ब्लॉग

अम्बेडकर दबे कुचले समाज की आवाज थे

 


– अनन्त आकाश
14 अप्रैल 1891 मिथ आर्मी कैन्टोमेन्ट में जन्मे भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर तत्कालीन समाज के सर्वाधिक कमजोर परिवार से सम्बन्ध रखते थे । जो कि सदियों से सामन्ती व्यवस्था के जकड़न के साथ ही भारी भेदभाव झेलने के लिए विवश था ।  उन दिनों दलितों एवं पिछड़ों तथा महिलाओं को  सांमती व्यवस्था में काफी कुछ प्रतिबन्धों को झेलना पड़ता था। उन पर  खुले तौर पर सार्वजनिक स्थानों में  आने जाने में भी भारी प्रतिबन्ध था ।  उनका जीवन रूढ़िवादी समाज की इच्छा तथा दया पर निर्भर था ।

यह सब कुछ अम्बेडकर  एवं उनके परिवार के साथ भी पीढ़ी दर पीढ़ी होता चला आ रहा था । दलित परिवार से होने के नाते सामन्ती व्यवस्था की कुप्रथाओं एवं शोषण एवं उत्पीड़न का  शिकार उन्हें पल – पल सहना पड़ा ।   शुरुआत उनके स्कूली दिनों  से ही हुई । भेदभाव एवं सामाजिक प्रतिबन्धों  एवं कुरीतियों से जुझते हुऐ उन्होंने अपनी पढा़ई जारी रखी ।  बहुमुखी प्रतिभा के धनी अम्बेडकर शिक्षा में भी अब्बल थे । उन्होंने भारी कष्टों को सहते हुऐ 1917 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से डायरेक्टेट की उपाधि ग्रहण कर सदियों से चली आ रही परम्परा को तोड़ा तथा लम्बी छलांग लगाकर साबित किया कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन हो ,उससे लड़ा भी जा सकता है और जीता भी जा सकता है।

वह  सामाजिक भेदभाव के खिलाफ दलितों, महिलाओं तथा समाज के दबे कुचले वर्ग के जागरण के लिए लिखते भी रहे तथा आन्दोलन भी करते रहे । हिन्दू धर्म की बिषमताओं के खिलाफ उन्होंने काफी कुछ लिखा  तथा हिन्दू  धर्मान्धता के चलते उन्होंने बौद्ध धर्म तक को अपनाया।
उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म पर विपरीत टिप्पणी पर सावरकर को बुरी तरह लताड़ा उन्हें समाज को विभाजित करने वाला संकीर्ण इंसान कहा। अम्बेडकर कई मायने में गाधीजी से भी असहमति रखते थे । वह आधुनिक भारत के संविधान निर्माता थे , जिनकी  दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप दलितों,अल्पसंख्यकों,महिलाओं,आदिवासियों  तथा समाज के कमजोर तबकों को शिक्षा, नौकरियों में आरक्षण आदि का अधिकार मिला ।  जिस कारण आज उनके जीवन स्तर में सुधार देखने को मिला ।

संविधान में हरेक व्यक्ति के लिए मौलिक अधिकार का प्रावधान भी उन्हीं की देन है । अम्बेडकर शिक्षा को परिवर्तन का हथियार मानते थे, इसलिएवह  शिक्षा पर जोर  देते  थे तथा दलित समाज को  अपने आगे बढाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करते थे । वे इस आजादी से खुश नहीं थे, क्योंकि उनके अनुसार यह आजादी अधूरी थी । जिसमें बुनियादी नीतियों में ज्यादा बदलाव नहीं था ।
संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की जयंती  पर हम सभी को उन  ताकतों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लेना चाहिए, जो साम्प्रदायिक, जातीय, आर्थिक आधार पर देश की जनता के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तथा देश को आज ऐसे जगह खड़ा करके रख दिया जहाँ आम जनता अपने को असहाय महसूस कर रही है ।

बाबा साहेब ने अपने जीवन मेंं विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने का संकल्प नहीं छोड़ा ,इसलिए देश की जनता  को मिल जुलकर कारपोरेटपरस्त, साम्प्रदायिक, फूटपरस्त नीतियों  तथा राजनैतिक रूप से अधिनायकवादी प्रवृति के खिलाफ एकजुटता के साथ अपने संघर्ष को तेज कर बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर समता मूलक समाज के स्वप्न को साकार करना होगा ,यही सही मायनों में उनके प्रति श्रद्धांजलि  होगी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!