तीन दिन से अंधेरा कायम है देवाल के 30 हजार लोगों के लिए ; मोबाइल के बिना किसी से सम्पर्क भी नहीं
–हरेंद्र बिष्ट की रिपोर्ट-
थराली/ देवाल, 16 सितम्बर। पिछले 3 दिनों से विकासखंड देवाल की 30 हजार से अधिक की ग्रामीणों जनता को अंधेरों में अपना जीवन जीना पर मजबूर होना पड़ा रहा है। तीसरे दिन समाचार लिखे जाने तक भी विद्युत विभाग इस विकासखंड में बिजली आपूर्ति बहाल नही कर पाया है। इससे सरकार के आपदा प्रबंधन की भी पोल खुल कर रह गई है।
दरअसल 13 सितंबर की रात को चेपड़ो एवं बैनोली जोकि सिमली -ग्वालदम -अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग एवं थराली – देवाल -वांण राजमार्ग से सटे हुए हैं,दोनों ही स्थानों पर पेड़ों के गिरने के कारण थराली से नंदकेशरी देवाल 33 केवी बिजली घर को जाने वाली 33 केवी बिजली लाइन क्षतिग्रस्त हो गई थी। विभागीय अधिकारी पहले शनिवार फिर रविवार को बिजली बहाली का दावा करते रहे किंतु दो ही दिनों में बिजली बहाली नही कर पाएं इसका खामियाजा देवाल विकास खंड की ग्रामीण जनता को तो भुगतना ही पड़ रहा हैं। इसके तहसील मुख्यालय थराली की जनता को भी भुगतना पड़ रहा है।
दरअसल शनिवार एवं रविवार को क्षतिग्रस्त देवाल बिजली लाइन की मरम्मत के नाम पर दोनों ही दिनों में सुबह से देर सायं तक थराली की भी लाइट काटी गई जिससे दोनों ही विकासखंडों के नागरिकों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा हैं। लोगों के तमाम विद्युत चालित उपकरण पूरी तरह से बंद हो गऐ हैं, अधिकांश दुकानदारो के विद्युत तराजूओं की बैटरियों के खत्म होने के कारण उनके सामने सामानों को तोलने की समस्या खड़ी हो गई हैं, अधिकांश ग्रामीणों के मोबाइल स्विच ऑफ हो गये हैं।तीन दिनों से बिजली आपूर्ति ठप होने के कारण देवाल की आम जनता में विद्युत विभाग के खिलाफ रोष पनपने लगा हैं। तीन दिन बाद राजमार्गों से सटे क्षेत्रों में बिजली लाइन की मरम्मत नही हो पाने के चलते सरकार के आपदा प्रबंधन पर भी सवालिया निशान उठाने लगें हैं।
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देवाल विकासखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में रात को उजालें की व्यवस्था के लिए ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हैं। सरकार के द्वारा मिट्टी तेल की आपूर्ति बंद कर दिए जाने के बाद ग्रामीणों के सामने रात को रोशनी की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए भटकना पड़ रहा हैं। अधिकांश गांवों में मोमबत्तियों के नही होने के कारण प्राकृतिक पौराणिक व्यवस्था छिलकों अथवा अन्य ज्वलनशील लकड़ियों को जला कर ग्रामीणों को अपनी रातें गुजारनी पड़ी हैं।