सुरक्षा

1965 के युद्ध विराम की स्मृति में

23 सितंबर 2025 को 1965 के भारत-पाक युद्ध के युद्धविराम की 60वीं वर्षगांठ थी, जो न केवल एक ऐतिहासिक घटना थी, बल्कि भारतीय वायुसेना (IAF) के साहस, कौशल और रणनीतिक महत्व का प्रतीक भी थी। यह युद्ध भारत की संप्रभुता की रक्षा और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में भारतीय वायुसेना की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। इस लेख में हम 1965 के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के योगदान, इसकी रणनीति, उपलब्धियों और दीर्घकालिक प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, साथ ही अतिरिक्त तथ्य और आंकड़े जोड़कर इस ऐतिहासिक घटना को और गहराई से समझेंगे।

युद्ध की पृष्ठभूमि और प्रारंभ

1965 का भारत-पाक युद्ध अगस्त 1965 में पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन जिब्राल्टर के परिणामस्वरूप भड़क उठा। इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर में घुसपैठियों को भेजकर स्थानीय विद्रोह को भड़काने की कोशिश की थी, जिसका उद्देश्य कश्मीर को भारत से अलग करना था। पाकिस्तान की इस आक्रामक कार्रवाई का जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने तत्काल कार्रवाई शुरू की, और 1 सितंबर 1965 को युद्ध औपचारिक रूप से शुरू हो गया।

इस युद्ध में भारतीय वायुसेना की भूमिका शुरू से ही निर्णायक थी। युद्ध की शुरुआत में प्रतिकूल मौसम, सीमित संसाधन और जटिल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद वायुसेना ने हवाई श्रेष्ठता स्थापित की। यह युद्ध न केवल जमीनी लड़ाई तक सीमित था, बल्कि हवाई क्षेत्र में भी दोनों देशों की सेनाओं के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखी गई। भारतीय वायुसेना ने न केवल दुश्मन की हवाई शक्ति को कमजोर किया, बल्कि भारतीय सेना को जमीनी अभियानों में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की।

भारतीय वायुसेना की रणनीति और अभियान

1965 के युद्ध में भारतीय वायुसेना ने कई प्रकार के अभियानों को अंजाम दिया, जिनमें शामिल थे:

  1. निकट हवाई सहायता (Close Air Support): भारतीय सेना के जमीनी बलों को युद्ध के मैदान में प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने के लिए वायुसेना ने त्वरित और सटीक हमले किए। खास तौर पर छंब सेक्टर में, जहां पाकिस्तान ने टैंकों और भारी हथियारों के साथ आक्रामक हमला किया था, वायुसेना ने हवाई हमलों के जरिए दुश्मन की प्रगति को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  2. लड़ाकू विमानों के हमले (Offensive Air Strikes): वायुसेना ने पाकिस्तान के महत्वपूर्ण हवाई ठिकानों जैसे लाहौर, सरगोधा और पेशावर पर सटीक हमले किए। इन हमलों ने पाकिस्तानी वायुसेना की परिचालन क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया। उदाहरण के लिए, 6 सितंबर 1965 को भारतीय वायुसेना के हंटर और मिस्टेयर विमानों ने सरगोधा में पाकिस्तानी हवाई अड्डे पर हमला किया, जिससे कई दुश्मन विमान नष्ट हुए।

  3. अवरोधन (Interception): भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी विमानों को भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए त्वरित अवरोधन अभियान चलाए। यह सुनिश्चित करने में वायुसेना की सतर्कता और तकनीकी दक्षता महत्वपूर्ण थी कि भारतीय शहरों और सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले न हो सकें।

  4. पाबंदी (Interdiction): वायुसेना ने दुश्मन की आपूर्ति लाइनों, जैसे रेलवे वैगन, लोकोमोटिव और सड़क मार्गों पर हमले किए, जिससे पाकिस्तान की सैन्य रसद प्रणाली को बाधित किया गया। इसने पाकिस्तानी सेना की युद्ध क्षमता को और कमजोर किया।

  5. जवाबी हवाई अभियान (Counter-Air Operations): भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी हवाई ठिकानों को निशाना बनाकर उनकी हवाई शक्ति को सीमित किया। इन अभियानों में नैट और कैनबरा जैसे विमानों का उपयोग किया गया, जो रात में भी सटीक हमले करने में सक्षम थे।

प्रमुख उपलब्धियाँ और आंकड़े

  • उड़ानें: युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी मोर्चे पर लगभग 4,000 उड़ानें भरीं, जिनमें से अधिकांश युद्धक अभियान थे। ये उड़ानें दिन और रात दोनों समय में की गईं, जो वायुसेना की परिचालन क्षमता और पायलटों की दक्षता को दर्शाती हैं।

  • बमबारी: भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी ठिकानों पर कुल 335 टन बम गिराए, जिससे दुश्मन के बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान पहुंचा।

  • दुश्मन के नुकसान: युद्ध में पाकिस्तानी वायुसेना को अनुमानित 43 विमानों का नुकसान हुआ, जिनमें से 18 हवाई युद्ध में और 25 जमीनी हमलों में नष्ट हुए। इसके अलावा, बड़ी संख्या में टैंक, वाहन, रेलवे वैगन और लोकोमोटिव नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए।

  • भारतीय नुकसान: भारतीय वायुसेना ने भी कुछ नुकसान झेले, लेकिन इसकी रणनीतिक योजना और बेहतर प्रशिक्षण के कारण नुकसान को न्यूनतम रखा गया। अनुमानित तौर पर भारत ने इस युद्ध में लगभग 20-25 विमान खोए, जिनमें से अधिकांश दुश्मन की जमीनी गोलाबारी के कारण थे।

युद्ध में वायुसेना की तकनीकी और मानवीय शक्ति

1965 के युद्ध में भारतीय वायुसेना ने अपने समय के कुछ सबसे उन्नत विमानों का उपयोग किया, जिनमें हंटर, मिस्टेयर, नैट और कैनबरा शामिल थे। ये विमान उस समय की तकनीक के हिसाब से अत्यंत प्रभावी थे और भारतीय पायलटों ने इनका उपयोग बेहद कुशलता से किया।

पायलटों के साथ-साथ ग्राउंड क्रू की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी। युद्ध के दौरान ग्राउंड क्रू ने विमानों की मरम्मत, हथियारों की लोडिंग और तकनीकी सहायता प्रदान करने में दिन-रात काम किया। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने यह सुनिश्चित किया कि वायुसेना के अभियान बिना किसी रुकावट के चलते रहें।

वीरता पुरस्कार और सम्मान

अब्दुल हमीद  भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेमकरण सैक्टर के आसल उत्ताड़ में लड़े गए युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की जिसके लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र मिला। 1965 के युद्ध में भारतीय वायुसेना के कर्मियों ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए। कुल 4 महावीर चक्र और 43 वीर चक्र प्रदान किए गए। इनमें से कुछ उल्लेखनीय वीरों में शामिल हैं:

  • स्क्वाड्रन लीडर ए.बी. देवय्या, जिन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्होंने हवाई युद्ध में एक पाकिस्तानी F-104 स्टारफाइटर को नष्ट किया, लेकिन इस प्रक्रिया में अपना जीवन बलिदान कर दिया।

  • विंग कमांडर पी.पी. सिंह, जिन्होंने कई जोखिम भरे मिशनों का नेतृत्व किया और दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले किए।

इन पुरस्कारों ने न केवल वायुसेना के कर्मियों की वीरता को सम्मानित किया, बल्कि उनके बलिदान को भी अमर किया।

युद्धविराम और इसका महत्व

23 सितंबर 1965 को तड़के 3:30 बजे संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में युद्धविराम की घोषणा की गई। यह युद्धविराम दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि यह युद्ध किसी भी पक्ष के लिए निर्णायक जीत के बिना समाप्त हुआ। हालांकि, भारतीय वायुसेना की रणनीतिक सफलता ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में सक्षम रहा।

युद्धविराम के बाद, ताशकंद समझौते (10 जनवरी 1966) के तहत दोनों देशों ने युद्ध पूर्व स्थिति को बहाल करने पर सहमति जताई। इस समझौते ने युद्ध को औपचारिक रूप से समाप्त किया और क्षेत्र में शांति स्थापित करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया।

दीर्घकालिक प्रभाव और स्मरणोत्सव

1965 के युद्ध ने भारतीय वायुसेना के लिए कई महत्वपूर्ण सबक सिखाए। इस युद्ध ने वायुसेना की रणनीतिक योजना, प्रशिक्षण और तकनीकी क्षमता को और मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। युद्ध के बाद, वायुसेना ने अपने बेड़े को आधुनिक बनाने और नए विमानों, जैसे मिग-21, को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की।

60वीं वर्षगांठ के अवसर पर, भारतीय वायुसेना ने उन वीर योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने 1965 के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी। विभिन्न स्मारक समारोहों, प्रदर्शनियों और वायुसेना स्टेशनों पर कार्यक्रमों के माध्यम से वायुसेना ने अपने गौरवशाली इतिहास को याद किया। इन आयोजनों में वायुसेना के आधुनिक विमानों, जैसे सुखोई-30 एमकेआई, राफेल और तेजस के प्रदर्शन भी शामिल थे, जो यह दर्शाते हैं कि वायुसेना ने पिछले छह दशकों में कितनी प्रगति की है।

वायुसेना के लिए एक स्वर्णिम अध्याय

1965 का भारत-पाक युद्ध और उसका युद्धविराम भारतीय वायुसेना के लिए एक स्वर्णिम अध्याय है। इस युद्ध ने न केवल वायुसेना की युद्धक क्षमता को प्रदर्शित किया, बल्कि इसके पायलटों और ग्राउंड क्रू की वीरता, समर्पण और व्यावसायिकता को भी सामने लाया। 60 साल बाद भी, यह युद्ध हमें यह सिखाता है कि राष्ट्र की रक्षा के लिए एकजुटता, साहस और रणनीतिक कौशल कितने महत्वपूर्ण हैं। भारतीय वायुसेना आज भी उसी भावना के साथ देश की सेवा कर रही है, और इस युद्धविराम की वर्षगांठ हमें उन वीरों को याद करने का अवसर देती है जिन्होंने भारत के सम्मान और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

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