ब्रह्मांड की पहली आवाज़ें और एक छोटे कंप्यूटर की बड़ी भूमिका

A tiny digital receiver system based on a compact single-board computer (SBC) about the size of a credit card, could now help us unravel the mysteries of the Cosmic Dawn, when the very first stars flickered to life. The cosmic dawn is when the first stars and galaxies formed in the Universe, significantly altering the course of its evolution. Scientists believe this mysterious epoch holds the key to understanding the Universe as we see it today, making it an irresistible frontier for discovery. However, very little is known about this period due to a lack of precise observations. This can help detect a faint radio signal emitted from hydrogen atoms (21-cm signal), which carries imprints of several events of the Cosmic Dawn. Capturing this signal is like hearing a whisper in a stadium full of noise because it is buried under interference, millions of times stronger than the signal itself.
By- Usha Rawat
ज़रा सोचिए, ब्रह्मांड के जन्म के बाद वह क्षण जब पहली बार तारे और आकाशगंगाएँ बनीं। उसी रहस्यमय समय को वैज्ञानिक “कॉस्मिक डॉन” कहते हैं। यह वह दौर था जिसने आगे चलकर पूरे ब्रह्मांड की दिशा तय की। लेकिन इसकी झलक हमें आज तक साफ़-साफ़ नहीं मिल सकी है।अब इस राज़ को सुलझाने की कोशिश कर रहा है एक बेहद छोटा लेकिन ताकतवर उपकरण—क्रेडिट कार्ड जितना छोटा कंप्यूटर।
कॉस्मिक डॉन क्यों है ख़ास?
कॉस्मिक डॉन वह युग था जब पहली बार तारे जगमगाए और आकाशगंगाओं ने आकार लेना शुरू किया। यही से ब्रह्मांड का असली सफ़र शुरू हुआ। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस युग को समझना ब्रह्मांड के रहस्यों की चाबी है। लेकिन यह इतना पुराना और इतना धुँधला समय है कि अब तक इसके बारे में बहुत कम जानकारी जुटाई जा सकी है।
“प्रतुश” मिशन – चंद्रमा से झाँकने की कोशिश
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के सहयोग से रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) की टीम ने एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है – जिसका नाम है प्रतुश (PRATUSH), यानी Probing Reionization of the Universe Using Signal from Hydrogen।
यह एक खास तरह का रेडियोमीटर है, जिसे भविष्य में चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करने की योजना है। वहाँ यह हाइड्रोजन परमाणुओं से निकलने वाले बेहद हल्के रेडियो सिग्नल (21 सेमी तरंग) को पकड़ने की कोशिश करेगा। इन्हीं संकेतों में कॉस्मिक डॉन की कहानियाँ छुपी हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं – ऐसे हल्के संकेत पकड़ना वैसा ही है जैसे किसी शोरगुल से भरे स्टेडियम में किसी की हल्की-सी फुसफुसाहट सुनने की कोशिश करना।
क्यों चुना गया चंद्रमा का दूरवर्ती हिस्सा?
पृथ्वी पर यह सिग्नल रेडियो शोर और एफएम प्रसारण की वजह से दब जाता है। लेकिन चंद्रमा का दूर का हिस्सा ब्रह्मांड का सबसे शांत कोना माना जाता है – न कोई रेडियो हस्तक्षेप, न आयनमंडल की बाधा। इसलिए “प्रतुश” को वहाँ ले जाकर काम करने की योजना है।
प्रयोगशाला से चाँद तक का सफ़र
प्रतुश टीम ने अभी इसका एक लैब मॉडल तैयार किया है। इसमें एंटीना से मिले संकेतों को रिसीवर बढ़ाता है, फिर एक खास चिप – FPGA (Field Programmable Gate Array) – उन्हें प्रोसेस करती है।
इन सबका “मास्टर कंट्रोलर” है एक छोटा-सा कंप्यूटर – सिंगल बोर्ड कंप्यूटर (SBC)। यही एंटीना, रिसीवर और FPGA के बीच तालमेल बिठाता है।
आश्चर्य की बात यह है कि यह कंप्यूटर किसी बड़े सर्वर जैसा नहीं, बल्कि एक साधारण रास्पबेरी पाई जैसा है – छोटा, हल्का और बेहद कम ऊर्जा खपत वाला। भविष्य में अंतरिक्ष योग्य इसी तरह के कंप्यूटर से इसे बदला जाएगा।
छोटे कंप्यूटर की बड़ी ताक़त
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यह कंप्यूटर डेटा को रिकॉर्ड और सुरक्षित रखता है।
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ज़रूरी कैलीब्रेशन करता है ताकि माप सटीक रहे।
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उच्च गति वाले रेडियो डेटा को सँभालकर शुरुआती प्रोसेसिंग करता है।
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आकार में छोटा, बिजली की खपत में कम और बेहद भरोसेमंद।
वैज्ञानिकों के शब्दों में, यह एक डेस्कटॉप या लैपटॉप का छोटा-सा संस्करण है, जो अंतरिक्ष की कठोर परिस्थितियों में भी काम कर सकता है।
प्रयोग और नतीजे
टीम ने 352 घंटे तक एक संदर्भ सिग्नल रिकॉर्ड किया। नतीजा यह निकला कि रिसीवर का शोर बहुत नीचे (कुछ मिलीकेल्विन तक) गिर गया। इसका मतलब यह कि सिस्टम इतना संवेदनशील है कि भविष्य में कॉस्मिक डॉन के बेहद हल्के सिग्नल को भी पकड़ सकता है।
नई पीढ़ी के सॉफ्टवेयर और बेहतर हार्डवेयर के साथ यह और भी सक्षम हो जाएगा।
वैज्ञानिकों की राय
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ई. गिरीश बी.एस. (रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट) – “सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर आकार, दक्षता और प्रदर्शन का बेहतरीन संतुलन देता है।”
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ई. श्रीवाणी के.एस. – “यह प्रतुश के डिजिटल रिसीवर का सबसे अहम हिस्सा है, जो मास्टर कंट्रोलर और डेटा रिकॉर्डर दोनों की भूमिका निभाता है।”
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सौरभ सिंह और मयूरी एस. राव – “इस तरह की तकनीकें कॉस्मिक डॉन के रहस्यों को सौर मंडल के सबसे शांत हिस्से से पकड़ने में मददगार होंगी।”
शायद भविष्य में प्रतुश हमें यह बता सके कि पहले तारों ने ब्रह्मांड को कैसे आकार दिया। यह नई भौतिकी के रहस्यों से भी परदा उठा सकता है।और इसकी सफलता का श्रेय सिर्फ़ विशाल अंतरिक्ष यान या भारी-भरकम उपकरणों को नहीं, बल्कि एक छोटे-से कंप्यूटर को भी जाएगा—जो चुपचाप ब्रह्मांड की पहली आवाज़ें सुनने की तैयारी कर रहा है।
