महिलाओं के खिलाफ अपराधों में सजा दर चिंता का विषय
नई दिल्ली, 31 सितम्बर। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट “क्राइम इन इंडिया 2023” ने देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों और न्याय व्यवस्था की कमजोरियों की तस्वीर सामने रखी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में महिलाओं के खिलाफ कुल 4.48 लाख मामले दर्ज हुए, यानी औसतन हर घंटे 51 मामले। यह आंकड़ा 2022 की तुलना में 0.7 प्रतिशत अधिक है।
सजा और दोषमुक्ति की स्थिति
- सबसे बड़ी चिंता का विषय सजा दर और दोषमुक्ति दर है।
- सजा दर (Conviction Rate): औसतन 30-35%। यानी हर 100 मामलों में केवल 30-35 अपराधियों को ही सजा हो रही है।
- दोषमुक्ति दर (Acquittal Rate): 60-70%। अधिकतर अपराधी सबूतों की कमी या मुकदमे की लंबी प्रक्रिया के चलते छूट जाते हैं।
- चार्जशीटिंग दर: 78%। पुलिस ने 4.9 लाख आरोपियों पर चार्जशीट दाखिल की, लेकिन सजा केवल 1.46 लाख को ही मिली।
प्रमुख अपराध और सजा दर
अपराध दर्ज मामले (2023) सजा दर दोषमुक्ति दर खास पहलू
पति/ससुराल द्वारा क्रूरता 1.33 लाख (सबसे अधिक) ~28% ~72% घरेलू हिंसा सबसे ज्यादा, लेकिन सजा कम
बलात्कार ~31,000+ 27-28% 72-73% 97% मामलों में आरोपी पीड़िता का परिचित
अपहरण 88,605 ~39% ~61% 60% मामलों को पुलिस ने “गलत” बताकर बंद किया
दहेज मौतें ~6,500 25-30% ~70% दिल्ली में सर्वाधिक मामले
साइबर अपराध ~7,000 डेटा सीमित — 31% वृद्धि, पर सजा दर अस्पष्ट
राज्यों की स्थिति
उत्तर प्रदेश: सबसे ज्यादा 59,445 मामले। सजा दर ~35%, जो राष्ट्रीय औसत से बेहतर है, लेकिन दोषमुक्ति दर अब भी 65%।
दिल्ली: मेट्रो शहरों में शीर्ष पर; 13,366 मामले। सजा दर मात्र 25-30%। बलात्कार (1,800+) और दहेज मौत (150+) में सबसे आगे।
तेलंगाना: अपराध दर सबसे ज्यादा, 124.9 प्रति लाख महिलाएं; सजा दर ~32%।
ओडिशा: साइबर अपराधों में शीर्ष, 761 मामले; सजा दर ~30%।
क्यों घट रही है सजा दर?
सबूतों की कमी: खासकर बलात्कार और घरेलू हिंसा के मामलों में मेडिकल व डिजिटल सबूत जुटाना मुश्किल।
लंबित मुकदमे: 2023 में अदालतों में 50 लाख से अधिक मामले लंबित।
सामाजिक कलंक: FIR दर्ज कराने से पीड़ित पीछे हट जाती हैं।
पुलिस व अदालतों की देरी: फास्ट-ट्रैक कोर्ट और प्रभावी जांच की कमी।
क्या है सकारात्मक?
- चार्जशीटिंग में सुधार (78%)।
- जागरूकता बढ़ी है, जिससे FIR दर्ज होने की दर तेज़ हुई।
- NCRB की सिफारिश: फास्ट-ट्रैक कोर्ट, डिजिटल सबूतों पर ध्यान और जन-जागरूकता अभियान।
लाखों परिवारों का दर्द
NCRB 2023 रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध केवल आंकड़े नहीं, बल्कि लाखों परिवारों का दर्द हैं। कम सजा दर न केवल अपराधियों को बढ़ावा देती है, बल्कि पीड़ितों के विश्वास को भी कमजोर करती है। हालांकि FIR दर्ज होने और चार्जशीट दाखिल होने की संख्या बढ़ना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन सवाल अब भी वही है— क्या हमारी न्याय प्रणाली इस बदले हुए समाज की रफ्तार पकड़ पाएगी?
