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उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता, हकीकत ज़ीरो और फसाना ज्यादा,पढ़िए सच्चाई क्या है !

उत्तराखण्ड में पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट ने अपनी पहली ही बैठक में पहला प्रस्ताव पारित कर राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का ऐलान कर दिया। यह वायदा मुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश की जनता से किया था। इसके पीछे तर्क यह है कि गोवा राज्य में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है और संविधान को अनुच्छेद 44 भी सरकार को निर्देश देता है। नये कानून का मजमून तैयार करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया है। यह बेहद जटिल विषय राज्य सरकार का न होने के कारण इसे उत्तराखण्ड सरकार का महज खयाली पुलाव ही कहा जा सकता है। लेकिन इससे केन्द्र की मोदी सरकार पर दबाव अवश्य पड़ेगा, क्योंकि यह जनसंघ के जमाने से ही भाजपा का मूल विषय रहा है और सुप्रीम कोर्ट भी अनेकों बार भारत सरकार से इसके अपेक्षा कर चुका है। इसलिये उन कारणों को जानना भी जरूरी है कि जो मोदी-शाह की जोड़ी धारा 370 को हटाने जैसा असंभव से लगने वाला कदम उठा सकती है, वह इतनी चाहतों के बाद भी क्यों नहीं समान नागरिक संहिता लागू करा सकी!

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