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पुस्तक समीक्षा : “उत्तराखण्ड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास”

This book sheds comprehensive light on Uttarakhand’s complete ecosystem – encompassing its past, present, and future – all under one roof. It not only enriches the knowledge of readers from every section of society but also inspires them to better understand their state and contribute to its development. One of the book’s special achievements is that the author has presented the real ground realities of the state before the common people with impartial analysis and firm conviction, providing clear directions for the future. Rare photographs and important documents have made this book even more collectible.

रियर एडमिरल ओम प्रकाश सिंह राणा, एवीएसएम, वीएसएम (सेनि)
भूतपूर्व महानिदेशक, नौसेना आयुध निरीक्षण
पूर्व महाप्रबंधक, ब्रह्मोस एयरोस्पेस
वर्तमान सदस्य, विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (उद्योग–2),
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार

Author Jay Singh Rawat

कई दशकों के संघर्ष के उपरांत 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य का गठन हुआ। हाल ही में राज्य ने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण किए हैं। इस महत्वपूर्ण अवसर के परिप्रेक्ष्य में वरिष्ठ पत्रकार श्री जय सिंह रावत द्वारा लिखित पुस्तक “उत्तराखण्ड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास” प्रदेश और देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत की गई है। पुस्तक का विमोचन 22 नवंबर 2025 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा किया गया।

श्री रावत अब तक पत्रकारिता, इतिहास, संस्कृति और हिमालयी विषयों पर आठ पुस्तकें लिख चुके हैं, जिनमें से दो नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित की गई हैं। यह पुस्तक उत्तराखण्ड के वर्ष 2000 से पूर्व की परिस्थितियों, उत्तर प्रदेश के अंतर्गत प्रशासनिक व्यवस्था, राज्य गठन की प्रक्रिया तथा राज्य बनने के बाद की विकास यात्रा का समग्र और निष्पक्ष विवरण प्रस्तुत करती है। इसमें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में हुई प्रगति, जन-आकांक्षाओं पर खरा उतरने में सरकारों की सफलताएँ एवं असफलताएँ, राजनीतिक अस्थिरता, बार-बार नेतृत्व परिवर्तन, अनियमितताएँ और घोटालों जैसे संवेदनशील विषयों को तथ्यात्मक रूप से उजागर किया गया है।

पुस्तक को पाँच भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक एवं प्रशासनिक पृष्ठभूमि, टिहरी रियासत का भारत में विलय, गोरखा शासन, ब्रिटिश काल तथा तराई क्षेत्र के प्रशासन का विस्तार से वर्णन किया गया है।


द्वितीय भाग में उत्तराखण्ड आंदोलन, जनक्रांति, पुलिस दमन, आंदोलन के शहीदों तथा माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद के महत्वपूर्ण निर्णयों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।

तृतीय भाग में “उत्तराखण्ड का सपना—सड़क से संसद तक” के अंतर्गत संसद में हुई बहसों, लाल किले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा राज्य की घोषणा, उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 1998 एवं 2000 तथा इससे जुड़ी राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं का विस्तार से वर्णन है।

चतुर्थ भाग में वर्ष 2000 से 2020 तक उत्तराखण्ड की यात्रा को समेटते हुए लोकसभा एवं विधानसभा सीटों का निर्धारण, सरकारों का गठन, प्रशासनिक ढाँचा, अधिकारियों की कैडर नीति, पहला परिसीमन, राजनीतिक उथल-पुथल, गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने की अनिश्चितता, बार-बार नेतृत्व परिवर्तन, चुनाव, पलायन आयोग, मुख्यमंत्रियों की नीतियाँ एवं उपलब्धियाँ, सामाजिक मुद्दे, प्रशासनिक पहल, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, विकास योजनाएँ, आर्थिक परिदृश्य, प्राकृतिक आपदाएँ एवं उनका प्रबंधन, छात्रवृत्तियाँ तथा एनएच-74 घोटाले जैसी घटनाओं की निष्पक्ष जानकारी दी गई है।

पाँचवें एवं अंतिम भाग में कोविड काल की अनियमितताएँ, सत्ता संघर्ष, प्रवासी संकट, महाकुंभ से जुड़े विवाद, प्रवासन, गरीबी और शिक्षा जैसी सामाजिक चुनौतियाँ, आर्थिक संकट और पुनर्प्राप्ति के प्रयास, डिजिटल अनुकूलन, भूमि सुधार अधिनियम (2020) से जुड़े विवाद, पर्यावरणीय प्रभाव, आपदाएँ, घोटाले तथा वर्तमान सरकार की नई पहलें और प्रयोगों का उल्लेख किया गया है।

पुस्तक के अंत में संलग्न आलेखों के माध्यम से उत्तराखण्ड के राजनीतिक सफर, सफलता–असफलता, घोटाले, लोकायुक्त की अनुपस्थिति, शराब पर निर्भर राजस्व नीति, भ्रष्टाचार, पहाड़ी भूमि और संस्कृति के संरक्षण हेतु भू-कानून की आवश्यकता, बढ़ता बजट, सीमित आय के स्रोत और बढ़ते कर्ज जैसे विषयों पर लेखक ने अत्यंत संतुलित और विचारोत्तेजक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।

पुस्तक की संरचना, क्रमबद्ध प्रस्तुति और विश्लेषणात्मक दृष्टि उत्तराखण्ड के प्राचीन काल से लेकर राज्य गठन और वर्तमान तक के संघर्षों को समझने में सहायक है। इसमें राज्य के मूल निवासी, भू-कानून, पलायन एवं रिवर्स पलायन, आर्थिक व्यवस्था, विकास, पर्यावरण, आधारभूत संरचना, आपदा प्रबंधन, सशक्तिकरण, प्रशासनिक सुधार, पर्यटन और समग्र विकास जैसे विषयों को गहन अध्ययन, शोध एवं प्रामाणिक संदर्भों के आधार पर आशा और समाधान के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।

मेरे विचार में यह पुस्तक एक ही छत के नीचे उत्तराखण्ड के भूत, वर्तमान और भविष्य के समग्र इको-सिस्टम पर प्रकाश डालती है। यह प्रत्येक वर्ग के पाठकों को न केवल ज्ञानवर्धन प्रदान करती है, बल्कि अपने राज्य को समझने और उसके विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित भी करती है। पुस्तक की एक विशेष उपलब्धि यह है कि लेखक ने निष्पक्ष विश्लेषण और दृढ़ विश्वास के साथ राज्य की वास्तविक परिस्थितियों को जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया है, जो भविष्य के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करती है। दुर्लभ चित्रों और  महत्वपूर्ण दस्तावेजों ने इस पुस्तक को और अधिक संग्रहणीय बने है. 

अतः मैं “उत्तराखण्ड राज्य का नवीन राजनीतिक इतिहास” पुस्तक को प्रत्येक उत्तराखण्डी तथा इस राज्य से जुड़े सभी पाठकों के लिए अवश्य पठनीय मानता हूँ और इसे पढ़ने की अनुशंसा करता हूँ।

अंत में, मैं श्री जय सिंह रावत को इस महत्वपूर्ण, शोधपरक और जनहितकारी कृति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।

 

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