शिक्षा/साहित्य

कहानी लेखन में स्त्रियों का योगदान

– गोविंद प्रसाद बहुगुणा

कहानी लेखन में स्त्रियों का योगदान उल्लेखनीय है, वे स्त्री- पुरुष के चरित्रों का और बाहरी दुनिया का जिस तरह से बारीकी से विश्लेषण करती हैं, उतना गहन विश्लेषण पुरुष लेखकों के लेखन में देखने को कम ही मिलता है क्योंकि स्त्रियां एक माँ के रूप में बहन और पत्नी और प्रेमिका के रूप में जितने नजदीक से देखती- समझती हैं उतना पुरुष नहीं कर पाते क्योंकि वे स्त्री को एक ऑब्जेक्ट के रूप में देखते हैं -यह मेरा अपना विचार है आप इस टिप्पणी से असहमत हो सकते हैं ।

हाल ही में *पुस्तकनामा* प्रकाशन से प्रकाशित श्रीमती सरोजनी नौटियाल जी के इस कहानी संग्रह-“अब न नसैहों ” का प्राक्कथन स्त्री विमर्श पर एक पठनीय रोचक वक्तव्य है जो इस संग्रह के शीर्षक को सार्थक और दिलचस्प बनाता है।

स्त्री की अस्मिता के संबंध में भारतीय और विदेशी महिलाओं की अभिव्यक्ति के अंदाज अलग- अलग जरूर हैं लेकिन अंतर्निहित भावना एक ही है कि स्त्री भी एक स्वतंत्र व्यक्तित्व होती है ‌। स्त्री स्वातंत्र्य की प्रबल समर्थक रही फ्रेंच लेखक Simone de Beauvoir ने सही कहा था कि -किसी के जीवन में मूल्यों का अर्थ तभी तक है जब तक कि वह दूसरों के जीवन को भी मूल्यवान मानता है ।(One’s life has value so long as one attributes value to the life of others).आजकल के समाज में स्त्री- पुरुष के संबंध उनकी परस्पर आर्थिक स्वतंत्रता पर अधिक निर्भर हैं। Emotional bonding तब तक पैदा नहीं होती जब तक स्त्री-पुरुष में जिम्मेदारियां साझा नहीं होती,एक दूसरे की भावनाओं और कष्टों को समझने की इच्छा पैदा नहीं होती ।..
.प्रस्तुत कहानी संग्रह “अब न नसैहों ” की टेक तुलसीदास जी की विनय पत्रिका की इस बिनती पर आधारित है कि “अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।” -बहुत हो गया प्रभु ! अब मुझसे सहा नहीं जाता।” दरअसल जब स्त्री की प्रताड़ना एक हद तक पहुंच जाती है तो उसके मुंह से यही बोल निकलते हैं कि-अब मुझसे सहा नहीं जाता….।

लेखक कहती हैं कि “स्त्री को लेकर हमारे समाज में जो धूप- छाँव है,वह मन को आंदोलित करता है हमारे पारिवारिक परिवेश में उसकी अवमानना का बहुत सामन है और उसके लिए मामूली बातों की अनदेखी करने की आँख सभी के पास है— ”
प्रसन्नता की बात है कि उत्तराखण्ड सरकार के शिक्षा विभाग में प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्ति के बाद सरोजिनी जी लेखन – साहित्य सृजन में व्यस्त हो गई हैं लेकिन वे पहले से भी पाठकों में सुपरिचित लेखक हैं क्योंकि उनकी रचनाएँ प्रमुख साहित्यिक पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं यथा आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि प्रवासी लेखकों में भी वह परिचित हैं क्योंकि वह सुविख्यात प्रवासी हिन्दी कहानीकार श्रीमती अर्चना पैन्यूली की बड़ी बहिन हैं और इस नाते वह उनकी रचनाओं से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं।

इस तरह का एक उदाहरण मुझे अंग्रेजी साहित्य में ही दिखाई दिया जहां तीन सगी बहनें प्रसिद्ध उपन्यासकार हुई -Emily Bronte, Charlotte Bronte तथा Anne Bronte. Emily Bronte का उपन्यास Wuthering Heights मैने खूब पढ़ा। एक बार शायद सन १९६७-६८ में दूरदर्शन ने इस उपन्यास पर बनी फिल्म का प्रसारण किया था जिसे मैने भी देखा।सरोजिनी जी को इस पुस्तक के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और धन्यवाद भी कि उन्होंने यह संग्रह मुझे दो‌ दिन पहले ही अर्चना जी के निवास पर भेंट किया था ।

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