सशस्त्र सेना झंडा दिवस : राष्ट्रीय सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक

–उषा रावत
भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और गौरव की रक्षा में हमारी तीनों सेनाएँ—थल सेना, नौसेना और वायुसेना—अमहत्वपूर्ण योगदान देती हैं। सीमाओं पर कठोर चुनौतियों का सामना करते हुए हमारे सैनिक दिन-रात देश की रक्षा में तत्पर रहते हैं। उनके इसी बलिदान और समर्पण को सम्मान देने तथा नागरिकों और सैनिकों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 7 दिसंबर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है।
सशस्त्र सेना झंडा दिवस की शुरुआत वर्ष 1949 में की गई थी। इस दिन से एक परंपरा शुरू हुई जिसमें देश के नागरिक सैनिकों के कल्याण के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करते हैं। यह सहयोग विशेष रूप से शहीद हुए सैनिकों के परिवारों, युद्ध में घायल हुए वीरों तथा सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों के पुनर्वास के लिए उपयोग किया जाता है। इस दिन त्रिवर्णीय झंडा (नीला, लाल और हल्का नीला)—जो क्रमशः वायुसेना, थल सेना और नौसेना का प्रतिनिधित्व करता है—लोगों में वितरित किया जाता है ताकि नागरिक इसका प्रतीकात्मक मूल्य समझते हुए सैनिकों के प्रति सम्मान व्यक्त कर सकें।
झंडा दिवस केवल एक आयोजन भर नहीं है, बल्कि नागरिकों और सैनिकों के बीच भावनात्मक जुड़ाव का एक माध्यम भी है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र की सुरक्षा का दायित्व निभाने वाले सैनिक हमारे लिए अपने जीवन तक की आहुति देने को तत्पर रहते हैं। उनके परिवारों की सहायता करना, उनके सम्मान और गौरव को बनाए रखना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इस दिन आयोजित कार्यक्रमों, रैलियों और जन-जागरूकता अभियानों के माध्यम से जनता को सैनिक कल्याण के महत्व से अवगत कराया जाता है।
सशस्त्र सेना झंडा दिवस का महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में यह जागरूकता लाना है कि सैनिक केवल युद्धभूमि पर ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं, शांति अभियानों और राष्ट्रीय निर्माण कार्यों में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। इस दिन दिया गया छोटा-सा सहयोग भी किसी सैनिक परिवार के लिए आशा का आधार बन सकता है।
अंततः, सशस्त्र सेना झंडा दिवस हमारे देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए निरंतर प्रयत्नशील सैनिकों के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम सेना के प्रति सम्मान, संवेदना और सहयोग की भावना से ओत-प्रोत होकर राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएँ। हर नागरिक का छोटा-सा योगदान भी सैनिकों के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि बन सकता है।
