आपदा/दुर्घटनाब्लॉग

जलवायु परिवर्तन और हिमालयवासियों पर हिमस्खलन का बढ़ता खतरा

Recently, near the border region of Mana in Uttarakhand, a massive avalanche struck, trapping 54 laborers of the Border Roads Organisation (BRO), resulting in the tragic death of 8 workers. This was not the first such incident in the region. In April 2021, a similar avalanche occurred in the Sumna-Malari area of the Niti Valley, claiming the lives of more than a dozen BRO workers. Earlier that year, on February 7, an avalanche-triggered glacial lake outburst led to devastating floods in the Rishi Ganga and Dhauliganga rivers, destroying power projects and causing the death of over 200 workers. In 2022, an avalanche in Draupadi Danda, Uttarkashi, claimed the lives of 27 mountaineering trainees, including renowned climber Savita Kanswal. The catastrophic Kedarnath disaster of 2013 was also caused by the bursting of the Chorabari Lake due to an avalanche.

– जयसिंह रावत

उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्र माणा के निकट हाल ही में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 54 मजदूर एक विशाल हिमस्खलन की चपेट में आ गए, जिसमें 8 की दुखद मौत हो गई। यह इस क्षेत्र में पहला हादसा नहीं था। अप्रैल 2021 में सीमांत नीती घाटी के सुमना-मलारी क्षेत्र में भी ऐसा ही हिमस्खलन हुआ था, जिसमें बीआरओ के एक दर्जन से अधिक मजदूरों की जान गई थी। उसी वर्ष 7 फरवरी को एक हिमस्खलन के कारण बनी झील के टूटने से ऋषि गंगा और धौली गंगा में भयंकर बाढ़ आई, जिससे पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गए और 200 से अधिक मजदूरों की मौत हुई। उत्तरकाशी के द्रौपदी डांडा में 2022 में हुए हिमस्खलन में 27 पर्वतारोहण प्रशिक्षुओं की मौत हुई, जिसमें सविता कौंसवाल जैसी पर्वतारोही भी शामिल थीं। 2013 की केदारनाथ आपदा का असली कारण भी चोराबाड़ी झील का हिमस्खलन से फटना ही था।

हिमालय में हिमस्खलन का बढ़ता खतरा

पश्चिमी हिमालय, विशेष रूप से तिब्बत सीमा से सटे क्षेत्रों में, जहां सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती रहती है, हिमस्खलन का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसके बावजूद, हमारी सुरक्षा व्यवस्था कितनी चौकस है, इसका खुलासा हालिया माणा हादसे से हो गया। इस संवेदनशील क्षेत्र की निगरानी और चेतावनी के लिए रक्षा मंत्रालय ने चंडीगढ़ में स्नो एंड एवलांच स्टडी एस्टेब्लिशमेंट (SASE) स्थापित किया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भी मौसम विभाग और SASE से मिले इनपुट के आधार पर हिमस्खलन की चेतावनी जारी करता है। 27-28 फरवरी को भी NDMA ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम के कुछ हिस्सों में हिमस्खलन की यलो और रेड अलर्ट चेतावनी दी थी। बावजूद इसके, चमोली जिले के 2400 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए जारी रेड अलर्ट को नजरअंदाज कर दिया गया, जिससे 54 मजदूरों की जान खतरे में पड़ गई।

जलवायु परिवर्तन से हिमस्खलनों में वृद्धि

अध्ययन बताते हैं कि हाल के दशकों में पश्चिमी हिमालय में हिमस्खलनों की घटनाएं बढ़ी हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान, अधिक बारिश और कम हिमपात से हिमालयी बर्फ की प्रकृति बदल रही है, जिससे हिमस्खलन अधिक बार और अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं। हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे हिमरेखा पीछे हट रही है और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले 100 वर्षों में हिंदूकुश हिमालय में तापमान और वर्षा के पैटर्न में बड़े बदलाव आए हैं, जिससे बर्फ की परत की स्थिरता प्रभावित हुई है और हिमस्खलनों की घटनाएं बढ़ी हैं।

हिमस्खलन के कारण और पूर्वानुमान

पश्चिमी हिमालय में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हर सर्दी में हिमस्खलन की घटनाएं नागरिकों और सैन्य कर्मियों की जान लेती हैं। हिमस्खलन तब होता है जब किसी पहाड़ी ढलान पर बर्फ की परत अस्थिर हो जाती है। बर्फ की परत की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे बर्फ के कणों का आकार, उनके बीच का बंधन, मौसम की स्थिति, और ढलान की विशेषताएं। आधुनिक तकनीकों और शोधों के आधार पर अब हिमस्खलन की सटीक भविष्यवाणी करना संभव हो गया है, लेकिन अप्रत्याशित घटनाएं अभी भी होती हैं, जो संकेत देती हैं कि कुछ अज्ञात दबाव कारक भी हो सकते हैं जिन्हें परंपरागत पूर्वानुमान पद्धति में शामिल नहीं किया गया है।

हिमस्खलन से बचाव के उपाय

विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय में हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर जोखिम मूल्यांकन करना और बुनियादी ढांचे के विकास से पहले सावधानी बरतना जरूरी है। कुछ महत्वपूर्ण बचाव उपायों में शामिल हैं:
कैच डैम: हिमस्खलन की गति को धीमा करने के लिए बनाए जाते हैं ताकि मानव बस्तियों और संरचनाओं की सुरक्षा की जा सके।
डाइवर्जन डैम: हिमस्खलन को आबादी वाले क्षेत्रों से मोड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
मिट्टी के टीले: समतल ढलानों पर हिमस्खलन को धीमा करने के लिए बनाए जाते हैं।
वनरोपण: पेड़ लगाकर हिमस्खलनों की गति और प्रभाव को कम किया जा सकता है।
सतर्कता और चेतावनी प्रणाली: हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन की भविष्यवाणी और चेतावनी प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।

हिमालय में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण हिमस्खलनों की घटनाएं बढ़ रही हैं। तापमान में वृद्धि, बर्फबारी में कमी और बारिश में बढ़ोतरी के कारण बर्फ की परत कमजोर हो रही है, जिससे हिमस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। इस खतरे को कम करने के लिए सरकार, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं को मिलकर काम करना होगा। हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में सतर्कता बढ़ाने, बचाव उपायों को अपनाने और चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने से इस प्राकृतिक आपदा से होने वाली जनहानि को कम किया जा सकता है।

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