अनुवाद की विधा में एक सार्थक
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
मेरे हाथ में यह पुस्तक महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की छब्बीस कहानियों के संस्कृत अनुवाद का (द्वितीय भाग) है, जो उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार द्वारा वर्ष २०१३ में प्रकाशित किया गया था किन्तु मुझे यह कल शाम ही पता चला जब यह पुस्तक अकस्मात ही मुझे भेंट स्वरूप प्राप्त हुई । इस संग्रह के अनुवादक ख्याति प्राप्त संस्कृत विद्वान डाॅ बुद्धदेव शर्मा जी हैं, जो विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में संस्कृत भाषा के आचार्य रह चुके हैं और देहरादून के महादेवी कन्या पाठशाला (पीजी कालेज) में भी प्रधानाचार्य के पद पर रह चुके हैं ।
इस संग्रह में पहली कहानी ” पौषस्य रात्रि:(पूष की रात) , रामलीला, सद्गति:, वृद्धा पितृव्या (बूढ़ी काकी) और गृह जामाता(घर जमाई )मेरी मनपसंद कहानियां सम्मिलित हैं। हाईस्कूल और इंटर के पाठ्यक्रम में हम पंचतंत्र और भोज प्रबंध की छोटी छोटी कहानियां पढ़ते थे लेकिन आधुनिक काल की हिन्दी कहानी संस्कृत में पढ़ने का यह पहला मौका है । मैं संस्कृतज्ञ तो नहीं हूं लेकिन क्योंकि ये कहानियां कभी मैंने हिंदी में पढ़ी थी इसलिए संस्कृत में पढ़ने में अंदाज लगाकर