भारतीय होने’ की परिभाषा पर पुनर्विचार का समय: दूनवासियों ने एंजेल चकमा को दी श्रद्धांजलि

देहरादून, 31 दिसंबर। वैली ऑफ वर्ड्स, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन और दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर ने मिलकर 24 वर्षीय एंजेल चकमा की स्मृति में एक नागरिक शोक सभा का आयोजन किया।
पश्चिम त्रिपुरा ज़िले के नंदननगर निवासी और एमबीए छात्र एंजेल चकमा पर 9 दिसंबर को नस्लीय नफरत से प्रेरित हमला किया गया था, जिसमें उनके छोटे भाई माइकल के साथ उन पर कुछ लोगो ने हमला किया। एंजेल ने 26 दिसंबर को अस्पताल में दम तोड़ दिया।
इस सभा का उद्देश्य एंजेल के लिए न्याय की मांग करना और समाज को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करना था।श्रद्धांजलि सभा में सभी आयु वर्ग के लोगों ने भाग लिया।
वक्ताओं के शब्दों में इस घटना को लेकर गहरा दुख, आक्रोश और निराशा झलकी। कई नागरिकों ने कहा कि देहरादून और उत्तराखंड को यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे कि भविष्य में ऐसी घटनाएं कभी न हों।
इस अवसर पर एन. रविशंकर ने कहा, “हमें उम्मीद है कि देहरादून और उत्तराखंड इस घटना से सीख लेकर एक नया अध्याय शुरू करेंगे।”
वर्षों से पूर्वोत्तर भारत में कार्य कर रहे संजय अग्रवाल ने कहा, “शोकाकुल परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि ऐसी शर्मनाक घटनाएं दोबारा न हों।”
दूनवासी इंदरपाल कोहली, जिन्होंने अस्पताल में एंजेल के पिता की सहायता की थी, ने उन पलों को याद करते हुए कहा, “मुझे शर्म आती है कि ‘देवभूमि’ में ऐसी घटना घटी।”
इंदु पांडे ने इस घटना को किसी भी सभ्य समाज पर धब्बा बताया। उन्होंने कहा, “ऐसी घटनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम कहां खड़े हैं और हमारा भविष्य क्या होगा। यह गहन आत्मचिंतन का समय है।”
अनूप नौटियाल ने कहा, “हम सब सामूहिक शर्म के साथ सिर झुकाए खड़े हैं, क्योंकि हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां किसी को सिर्फ ‘अलग दिखने’ के कारण मार दिया जाता है।”
कुसुम रावत ने उत्तराखंड में पढ़ने वाले पूर्वोत्तर के छात्रों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह संदेश जाना चाहिए कि देहरादून में पढ़ने आने वाला हर छात्र सुरक्षित है और उनके परिवारों को भरोसा मिलना चाहिए कि उनके बच्चों के साथ कुछ भी गलत नहीं होगा।
एन.एस. नापलचियाल ने अपने सशक्त वक्तव्य में कहा, “यह देहरादून और उत्तराखंड के लिए सबसे अंधकारमय क्षण है कि हमें नस्लीय अपराध पर शोक सभा करनी पड़ रही है। यह हमारे लिए अकल्पनीय था। अब समय आ गया है कि हम ‘भारतीय होने’ की परिभाषा पर पुनर्विचार करें।”
युवा छात्रा संजना अग्रवाल ने भावुक स्वर में कहा, “मैं बहुत गुस्से में हूं। ऐसा नहीं होना चाहिए था। यह वह देहरादून नहीं है जिसमें मैं बड़ी हुई हूं।”
जगमोहन मेहरात्रा ने कहा, “मैं 75 वर्षों से यहां रह रहा हूं। देहरादून शिक्षा और छात्रों के लिए अब तक सुरक्षित शहर के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन ये शहर और राज्य के लिए एक बेहद बड़ा धक्का है”
एंजेल के रूममेट राहुल भी प्रार्थना सभा में शामिल हुए और अपने होनहार मित्र के बारे में भावुक शब्दों में बात की, जिसकी ज़िंदगी असमय समाप्त हो गई।
कार्यक्रम का समापन डॉ. संजीव चोपड़ा ने एंजेल को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए किया। उन्होंने कहा, “हम सब दूनवासी इस त्रासदी पर शर्मसार हैं। हम यह संकल्प लेते हैं कि प्रेम और शांति का संदेश फैलाएंगे और विश्वविद्यालयों के प्रमुखों से अपील करेंगे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। इस दुःख की घड़ी में हम एंजेल के परिवार के साथ खड़े हैं।”
