हिमाचल के उपचुनाव नतीजे उत्तराखण्ड समेत चार राज्यों में भाजपा के लिये खतरे की घण्टी !
-जयसिंह रावत
लोकसभा की तीन और 14 राज्य विधानसभाओं की 30 सीटों पर हुऐ उपचुनाव में भले ही भाजपा ने सर्वाधिक विधानसभा सीटें जीत कर अपना दबदबा कायम रखा है, लेकिन कुछ राज्यों में अपनी ही सीटें न बचा पाने से पार्टी नेतृत्व की पेशानी में बल अवश्य पड़ गये हैं। क्योंकि सवाल कुछ सीटें जीतने का नहीं बल्कि कुछ राज्यों में अपनी सत्ता और अजेय छवि बचाने का है। खास कर भाजपा को हिमाचल प्रदेश से खासी निराशा हाथ लगी है जिसका नकारात्मक संदेश पंजाब और उत्तराखण्ड जैसे निकटवर्ती राज्यों में जा सकता है, जहां कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल विधानसभा के चुनाव भी नवम्बर और गुजरात में दिसम्बर 2022 में ही होने हैं। उपचुनाव के नतीजों ने बिखरे विपक्ष और खास कर कांग्रेस को आशा की किरण अवश्य दिखाई है। इन नतीजों से सबक लेकर विपक्ष भाजपा के खिलाफ पुनः एकजुट होने का प्रयास कर सकता है।

एण्टी इन्कम्बेसी का संकेत दे गये हिमाचल के नतीजे
लोकसभा और विधान सभाओं के लिये 30 अक्टूबर को हुये उप चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और शिसेना को एक-एक सीट मिली है। विधानसभाओं के उपचुनाव में भाजपा के लिये 30 में से 16 सीटों की बड़ी जीत भी खुशियों का पैगाम लेकर नहीं आयी। जबकि कांग्रेस उससे आधी सीटें जीतने के बाद भी फूले नहीं समा रही है। भाजपा ने लोकसभा उप चुनाव में कांग्रेस के हाथों अपनी मण्डी की सीट गंवा दी। उस सीट पर 2014 और 2019 में लगातार भाजपा के राम स्वरूप शर्मा चुनाव जीते थे और अब उप चुनाव में स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह जीत गयीं। विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस ने अर्की और फतेहपुर की अपनी दोनों सीटें तो जीती ही है, साथ ही भाजपा से जुब्बल कोटखाई सीट भी छीन ली। भाजपा को इस पहाड़ी राज्य से शायद ही इस तरह की उम्मीद होगी। क्योंकि सामान्यतः उप चुनाव में रूलिंग पार्टी के ही उम्मीदवार जीतते हैं। लेकिन हिमाचल में इस बार सत्ताधारी भाजपा विपक्ष से सीटें छीनना तो रहा दूर अपनी ही सीट हार गयी।

सत्ता में होते हुये मध्य प्रदेश में भी गंवाई सीट
इस उप चुनाव में मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपनी सरकार होते हुये अपनी दो सीटें तो बचा लीं मगर कांग्रेस के हाथों रेनगांव सीट नहीं बचा पायी। जबकि कांग्रेस ने इस उप चुनाव में अपनी एक भी सीट नहीं गंवाई। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और उसने वहां की दोनों रिक्त हुयी विधानसभा सीटें जीत लीं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा। पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के विजय अभियान का जारी रहना भाजपा के लिये सन्तोष का विषय है। वैसे भी इस क्षेत्र में किसी भी राष्ट्रीय के प्रति लोगों की आस्था होना अच्छा संकेत माना जा सकता है।
चार अन्य राज्यों में भी एण्टी इन्कम्बेंसी का खतरा
आगामी विधानसभा चुनावों के आलोक में इन चुनावों को सेमिफाइनल नही ंतो कम से कम क्वार्टर फाइनल तो अवश्य ही माना जा सकता है। अगले साल फरबरी से लेकर मार्च तक उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। नवम्बर और दिसम्बर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव भी होने हैं। इसलिये इन उपचुनावों को राजनीतिक रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है। खास कर भाजपा की हिमाचल प्रदेश के उपचुनाव में हुयी हार में दूरगामी परिणाम देखे जा रहे हैं। सत्ताधारी दल का उपचुनाव में हारना एण्टी इन्कम्बेंसी (सत्ता विरोधी) लहर का ही संकेत माना जाता है। इस संकेत के इतनी जल्दी मिलने की उम्मीद नहीं की जा रही थी। इसलिये इसमें सत्ता विरोधी लहर की प्रचण्डता को भांपा जा सकता है। माना जा रहा था कि राजा वीरभद्रसिंह के निधन के बाद हिमाचल में अब कांग्रेस का कोई सशक्त खेवनहार नहीं रह गया। यह भी माना जा रहा था कि वहां आने वाले चुनाव में एण्टी इन्कम्बेंसी का असर भी नहीं होगा और एक बार कांग्रेस तथा दूसरी बार भाजपा के सत्ता में आने का सिलसिला टूट जायेगा। मुख्यमंत्री के अपने जिला मण्डी में भी भाजपा की दुर्दशा भी यही संकेत कर रही है कि हिमाचल में बारी-बारी से सत्ता बदलने का राजनीतिक रिवाज अभी नहीं गया। हिमाचल की हार का मुख्य कारण महंगाई और बेरोजगारी माना जा रहा है, जो कि सारे देश की समस्या है। भागोलिक और सांस्कृतिक समानता एवं जुड़ाव के कारण उत्तराखण्ड में दो पार्टी सिस्टम हिमाचल प्रदेश से ही आया है।

पड़ोसी राज्य उत्तराखण्ड में भी हो सकता है असर
राजनीति में चमत्कार होते रहते हैं। इसलिये किसी भी पार्टी की पहले ही जीत या हार सुनिश्चित करना व्यवहारिक नहीं है। फिर भी उप चुनावों के नतीजों से आने वाले चुनावों के लिये अनुकूल या प्रतिकूल महौल तो बन ही जाता है। गत 30 अक्टूबर को हुये उपचुनावों में हिमाचल प्रदेश के उपचुनाव के नतीजों के संकेत पंजाब और उत्तराखण्ड तक जा सकते हैं। उत्तराखण्ड में भी हिमाचल की ही तरह एण्टी इन्कम्बेंसी का असर चुनावों पर पड़ता है और हिमाचल की ही तरह उत्तराखण्ड में भी बारी-बारी से कांग्रेस तथा भाजपा सत्ता में आती हैं। इसलिये हिमाचल के उपचुनाव नतीजे एण्टी इन्कम्बेंसी का मिथ और हर बार सत्ता बदलने का सिलसिला तोड़ने को लेकर आशान्वित भाजपा के लिये शुभ संकेत नहीं है।
घटाटोप में काग्रेस के लिये आशा की किरण
इतने बड़े देश में एक छोटे से राज्य के बहुत छोटे से चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिये भले ही बहुत बड़ी जीत न हो मगर अंधेरे के घटाटोप में आशा की एक किरण अवश्य ही हैं। यह भी तब कि जब सत्ताधारी भाजपा तो रही दूर विपक्ष भी कांग्रेस के साथ चलने से कतरा रहा है और तो और स्वयं कांग्रेस का सी-23 ग्रुप भी राहुल गांधी को बोझ मान कर नेतृत्व परिवर्तन चाहता है। ऐसी स्थिति में कांग्रेसजनों के लिये आगामी 5 विधानसभाओं के चुनावों में आशा की किरण नजर आनी स्वाभाविक ही है।
भारत के राजनीतिक नक्शे के रंग का सवाल
भारत वर्ष जहां 545 लोकसभा सीटें, 245 राज्य सभा सीटें और 4130 से ज्यादा विधानसभा सीटों अलावा भी सेकड़ों विधान परिषद सीटें हो वहां दो-चार सीटों पर हार के बड़े मायने तो नहीं मगर इसको नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। खास कर कुछ क्षेत्र या सीटें ऐसी होती हैं जिनका संदेश दूर तक जाता है। आगामी मार्च तक जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां पंजाब के अलावा बाकी मणिपुर, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और गोवा में भाजपा सत्ता में है। कांग्रेस के पास गंवाने के लिये केवल एक राज्य पंजाब है जबकि भाजपा के पास 4 राज्य हैं। इन चारों राज्यों में अगर हिमाचल प्रदेश की तरह एण्टी इन्कम्बेंसी चली तो लगभग भगोया हो चुके भारत के राजनीतिक नक्शे में बदलाव आ सकता है, जिसका असर 2024 के चुनाव पर भी पड़ सकता है। इसके साथ ही जो राजनीतिक दल अब तक नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करने के लिये कांग्रेस को साथ लेने में संकोच कर रहे थे, उनका संकोच अब दूर हो सकता है। बिहार में कांग्रेस ने ऐन उपचुनाव से पूर्व राष्ट्रीय जनता दल के साथ जो अलगाव का रास्ता अपनाया उसका नतीजा दोनों ही दलों ने देख लिया। हो सकता है कि उनकी गलतफहमियां अब दूर हो जांय। बहरहाल उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के चुनावों में उलझी भाजपा के रणनीतिकारों को इन उपचुनाव नतीजों ने सोच में तो डाल ही दिया है।