मायके में रह रही सरिता को मृत्यु खींच लाई थी जखोली
–दिनेश शास्त्री-
मृत्यु बहुत निष्ठुर और क्रूर होती है साथ ही निश्चित भी।एक पौराणिक प्रसंग है कि देवताओं की सभा में एक एक कर सभी देवता आ रहे थे, उनके वाहन बाहर पंक्तिबद्ध हो रहे थे, इंद्र के एरावत, भगवान शिव के नंदी, गणेश के मूषक, कार्तिकेय के मयूर आदि तमाम वाहन कतार में थे, उनके बीच एक चिड़िया भी थी।
तभी वहां यमराज पहुंचते हैं और उस चिड़िया को देखते ही मुस्करा उठते हैं, यह सोच कर कि विधाता ने आज ही यहां से कई सौ योजन दूर इसकी मृत्यु लिखी है और यह नन्हीं चिड़िया यहां बैठी है, यह कैसे संभव है? यम की मुस्कराहट देखते ही चिड़िया के प्राण सूख गए, उसने अपनी पीड़ा पास ही मौजूद भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को बताई कि आखिर यम उसे देख कर हंसे क्यों? गरुड़ ने उसे आश्वस्त किया कि चिंतित न हो, देव सभा संपन्न होने से पहले मैं तुम्हें सुदूर कंदरा तक पहुंचा देता हूं और वादे के मुताबिक वह उसे सुदूर कंदरा तक पहुंचा आए, सभा समाप्त होने पर यम ने बाहर आकर देखा कि अंदर जाते समय जो चिड़िया उन्होंने देखी थी, अब मौजूद नहीं है। पूछताछ करने पर गरुड़ ने बताया कि वह उसे सुदूर कंदरा में पहुंचा चुका है।
यम फिर हंसे और कहा कि तभी तो मुझे विधि के विधान पर हंसी आ रही थी, तुमने विधाता का लेख सच कर डाला। यह प्रसंग अलग है किंतु स्थान, काल और पात्र से इतर जखोली की सरिता देवी का असमय निधन कुछ इसी तरह की पुनरावृत्ति का घटनाक्रम सा प्रतीत होता है।
जिस जखोली को आपदाओं के लिहाज से निरापद समझा जाता है, वहीं बीती 28 अगस्त की रात सरिता देवी को मायके से मौत खींच कर ले आई। भू स्थलीय संरचना के लिहाज से जखोली एक तरह से पहाड़ की चोटी का सा आभास दिलाता है। तेजी से विकसित हो रहा यह पहाड़ी कस्बा बहुत बड़ा नहीं है, एक मयाली मार्ग है, दूसरा रामाश्रम मार्ग और दो चार संपर्क मार्गों वाले इस छोटे से कस्बे में आमतौर पर भूस्खलन की आशंका नहीं रहती।
जसपाल लाल की पत्नी श्रीमती सरिता देवी का निवास जखोली स्थित जीएमवीएन बंगले के ठीक नीचे है। वैसे वह ललूडी ग्राम सभा के टेंडवाल ग्राम की मूल निवासी थी। यहीं उन्होंने अपना आशियाना बनाया था। सरिता की एक बेटी और दो बेटे हैं। सभी बच्चे नौकरीपेशा हैं जबकि
सरिता देवी के पिता चिरबटिया में जन विकास संस्था के नाम से एक स्वैच्छिक संस्था का संचालन करते हैं।
सरिता देवी को विगत 28 अगस्त की सायं मृत्यु खींच कर जखोली ले आई। वह अपने मायके से जब जखोली पहुंची, तब भीषण बारिश हो रही थी। रात्रि भोजन के बाद वह अपने नियमित शयन कक्ष दाएं वाले कमरे से बाएं वाले कक्ष में आ गई। उसे आशंका थी कि शायद दाएं वाला कक्ष सुरक्षित नहीं है, वह बाएं कक्ष में सोने आ गई। किंतु विधि का विधान देखिए, जिस कक्ष में वह सोई थी, उसके ऊपर ही भूस्खलन से भारी मलबा आ गया और सरिता देवी उस मलबे की चपेट में आने से दफन हो गई।
सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि उसे संभलने का मौका तक नहीं मिला। यहां तक कि उसकी सिसकियां भी नहीं निकल पाई। जिस कक्ष में उसे खतरा महसूस हो रहा था, वह सुरक्षित रहा जबकि निरापद समझे जाने वाला हिस्सा ही मलबे से पट गया। हादसे के समय सरिता पूरे घर में अकेली थी, इस कारण किसी के कानों तक उसकी चीख भी नहीं पहुंच सकी। बच्चों को पढ़ाने के लिए ही जखोली में उन्होंने घर बनाया था।
सरिता देवी के बच्चे ओंकारानंद इंटर कालेज के होनहार विद्यार्थी रहे हैं और सभी आजकल देश के विभिन्न स्थानों पर सेवारत हैं। सरिता को एक सजग अभिभावक के रूप में देखा जाता था किंतु वह अपनी जीवन यात्रा आपदा की भेंट चढ़ गई। यही विधि का विधान है।
इस घटना की बेहद सीमित रिपोर्टिंग हुई किंतु इस पहलू की ओर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं गया कि कैसे मृत्यु के क्रूर हाथ निश्चित स्थान पर खींच लाते हैं और अनहोनी घट जाती है।
