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भारत के7 दशकों की अद्भुत विकास यात्रा का आईना है देश का बजट

India’s budget documents over the last seventy years since Independence capture the struggles, achievements, frustrations, and leaps of faith of India as a nation. These mirror the nation’s aspirations and achievements. The jejune budget figures spring to life in the context of India’s post-colonial history.– Jaysingh Rawat                             


-जयसिंह रावत
स्वतंत्र भारत का पहला बजट पहले वित्त मंत्री शानमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को भारत के विभाजन और भयंकर दंगों की पृष्ठभूमि में पेश किया था। तब से लेकर अब तक भारत में 80 से अधिक बजट पेश किए जा चुके हैं। भारत के पहले वित्त मंत्री चेट्टी द्वारा पेश पहले बजट में कुल व्यय 19,739 करोड़ रुपये था, जिसमें राजस्व घाटा 2459 करोड़ रुपये था। जबकि 23 जुलाइ 2024 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा पेश किये गये बजट में कुल परिव्यय 48.21 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है । ताजा बजट  के अनुसार 2025 तक राजकोषीय घाटा भी 16,13,312  करोड़ तक होने का अनुमान है।  देश के सालाना बजट की यह 77 साल लम्बी यात्रा भारत के बजट ने 244.22 प्रतिशत लम्बी छलांग लगायी है जो कि अपने आप में भारत के विकास की यात्रा की एक लम्बी छलांग की गाथा है। यह गाथा केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि चहुमुखी विकास की है। आजादी के समय देश बेहद कठिन दौर से गुजर रहा था। सदियों की गुलामी के बाद आजादी की रोशनी देखते ही देश के विभाजन और भीषण दंगों की मानवीय त्रासदी के साथ ही भूख और गरीबी भी मुंहबायें खड़ी थी। जबकि आज हमारा देश दुनियां की आर्थिक महाशक्ति बनने के मार्ग पर अग्रसर है और चांद पर पहुंचने के बाद अन्तरिक्ष में एक के बाद एक छलांगें लगा रहा है।

 

             A summary of the first Union budget of independent India was presented on 26 November 1947. Collection JSR

 

पहले बजट भाषण में विषम परिस्थितियों का जिक्र

स्वतंत्र भारत के पहले वित्त मंत्री शानमुखम चेट्टी ने जब 26 नवम्बर 1947 को संविधान सभा भवन (बाद में संसद भवन) में जब अपना पहला ऐतिहासिक बजट पेश किया तो उन्होंने अपने भाषण में देश के सामने आ रही आर्थिक समेत विभिन्न चुनौतियों और देश की माली हालत का जिक्र करने के साथ ही देश के विभाजन और भयंकर दंगों की परिस्थतियों का भी उल्लेख किया था। उन्होंने खास कर पंजाब और नार्थ फ्रंटियर के दंगों का भी उल्लेख कर राष्ट्र द्वारा उस आशांति की चुकाई गयी भारी कीमत का भी उल्लेख किया था। इस उल्लेख का अभिप्राय यह था कि हम भारत की उन्नति आपसी भाइचारे और सद्भाव से ही कर सकते हैं। विकास की इस 7 दशक से लम्बी शानदार और गौरवमय यात्रा को अगर हम नकारेंगे तो हम उन राष्ट्र निर्माता महापुरुषों के योगदान का अपमान ही करेंगे।

 


भारत के आर्थिक विकास की नींव में पहला बजट

पहले बजट को राष्ट्र निर्माण की तात्कालिक चुनौतियों का समाधान करना था, जिसमें विभाजन के बाद पुनर्निर्माण के प्रयास और नए स्वतंत्र राष्ट्र के लिए एक स्थिर आर्थिक ढाँचा स्थापित करना शामिल था। पहले केंद्रीय बजट ने स्वतंत्रता के बाद के युग में भारत की आर्थिक नीतियों की दिशा तय की, जिसमें आत्मनिर्भरता, औद्योगिक विकास और सामाजिक कल्याण पर जोर दिया गया। दरअसल स्वतंत्र भारत का पहला केंद्रीय बजट भारत के आर्थिक विकास की नींव रखने और एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की चुनौतियों का समाधान करने में एक महत्वपूर्ण कदम था। भारत के सामने उस समय ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद भारत को अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के चुनौती थी। उस समय के सीमित वित्तीय संसाधनों और बुनियादी ढाँचे के समक्ष एक विशाल और विविध आबादी की चुनौती थी। विभाजन से संबंधित व्यवधानों और तेजी से औद्योगिकीकरण की आवश्यकता के बीच राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करना भी जटिल दायित्व था। शुरुआती सरकार को भूमि सुधार और गरीबी उन्मूलन सहित औपनिवेशिक युग से विरासत में मिली असमानताओं और सामाजिक अन्याय को संबोधित करना था।

पहले वित्तमंत्री के समक्ष थी चुनौतियां ही चुनौतियां

भारत को जब अगस्त 1947 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी तो वह कई आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था, जिसमें विभाजन के बाद शरणार्थियों के पुनर्वास और पाकिस्तान के साथ परिसंपत्तियों और देन दारियों का विभाजन जैसे मुद्दे शामिल थे। बावजूद आर्थिक मुश्किलों के उस समय की सरकार ने देश की सुरक्षा का सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुये बजट का लगभग 20 प्रतिश महत्वपूर्ण हिस्सा रक्षा के लिए आवंटित किया था, जो विभाजन के बाद भारत की सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता है। पहले बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और ग्रामीण विकास के महत्व को समझते हये इन क्षेत्रों पर जोर दिया गया। बजट में औद्योगिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कराधान नीति प्रस्तावित की गई, जिसमें निवेश को प्रोत्साहित करने के उपाय भी शामिल थे।

तब और अब के बजटों में जमीन आसमान का अंतर

भारत के पहले और नवीनतम केंद्रीय बजटों के बीच अंतर स्वतंत्रता के बाद के दशकों में भारत की अर्थव्यवस्था, शासन प्राथमिकताओं और सामाजिक लक्ष्यों के परिवर्तन को रेखांकित करता है। यह विकास भारत की एक नव स्वतंत्र राष्ट्र से पुनर्निर्माण चुनौतियों का सामना करने से लेकर 21वीं सदी में समावेशी और सतत विकास के लिए प्रयास करने वाले वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने तक की यात्रा को दर्शाता है।
स्वतंत्र भारत के पहले केंद्रीय बजट (1947) और नवीनतम केंद्रीय बजट (उदाहरण के लिए, 2024 का केंद्रीय बजट) के बीच अंतर और परिवर्तन काफी महत्वपूर्ण हैं और सात दशकों से अधिक समय में भारत की अर्थव्यवस्था, शासन और प्राथमिकताओं के विकास को दर्शाते हैं। पहला बजट (1947) कुल व्यय 19,739 करोड़ रुपये था, जो स्वतंत्रता के बाद भारत की अर्थव्यवस्था के शुरुआती चरण को दर्शाता है। जबकि नवीनतम 2024-25 का बजट आकार 48,20,512 करोड़ रुपये था। वित्तमंत्री सीतारमण के 7वें बजट आकार में काफी वृद्धि होने की आशा है। पहला बजट में पुनर्निर्माण, स्थिरता और विभाजन की तत्काल चुनौतियों के प्रबंधन पर जोर दिया गया था। आज सतत विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे में निवेश और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर ध्यान केंद्रित है। पहले बजट में आर्थिक विकास को गति अब जनसांख्यिकी और आर्थिक गतिशीलता में बदलाव के कारण स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, डिजिटल बुनियादी ढाँचा और स्टार्टअप जैसे विविध क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण ध्यान दिया जा रहा है।

राष्ट्र निर्माण की बुनियाद में पहला बजट

पहले बजट में आरंभिक कराधान नीतियाँ राजस्व आधार स्थापित करने और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई थीं। अब जीएसटी कार्यान्वयन सहित आधुनिक कराधान सुधार, कर प्रशासन में सरलीकरण, पारदर्शिता और दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पहला बजट मुख्य रूप से राष्ट्र निर्माण और स्वतंत्रता के तुरंत बाद की चुनौतियों के प्रबंधन पर केंद्रित था। अब के बजटों में विदेशी निवेश को आकर्षित करने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों को बढ़ाने के उपायों के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के एकीकरण को तेजी से दर्शाया गया है। पहले बजट के दौर की सीमाओं के कारण तकनीक पर कम ध्यान दिया गया। लेकिन अब आर्थिक विकास और दक्षता के चालक के रूप में डिजिटल बुनियादी ढांचे, नवाचार और उभरती प्रौद्योगिकियों पर जोर दिया जाता है।

 

 

 

 

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