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अब बाघों की तस्करी को लेकर रार : सरकार बोली कोई तस्करी नहीं होती, मगर 547 बाघ जरूर मरे

-उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो –
नयी दिल्ली, 12  नवंबर।  अंतराष्ट्रीय संगठन ट्रैफिक द्वारा जारी नई रिपोर्ट “स्किन एंड बोन्स” के अनुसार संरक्षण के प्रयासों को कमजोर करते हुए, शिकारी बाघों को उनकी त्वचा, हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों के लिए निशाना बना रहे हैं। रिपोर्ट की माने तो पिछले 23 वर्षों में औसतन हर साल करीब 150 बाघों और उनके अंगों को अवैध तस्करी के दौरान जब्त किया गया है। लेकिन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  ने  इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा है कि महज सनसनीखेज समाचार बनाने के इरादे से प्रकाशित की गई उक्त समाचार रिपोर्ट गलत तथ्यों, आंकड़ों और भ्रामक सूचनाओं पर आधारित है। यह समाचार कुछ ऐसे रिपोर्टों पर निर्भर है, जो जब्ती से संबंधित रिपोर्ट किए गए आंकड़े सही हैं और जब्त किए गए बाघ के हिस्से बाघों की मृत्यु का आंकड़ा निकालने की दृष्टि से प्रामाणिक हैं आदि जैसे अवास्तविक धारणा का निर्माण करते हैं।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  ने  इस रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा है कि वर्ष 2017-2021 की अवधि के दौरान, एनटीसीए ने 547 बाघों की मृत्यु दर्ज की है, जिनमें से 393 बाघ प्राकृतिक कारण, 154 मामले विषाक्तता (25), फंदे में फंसने (9), गोलीबारी/उन्मूलन (7) के साथ दौरे (55), बिजली का झटका (22) और अवैध शिकार (33) के रूप में दर्ज मामले से संबंधित हैं। सख्त अर्थों में बाघों की मौत, जिसके लिए शरीर के अंगों और अवैध वन्यजीव व्यापार के उद्देश्य से किए गए अवैध शिकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, की वास्तविक संख्या 88 है, जोकि पिछले पांच वर्षों के दौरान दर्ज की गई बाघों की मृत्यु की कुल संख्या का 16 प्रतिशत है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा बाघों की मृत्यु दर के व्यवस्थित आंकड़े सिर्फ वर्ष 2012 से ही संग्रहित किए जा रहे हैं और 2012 से पहले बाघों की मृत्यु दर के विवरण को उद्धृत करने वाली कोई भी रिपोर्ट अप्रमाणित तथ्यों/धारणाओं और सुनी – सुनाई साक्ष्यों पर ही निर्भर होगी।

जबकि “स्किन एंड बोन्स” रिपोर्ट कहती है कि एक तरफ देश में जहां बाघों को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं वहीं साथ ही भारत में इनका अवैध व्यापार भी फल-फूल रहा है। पिछले 23 वर्षों में इनकी अवैध तस्करी की दुनिया भर में कुल 2,205 घटनाएं सामने आई हैं जिनमें से 34 फीसदी यानी 759 घटनाएं अकेले भारत में दर्ज की गई हैं। जो 893 यानी जब्त किए गए 26 फीसदी बाघों के बराबर है। इसके बाद 212 घटनाएं चीन में जबकि 207 मतलब 9 फीसदी इंडोनेशिया में दर्ज की गई हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पिछले 23 वर्षों में जनवरी 2000 से जून 2022 के बीच 50 देशों और क्षेत्रों में बाघों और उनके अंगों की तस्करी की यह जो घटनाएं सामने आई हैं उनमें कुल 3,377 बाघों के बराबर अंगों की तस्करी की गई है। गौरतलब है कि दुनिया में अब केवल 4,500 बाघ ही बचे हैं, जिनमें से 2,967 भारत में हैं । अनुमान है कि 20वीं सदी के आरम्भ में इनकी संख्या एक लाख से ज्यादा थी।

रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले 23 वर्षों में तस्करी की जितनी घटनाएं सामने आई हैं उनमें से 902 घटनाओं में बाघ की खाल बरामद की गई थी। इसके बाद 608 घटनाओं में पूरे बाघ और 411 घटनाओं में उनकी हड्डियां बरामद की गई थी। ट्रैफिक ने आगाह किया कि है कि बरामदी की यह घटनाएं बड़े पैमाने पर होते इनके अवैध व्यापार को दर्शाती हैं लेकिन यह इनके अवैध व्यापार की पूरी तस्वीर नहीं हैं क्योंकि बहुत से मामलों में यह घटनाएं सामने ही नहीं आती हैं।

लेकिन मंत्रालय के अनुसार  बाघों से संबंधित अखिल भारतीय अनुमान, जोकि बाघों, सहयोगी परभक्षियों और उनके शिकार आधार के लिए एक विज्ञान आधारित निगरानी कार्यक्रम है और जिसे 2006 से लागू किया जा रहा है, ने भारतीय बाघों की वृद्धि दर छह प्रतिशत प्रतिवर्ष होने का अनुमान लगाया है। बाघों की आबादी की यह प्राकृतिक वृद्धि दर अवैध शिकार सहित विभिन्न कारणों से बाघों की मृत्यु दर को कम कर देती है। इसके अलावा, उच्च बाघ घनत्व वाले क्षेत्रों में उच्च मृत्यु दर्ज की जाती है क्योंकि स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रियाएं मौजूद होती हैं।

बाघों की मृत्यु दर्ज करने के लिए, एनटीसीए ने कड़े मानक स्थापित किए हैं और ऐसा करने वाला शायद दुनिया का बाघों की उपस्थिति वाला एकमात्र देश है। बाघ के शव के निपटान के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) विकसित की गई है जिसमें पोस्टमार्टम की निगरानी के लिए एक समिति का गठन और बाद में शव को जलाकर निपटाना शामिल है। आंत के अंगों को फोरेंसिक जांच के लिए संरक्षित किया जाता है। बाघ अभयारण्यों / बाघों की उपस्थिति वाले राज्यों द्वारा प्रस्तुत विस्तृत अंतिम रिपोर्ट, सहयोगी साक्ष्यों/दस्तावेजों के आधार पर एनटीसीए में बाघ की मौत के कारण का पता लगाया जाता है और मृत्यु के मामले को तदनुसार बंद किया जाता है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत प्रोजेक्ट टाइगर डिवीजन और एनटीसीए कानून प्रवर्तन और उन्नत तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके बाघ अभयारण्यों की बढ़ी हुई सुरक्षा के माध्यम से बाघ, जोकि भारत की अनूठी वन्यजीव प्रजातियों में शामिल है, की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

 

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