संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूचियों का संक्षिप्त विवरण
By- Shyam Singh Rawat
भारतीय संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूचियाँ उन क्षेत्रों के प्रशासन और शासकीय संरचनाओं से संबंधित हैं, जहाँ विशेष रूप से आदिवासी या जनजातीय लोग रहते हैं। दोनों अनुसूचियाँ जनजातीय समुदायों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के उद्देश्य से बनाई गई हैं, लेकिन इनका क्षेत्राधिकार और प्रशासनिक ढांचा भिन्न है। यहाँ दोनों के बीच अंतर दिया गया है—
*1. प्रभावित क्षेत्र—*
5वीं अनुसूची—यह अनुसूची देश के उन राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होती है, जो मध्य, पश्चिमी और पूर्वी भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं। इसके तहत मुख्यतः छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
6ठी अनुसूची—यह पूर्वोत्तर भारत के चार राज्यों – असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम – के जनजातीय क्षेत्रों पर लागू होती है। इसमें इन राज्यों के विशिष्ट जनजातीय समुदायों के प्रशासन के लिए स्वायत्तशासी क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की गई है।
*2. प्रशासनिक संरचना—*
5वीं अनुसूची—इसमें अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, लेकिन इन क्षेत्रों का प्रशासन राज्य सरकार के अधीन होता है। केंद्र सरकार के पास राज्यपाल के माध्यम से इन क्षेत्रों की निगरानी और प्रशासनिक हस्तक्षेप करने की शक्तियाँ होती हैं। राज्यपाल को इन क्षेत्रों में कानूनों के अनुपालन के बारे में निर्देश देने का अधिकार होता है।
*आदिवासी सलाहकार परिषद (Tribal Advisory Council)*
हर राज्य में एक आदिवासी सलाहकार परिषद होती है, जो राज्यपाल को आदिवासियों के हितों के संरक्षण और उनके कल्याण के लिए सलाह देती है।
6ठी अनुसूची—इसमें जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्वायत्तशासी जिला और क्षेत्रीय परिषदें बनाई जाती हैं। ये परिषदें स्थानीय शासन के लिए विशेष अधिकार रखती हैं, जिनमें न्यायिक और विधायी शक्तियाँ भी शामिल होती हैं। परिषदें जनजातीय कानून, परंपराओं और रीति-रिवाजों के आधार पर प्रशासन करती हैं। इसके अंतर्गत चार राज्यों में विशेष स्वायत्त क्षेत्रीय और जिला परिषदें गठित की गई हैं, जिनके पास कानून बनाने, कर लगाने और विवादों को हल करने की शक्तियाँ होती हैं।
*3. विधायी अधिकार—*
5वीं अनुसूची—इसमें राज्यपाल को अधिकार दिए गए हैं कि वह राज्य के किसी भी सामान्य कानून को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने से रोक सकता है या उसमें संशोधन कर सकता है, ताकि जनजातीय समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा हो सके। लेकिन यहाँ स्वायत्त विधायी निकायों की स्थापना नहीं होती।
6ठी अनुसूची—इसमें स्वायत्तशासी परिषदों को स्थानीय विधायी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। ये परिषदें भूमि, वन, जल, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य स्थानीय मामलों पर कानून बना सकती हैं। इनके पास कर लगाने और न्यायिक विवादों को निपटाने के भी अधिकार होते हैं।
*4. न्यायिक व्यवस्था—*
5वीं अनुसूची—यहाँ कोई विशेष न्यायिक व्यवस्था नहीं है, लेकिन राज्यपाल की शक्ति के तहत जनजातीय परिषदों या संस्थाओं को विवादों के निपटारे में मदद के लिए परामर्श किया जा सकता है।
6ठी अनुसूची—स्वायत्तशासी परिषदों के पास न्यायिक अधिकार होते हैं। ये परिषदें जनजातीय रीति-रिवाजों और परंपराओं के आधार पर न्याय कर सकती हैं। इसके तहत कुछ आपराधिक और नागरिक मामलों में निर्णय लेने का अधिकार होता है।
*5. कानूनी स्वायत्तता—*
5वीं अनुसूची—राज्यपाल को यह अधिकार होता है कि वह राज्य के जनजातीय हितों के अनुसार कानूनों को लागू या संशोधित कर सके। यहाँ राज्य सरकार और राज्यपाल का अधिक हस्तक्षेप होता है।
6ठी अनुसूची—स्वायत्त परिषदों के पास अधिक कानूनी और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है। वे अपने क्षेत्र में जनजातीय नियमों के अनुसार काम कर सकती हैं और उनका कार्यक्षेत्र स्थानीय शासन तक विस्तारित होता है।
*6. केंद्रीय भूमिका—*
5वीं अनुसूची—इसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्रमुख भूमिका दी गई है। राष्ट्रपति जनजातीय मामलों पर समय-समय पर विशेष आयोग बना सकता है, और राज्यपाल के पास अनुसूचित क्षेत्रों के कानूनों पर नियंत्रण करने की शक्ति होती है।
6ठी अनुसूची—इसमें केंद्र सरकार की भूमिका सीमित होती है। स्थानीय परिषदों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार दिए गए हैं, ताकि वे अपने क्षेत्र के जनजातीय लोगों के विकास और प्रशासन में सीधे भूमिका निभा सकें।
*सारांश*
5वीं अनुसूची—मुख्यतः मध्य और पश्चिमी भारत के अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों के लिए है, जहाँ प्रशासनिक और विधायी शक्तियाँ राज्य सरकार और राज्यपाल के अधीन होती हैं।
6ठी अनुसूची—पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों के लिए है, जहाँ स्वायत्तशासी परिषदें अधिक स्वतंत्रता और अधिकारों के साथ स्थानीय शासन का संचालन करती हैं।
संविधान की 5वीं अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा और विकास के लिए बनाई गई है, और इन क्षेत्रों के लिए कई विशेष प्रावधान होते हैं। केंद्र सरकार इस अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के विकास और कल्याण के लिए विशेष योजनाएं और फंड उपलब्ध कराती है। केंद्र और राज्य सरकारें इन क्षेत्रों में विकास के लिए विशेष योजनाएं, जैसे आदिवासी उप-योजनाएं (Tribal Sub-Plan), विकास निधि और विशेष सहायता देती हैं। इनका उद्देश्य आदिवासी समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना होता है। इसके साथ ही 5वीं अनुसूची में शामिल क्षेत्रों के लिए राज्यपाल को विशेष अधिकार भी दिए जाते हैं, ताकि वे केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को इन क्षेत्रों में लागू कर सकें।