है। 1,315 मीटर लंबे इस स्टील आर्च ब्रिज को अत्यधिक भूकंपीय गतिविधियों और तेज़ हवाओं का सामना करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। यह पुल भारत की उन्नत इंजीनियरिंग क्षमता और तकनीकी कौशल का प्रतीक बन चुका है।

नया पंबन रेलवे पुल: समुद्री इंजीनियरिंग की मिसाल
तमिलनाडु में निर्मित नया पंबन रेलवे पुल भारतीय रेलवे की एक और उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह भारत का पहला वर्टिकल–लिफ्ट समुद्री रेलवे पुल है। लगभग 550 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह 2.08 किलोमीटर लंबा पुल कुल 100 स्पैन से बना है, जिसमें 99 स्पैन 18.3 मीटर लंबे हैं और एक मुख्य स्पैन 72.5 मीटर का है।
इस पुल का सबस्ट्रक्चर अत्यंत मजबूत है, जिसमें 333 पाइल और 101 पाइल कैप शामिल हैं। भार संतुलन के लिए 99 एप्रोच गर्डर लगाए गए हैं। चुनौतीपूर्ण समुद्री परिस्थितियों और तेज़ तटीय हवाओं को ध्यान में रखते हुए इसे विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है। पुल की दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक संक्षारण-रोधी प्रणाली अपनाई गई है, जिससे बिना रखरखाव के इसकी सेवा अवधि 38 वर्ष और न्यूनतम रखरखाव के साथ 58 वर्ष तक बढ़ सकती है।
यह पुल रामेश्वरम जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ और पर्यटन स्थल को बेहतर रेल संपर्क प्रदान करता है। अपनी उत्कृष्ट डिजाइन और तकनीकी श्रेष्ठता के कारण इस पुल को स्टील स्ट्रक्चर्स एंड मेटल बिल्डिंग्स अवार्ड 2024 से सम्मानित किया गया है।

पूर्वोत्तर भारत: कनेक्टिविटी की नई पहचान
भारतीय रेलवे ने पूर्वोत्तर भारत में भी ऐतिहासिक प्रगति की है, जहाँ दशकों तक कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती बनी रही। वर्ष 2014 के बाद से अब तक इस क्षेत्र में 1,679 किलोमीटर से अधिक नई रेल लाइन बिछाई गई है और 2,500 किलोमीटर से अधिक मार्ग का विद्युतीकरण किया गया है। इसके अलावा, 470 से अधिक सड़क ओवरब्रिज और अंडरब्रिज का निर्माण किया गया है।
बैराबी–सैरांग नई रेल लाइन के पूरी तरह चालू होने से मिज़ोरम की राजधानी आइजोल पहली बार राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जुड़ गई है। इसके साथ ही आइजोल पूर्वोत्तर की चौथी राजधानी बन गई है, जिसे रेल संपर्क प्राप्त हुआ है। यह क्षेत्रीय विकास और राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
अमृत भारत स्टेशन योजना के अंतर्गत पूर्वोत्तर के 60 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास किया जा रहा है। सिवोक–रंगपो, दीमापुर–कोहिमा और जिरीबाम–इंफाल जैसी प्रमुख परियोजनाएँ भी तेज़ी से प्रगति पर हैं। ये योजनाएँ क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को नई गति प्रदान कर रही हैं।

समर्पित माल ढुलाई गलियारे: लॉजिस्टिक्स में क्रांति
माल ढुलाई के क्षेत्र में भारतीय रेलवे समर्पित माल ढुलाई गलियारों (डीएफसी) के माध्यम से देश की लॉजिस्टिक्स प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन ला रहा है। पूर्वी समर्पित माल ढुलाई गलियारा (ईडीएफसी), जो लुधियाना से सोननगर तक 1,337 किलोमीटर लंबा है, पूरी तरह चालू हो चुका है।
वहीं, पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारा (डब्ल्यूडीएफसी), जो जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह टर्मिनल को दादरी से जोड़ता है, कुल 1,506 किलोमीटर लंबा है, जिसमें से 1,404 किलोमीटर (लगभग 93.2 प्रतिशत) कार्य पूरा हो चुका है। दोनों गलियारों की कुल लंबाई 2,843 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 96.4 प्रतिशत मार्ग चालू किया जा चुका है।
इन गलियारों से यात्री ट्रेनों पर दबाव कम हुआ है, माल परिवहन का समय घटा है, लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आई है और उद्योगों व बंदरगाहों को अधिक विश्वसनीय परिवहन सुविधा मिली है। इससे देश की आर्थिक गतिविधियों को उल्लेखनीय बढ़ावा मिला है।

हाई–स्पीड रेल: भविष्य की ओर कदम
भारतीय रेलवे हाई-स्पीड रेल के क्षेत्र में भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। मुंबई–अहमदाबाद हाई–स्पीड रेल परियोजना का कार्यान्वयन नेशनल हाई-स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NHSRCL) द्वारा किया जा रहा है। 21 दिसंबर 2025 तक, कुल 508 किलोमीटर की परियोजना में से 331 किलोमीटर वायडक्ट का निर्माण पूरा हो चुका है। 410 किलोमीटर के लिए पियर का कार्य समाप्त हो चुका है।
अब तक 17 नदी पुल, 5 पीएससी पुल और 11 स्टील पुल पूरे किए जा चुके हैं। लगभग 272 किलोमीटर आरसी ट्रैक बेड का निर्माण और 4,100 से अधिक ओएचई मास्ट की स्थापना हो चुकी है। महाराष्ट्र में सुरंग निर्माण कार्य प्रगति पर है, जबकि सूरत और अहमदाबाद में रोलिंग स्टॉक डिपो विकसित किए जा रहे हैं।
यह परियोजना भारत में विश्वस्तरीय हाई-स्पीड रेल तकनीक की नींव रखेगी और मुंबई तथा अहमदाबाद जैसे दो प्रमुख आर्थिक केंद्रों के बीच यात्रा समय में उल्लेखनीय कमी लाएगी।
