धर्म/संस्कृति/ चारधाम यात्रापर्यावरण

हिमालय पर आस्था की बाढ़ से पर्यावरणविद चिंतित

This time, the devotees have immense enthusiasm regarding the world-famous Chardham Yatra of Uttarakhand. It has been only about 50 days since the Chardham Yatra started this year and in these 50 days, about 30 lakh devotees have visited the Chardhams. Whereas in the year 2023, till June 30 i.e. in 68 days, about 30 lakh devotees had come for darshan. Environmentalists are worried about such a large crowd climbing the Himalayas. Chardham Yatra is the backbone of Uttarakhand’s economy, so, a smooth, safe, and adequate number of pilgrims is necessary in the interest of the state and the devotees, but some limit should be fixed on the number of pilgrims. JSR

By- Jay Singh Rawat

उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा को लेकर इस बार श्रद्धालुओं में अपार उत्साह नजर आ रहा है। इस वर्ष चारधाम यात्रा प्रारंभ हुए लगभग 50 दिन ही हुए हैं और इन 50 दिनों में ही अब तक लगभग 30 लाख श्रद्धालु चारधामों के दर्शन कर चुके हैं। जबकि वर्ष 2023 में 30 जून तक यानि 68 दिनों में लगभग 30 लाख श्रद्धालु दर्शनों के लिए आये थे। इतनी अधिक भीड़ के हिमालय पर चढ़ने से पर्यावरणविद चिंतित हैं।  चारधाम यात्रा उत्तराखंड की आर्थिकी की रीढ़ है इसलिए सुगम, सुचारू, सुरक्षित और यात्रियों  पर्याप्त संख्या राज्य और श्रद्धालुओं के हित  में जरूरी है, लेकिन यात्रियों की संख्या की कोई सीमा तो तय होनी ही चाहिए ।

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो मालूम होता है कि इस वर्ष 10 मई को कपाट खुलने से लेकर 30 जून तक लगभग 30 लाख श्रद्धालु चार धामों में आ चुके हैं जबकि गत वर्ष 22 अप्रैल को कपाट खुले थे। यानी लगभग 18 दिन पहले। बावजूद 30 जून तक लगभग 30 लाख यात्री पहुँचे थे।यात्रियों की इस अत्यधिक भीड़ को उत्तराखण्ड सरकार अपनी महान उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। जबकि पर्यावरणविद संवेदनशील हिमालय पर इस तरह की चढ़ाई को हिमालय पर हमले की संज्ञा दे चुके हैं।

10 मई को जब इस बार चारधामों के कपाट खुलने का सिलसिला प्रारंभ हुआ तो पहले दिन से भारी संख्या में देश-दुनिया से यात्री दर्शनों के लिए पहुँचे। इस अप्रत्याशित भीड़ का यात्रा मार्गों से जुड़े क्षेत्रों की नागरिक सुविधाओं पर अत्यंत दबाव तो देखा ही जा रहा है लेकिन यात्रा मार्ग पर गंदगी साफ देखी जा सकती है। इस मार्ग पर जो मलजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) लगे हैं उनकी क्षमता भीड़ के मुकाबले बहुत कम है। इसलिये अतिरिक्त गंदगी पवित्र नदियों में मिल जाती है। पिछले ही वर्ष बदरीनाथ में लगे संयत्र का मलजल सीधे अलकनन्दा में प्रवाहित होते सारी दुनिया ने सोशल मीडिया पर देखा। लगभग 1300 किमी लम्बे चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित कस्बों की अपनी सीमित ठोस अपशिष्ट (कूड़ाकचरा) निस्तारण व्यवस्था है। सरकार या नगर निकायों के लिये अचानक इस व्यवस्था का विस्तार आसान नहीं होता। यात्रा सीजन में ऋषिकेश से लेकर चार धाम तक के रास्ते में जहां तहां जाम मिलता है और वाहन खड़े करने की जगह ही बड़ी मुश्किल से मिलती है।
संवेदनशील हिमालयी तीर्थों को प्रदूषण का सर्वाधिक खतरा वाहनों से है जो कि सीधे गंगोत्री और सतोपंथ जैसे ग्लेशियरों के करीब पहुंच कर उनके पिघलने की गति को बढ़ा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 जून 2024 तक चारों धामों में या उनके बहुत करीब तक कुल 3,36,604 वाहन पहुंच चुके थे। मैदानों में प्रायः 60 किमी प्रति घण्टा चलने वाले वाहन पहाड़ों पर पहले और दूसरे गेयर में 20 किलोमीटर की गति से भी नहीं चल पाते। जिससे उनका ईंधन दोगुना खर्च होने के साथ ही प्रदूषण स्तर कई गुना बढ़ जाता है। समुद्रतल से लगभग 300 मीटर की उंचाई पर स्थित ऋषिकेश से वाहन शुरू हो कर 3042 मीटर की उंचाई पर स्थित गंगोत्री और 3133 मीटर की उंचाई पर स्थित बद्रीनाथ पहुंचते हैं। अगर इतने वाहन गोमुख के करीब पहुंचेंगे तो इस ग्लेशियर समूह का पीछे खिसकना स्वाभाविक ही है। पिछले एक दशक तक कांवड़िये हरिद्वार से ही गंगा जल भर कर लौट जाते थे, मगर अब वे जल भरने सीधे गोमुख जा रहे हैं। यही नहीं गंगोत्री और गोमुख के बीच जैनेरेटर भी लग गये हैं।

इसी साल अप्रैल में जारी इसरो की रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के साथ ही ग्लेशियल झीलों की संख्या और आकार में निरन्तर वृद्धि हो रही है जो कि आपदाओं की दृष्टि से एक गंभीर खतरे का संकेत भी है। इसरो के मुताबिक, 676 झीलों में से 601 का आकार दोगुने से अधिक हो गया है, जबकि 10 झीलें 1.5 से दो गुना और 65 झीलें 1.5 गुना बढ़ी हैं। प्रख्यात ग्लेशियोलॉजिस्ट डा0 डी0पी0 डोभाल के अनुसार लगभग 147 वर्ग कि.मी. में फैले गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे खिसकने की गति 20 से 22 मीटर प्रतिवर्ष है।

 

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