बॉबी में दिखती है उम्मीद की किरण
-दिनेश शास्त्री-
18 वीं लोकसभा का चुनाव संपन्न हो जाने के बाद जो नवनीत निकला है उसमें उत्तराखंड में टिहरी संसदीय सीट से निर्दलीय बॉबी पंवार भविष्य के लिए उम्मीद की किरण के रूप में उभरे हैं।
कल क्या होगा, कोई नहीं जानता, न जाने कल परिस्थितियां बॉबी को किस दिशा में ले जाएं या फिर कौन से कॉम्प्रोमाइज करने पड़ जाएं, कोई नहीं बता सकता किंतु आज की तिथि में वह मात्र 26 साल का नौजवान दीवार पर बहुत कुछ बड़ी इबारत लिख गया है। भाजपा और कांग्रेस जैसे संसाधनों से परिपूर्ण दलों की तुलना में नितांत खाली हाथ चुनाव में जो प्रदर्शन किया, वह न सिर्फ चौंकाता है बल्कि भविष्य के लिए रास्ता बताने वाली परिघटना के रूप में दर्ज है।
टिहरी सीट पर बेशक भाजपा की माला राज्यलक्ष्मी शाह जीती हैं किंतु 168081 वोट प्राप्त कर बॉबी पंवार ने राजनीति के जानकारों को न सिर्फ चौंकाया है बल्कि बड़ी पार्टियों के लिए खतरे का सायरन भी बजाया है। इसे आप वैकल्पिक राजनीति का नाम दे सकते हैं। जब चारों ओर राजनीति के बियाबान में सब कुछ अर्थ केंद्रित हो गया हो, उस स्थिति में संसाधनों के बिना बड़ी लकीर खींचना क्या उपलब्धि नहीं है?
बॉबी पंवार पर सबसे ज्यादा भरोसा उत्तरकाशी जिले के मतदाताओं ने जताया है तो उसके अनेक कारण भी हैं। वहां पुरोला, यमुनोत्री और गंगोत्री में अकेले बॉबी को 66020 वोट मिले जबकि भाजपा की रानी को 48526 और कांग्रेस के गुनसोला को मात्र 10853 वोट से संतोष करना पड़ा। इस महाभारत में बॉबी पंवार अभिमन्यु की तरह अकेला ही नहीं बल्कि निहत्था भी था। उसके पास पूंजी थी तो युवाओं के उत्साह की और भविष्य की आकांक्षाओं की। पूरी कांग्रेस को भाजपा में शामिल करने के बावजूद अगर कोई 26 साल का नौजवान निर्दलीय चुनाव लड़ कर झंडा गाढ़ता है तो उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अकेले उत्तरकाशी जिले में बॉबी ने 17500 से अधिक वोटों की बढ़त ली तो वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीद की किरण तो साफ दिख ही रही है।
पूरे टिहरी संसदीय क्षेत्र की बात करें तो भाजपा को 462603, कांग्रेस को 190110 और निर्दलीय बॉबी पंवार को 168081 वोट मिले। बॉबी को मिले वोट विशुद्ध रूप से जनभावनाओं का ज्वार कहा जा सकता है। बेरोजगार नौजवानों ने उसकी इस लड़ाई में साथ तो दिया ही, उनके अभिभावकों ने भी समर्थन दिया। नौकरियों की बंदरबांट हर कालखंड में होती रही है लेकिन बॉबी ने उस दौर में संघर्ष किया, जेल यात्रा की तो वह युवाओं की आंख का तारा बन गया। युवाओं को लगा कि न्याय बॉबी ही दिला सकता है।
मूल निवास, भू कानून और जल – जंगल – जमीन के मुद्दे पर बॉबी ने पूरे प्रदेश में जगह बनाई है। युवाओं के बीच उसने एक मुकाम बनाया है तो कई स्थापित नेताओं की चिंता भी बढ़ा दी है। बॉबी पंवार मूल रूप से चकराता विधानसभा क्षेत्र के लाखामंडल से है और एक साधारण परिवार से संबंधित है। एक दशक पहले देश ने जब चाय वाले में उम्मीद देखी तो भविष्य में एक गरीब मां के बेटे में उत्तराखंड के लोग भी देख सकते हैं। शर्त यह है कि कदम डगमगाएं नहीं बल्कि मजबूती से आगे बढ़े।
एक बात और – चुनावी राजनीति में प्रचार अभियान का जितना महत्व होता है, उससे अधिक बूथ प्रबंधन का होता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के पास बड़ा कैडर है तो उनके लिए यह बेहद आसान होता रहा है लेकिन एक नौसिखिए निर्दलीय के लिए दो ढाई हजार बूथों पर अपने अभिकर्ता रखना नितांत टेढ़ी खीर है। यह सब कुछ समर्पण और धन की उपलब्धता पर निर्भर करता है।
इस बार तो टिहरी के कई बूथों पर कांग्रेस का नामलेवा नहीं दिखा तो उस लिहाज से बॉबी की क्या बिसात थी? उसने तो पूरा चुनाव ही लोगों के सहारे लड़ा और इतने वोट बटोर लिए कि उत्तराखंड की विधानसभा के चुनाव खासकर पर्वतीय सीटों के नतीजों के संदर्भ में देखें तो उसने कम से कम दस सीटों पर विजय के बराबर वोट हासिल किए हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि आज जब बड़े राजनीतिक दल जो आलाकमान से नियंत्रित होते हैं, उनके एजेंडे राष्ट्रीय संदर्भ और नेताओं की सोच के अनुरूप तय होते हैं, इस कारण क्षेत्रीय अस्मिता, आकांक्षा और संस्कृति के मूल तत्व हासिए पर चले जाते हैं।
उत्तराखंड की मूल अवधारणा के लिए बॉबी अगर सतत रूप से इंडोर्स करते हैं तो उसमें लोगों को उम्मीद की किरण तो नजर आती ही है किंतु यह सब देशकाल, परिस्थिति पर निर्भर करेगा। प्रदूषणकारी तत्वों से अगर बॉबी अगले तीन साल अछूता रहा तो युवा वर्ग उसमें भविष्य देख सकता है क्योंकि प्रदेश के नौ की आशाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को किसी दल ने पूरा नहीं किया है। यह कमी तो राज्य गठन के पहले दिन से महसूस की जा रही है।