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सिर्फ 11 साल की उम्र में नशे की जद में बच्चे, 10 शहरों के सर्वे में चौंकाने वाले खुलासे

uttaratkhand himalaya desk-

देश के 10 बड़े शहरों में किए गए एक प्रमुख सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि बच्चे अपेक्षा से कहीं पहले नशे के संपर्क में आ रहे हैं। सर्वे में पाया गया कि नशे की शुरुआत की औसत आयु 12.9 वर्ष है, जबकि कुछ बच्चे 11 वर्ष की उम्र में ही ड्रग्स लेने लगते हैं। नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, हर सात में से एक स्कूल छात्र ने किसी न किसी नशीले पदार्थ का प्रयोग कम-से-कम एक बार किया है।

सर्वे में 5,920 छात्रों को शामिल किया गया, जिनकी औसत आयु 14.7 वर्ष थी। इन छात्रों में दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, हैदराबाद, इम्फाल, जम्मू, दिब्रूगढ़ और रांची के सरकारी, निजी और ग्रामीण स्कूलों के छात्र शामिल थे। इनमें 52.4% लड़के और 47.6% लड़कियाँ थीं। कक्षा VIII से XII तक के छात्रों ने सर्वे में हिस्सा लिया।

मुख्य निष्कर्ष

  • 15.1% छात्रों ने जीवन में कम से कम एक बार नशीला पदार्थ लिया।
  • 10.3% ने पिछले एक वर्ष में नशा किया।
  • 7.2% ने पिछले एक महीने में नशीला पदार्थ लिया।
  • औसतन पहली बार नशे की उम्र 12.9 वर्ष पाई गई।
  • इनहेलेन्ट (सूँघने वाले नशीले पदार्थ) का प्रयोग सबसे कम उम्र, यानी 11 वर्षों में देखा गया।

सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थों में तंबाकू (4%), शराब (3.8%), ओपिऑइड्स (2.8%), भांग/कैनाबिस (2%), और इनहेलेन्ट (1.9%) शामिल थे। अधिकांश मामलों में ओपिऑइड्स गैर-प्रिस्क्रिप्शन दवाओं के रूप में लिए गए।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की प्रमुख डॉ. अंजू धवन के नेतृत्व में किए गए इस बहु-शहरी अध्ययन में बताया गया कि कक्षा XI-XII के छात्रों में नशीले पदार्थों का उपयोग, कक्षा VIII की तुलना में दोगुना पाया गया। लड़कों में तंबाकू और भांग का उपयोग अधिक था, जबकि लड़कियों में इनहेलेन्ट और फार्मास्युटिकल ओपिऑइड्स का उपयोग अधिक देखा गया।

अध्ययन में एक और गंभीर तथ्य यह सामने आया कि लगभग आधे छात्र अपने नशे की आदत को छिपाते हैं। इसका अर्थ है कि वास्तविक आँकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं। पिछले एक वर्ष में नशा करने वाले 31% छात्रों ने उच्च स्तर की मानसिक परेशानी दर्ज की, जबकि गैर-उपयोगकर्ताओं में यह दर 25% रही।

AIIMS में मनोचिकित्सक डॉ. अचल भगत के अनुसार, इतनी कम उम्र में नशे की शुरुआत एक गंभीर चेतावनी है। आसान उपलब्धता, भावनात्मक तनाव और मार्गदर्शन की कमी बच्चों को पदार्थों की ओर धकेल रही है। वे बताते हैं कि किशोर मस्तिष्क इनहेलेन्ट, ओपिऑइड्स और भांग से होने वाले नुकसान के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। डॉ. भगत विशेष रूप से लड़कियों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति को लेकर चिंतित हैं, जो अक्सर ‘गुप्त स्व-चिकित्सा’ का सहारा लेती हैं।

उन्होंने अभिभावकों को सुझाव दिया कि वे बच्चों में अचानक मूड बदलना, पढ़ाई में गिरावट, चिड़चिड़ापन, Withdrawal के लक्षण, और रहस्यपूर्ण व्यवहार जैसे संकेतों पर ध्यान दें। सर्वे से यह भी सामने आया कि जिन छात्रों के परिवार में शराब या तंबाकू का इस्तेमाल होता है, वे खुद भी नशा करने की 40% अधिक संभावना रखते हैं।

विशेषज्ञों ने स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को मजबूत बनाने और परिवारों में खुलकर बातचीत की जरूरत पर बल दिया, ताकि शुरुआती उम्र में नशे की लत को गहराने से रोका जा सके।

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