ब्लॉग

पशु -पक्षियों में एक दूसरे की सहायता करने की समझ होती है –

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –
“गीधराज सुनि आरत बानी I रघुकुल तिलक नारि पहिचानी II
अधम निशिचर लीन्हें जाई I जिमि मलेच्छ बस कपिला गाईII ”
एक दिन मैं नेशनल जियोग्राफिक चेनल में Animal World कार्यक्रम देख रहा था उसमें एक शेर एक भैंसे पर जैसे ही झपटा मारने को दौड़ा तो भैंसो के झुंड ने मिलकर अपने साथी की जान बचाने में सफल हुए और शेर को भागना पड़ा।

अकेले लड़ेंगे तो आपके पंख काट दिए जायेंगे । रामायण काल में एक पक्षी का यही हाल हुआ जब उसने सीता के अपहरणकर्ता दानवराज का विरोध कर अकेले ही उसका मुकाबला करने का साहस कर दिखाया था ।

उसने रावण को चुनौती देते हुए कहा – “कथं राजा स्थितो धर्मः परदारन परामृशेत I
रक्षणीया विशेषेण राजदारामहाबलः II ”
इस विरोध के कारण उस बेचारे की जान भी चली गई थी ।
आप इस घटना को सिर्फ कहानी मत समझिए बल्कि यह सभी के लिए एक संदेश है ।

पक्षियों में भी एक अच्छी समझ होती है । आजकल लोग अन्याय होते देखकर भी घटनास्थल से चुपचाप खिसक जाते है और जब उनके अपने पर कोई मुसीबत आती है तो उम्मीद करते हैं कोई उनकी मदद करे ।

*पक्षपात *की सही परिभाषा प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा ने इस लाजवाब पेंटिंग के जरिए समझाने का सुन्दर प्रयास किया है ।
वर्ष 2008 में मैसूर भ्रमण के दौरान मुझे जगमोहन पैलेस में वाडियार आर्ट गैलरी देखने का अवसर मिला जहां मैने राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित यह आयल पेंटिंग देखी। इसमें रावण द्वारा सीता के अपहरण की उस घटना को चित्रित किया गया है जिसमें पक्षीराज जटायु ने सीता के अपहरणकर्ता रावण का बहादुरी के साथ विरोध कर उसके इस अपकृत को रोकना चाहा था , लेकिन सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के उपक्रम में वह अपने पंख ही गंवा बैठा । रावण ने उसके सारे पंख काट डाले थे और वह लहू लुहान होकर जमीन पर आ गिरा था और फिर उस घायल अवस्था में अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहा।पक्षी के प्राण तो पंख में ही होते हैं ।

धार्मिक साहित्य में यह एक पहला और अकेला उदाहरण है जब किसी अकेले प्राणी ने आततायी का विरोध करने की हिम्मत दिखाई थी ।

सीता का अपहरण होते हुए उस समय कई अन्य लोगों ने भी देखा जरूर होगा लेकिन विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई । चित्रकार रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग के माध्यम से इसी घटना को हाई लाइट कर कला के उद्देश्य को सार्थक किया है । इस पेंटिंग के माध्यम से उसने समाज को सीधा साफ संदेश दिया है कि आततायी का विरोध मिलकर करना चाहिए , अकेले करोगे तो तुम्हारी जान जटायु की तरह खतरे में पड़ सकती है।

भाषा की दृष्टि से देखें तो *पक्षपात* का सही अर्थ इस रूपक के जरिए समझाने का सुन्दर प्रयास किया गया है। समाज में जब कोई ऐसा दुर्दांत दुरात्मा पैदा होता है तो वह अपने विरोधियों के पंख कतरने लग जाता है, इनकी उड़ान को रोक देता है और यदि उस दुरात्मा के पास राजसत्ता भी हो तो उसके कर्मचारी भी इस जघन्य कृत्य में उसका सहयोग ही करते हैं। आज भी यही होता है अन्यथा पीड़ित स्त्रियों और उनके अभिभावकों को
को धरना विरोध करने की क्या जरूरत थी !

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!