मनोभ्रंश बीमारी लाइलाज नहीं
ख़ास बातें
- 65 बरस तक के हर बीस लोगों में से एक को यह रोग
- किसी में ये लक्षण हैं तो रोगी को मिलवाएं डॉक्टर्स से
- बदल जाता है व्यक्तित्व भी, चिड़चिड़ाहट भी लक्षण
प्रो. श्याम सुंदर भाटिया
तीर्थंकर महावीर हॉस्पिटल के मनोचिकित्सा विभाग में विश्व डिमेंशिया दिवस पर वक्ताओं ने कहा, डिमेंशिया-मनोभ्रंश एक ऐसा रोग हैं, जो उम्र वृद्धि के साथ होता है। हमारी भूलने की आदत बढ़ने लगती है। मनोभ्रंश एक मस्तिष्क रोग है, जो प्रायः याददाश्त की समस्याओं के साथ शुरू होता है l बाद में यह मस्तिष्क के और भागों को प्रभावित करने लगता है, इससे रोजमर्रा के कामों में कठिनाई ,संवाद में कठिनाई, निर्णय लेने की क्षमता या व्यक्तित्व में बदलाव होने लगते है। जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, पीड़ित लोग परिजनों पर ज्यादा निर्भर होने लगते हैं l
हालांकि 40 वर्ष की आयु में भी इसकी शुरुआत हो सकती है l 65 वर्ष की उम्र तक हर बीस में से एक व्यक्ति जबकि 80 वर्ष की उम्र तक हर पांच में से एक व्यक्ति को मनोभ्रंश हो सकता है l बतौर प्रमुख वक्ता मनोचिकित्सक और विभागाध्यक्ष डॉ. एस. नागेन्द्रन और मेडिसिन विभाग के प्रो. जिगर हरिया ने कहा, अल्ज़ाइमर डिमेंशिया का सबसे प्रमुख कारण है। उन्होंने बताया कि अल्ज़ाइमर रोग स्मृति और सोच में समस्या पैदा करता है। परिणामस्वरुप नईं जानकारियों को याद करने अथवा सीखने में कठिनाई होती हैं। पीड़ित व्यक्ति को हाल के घटनाक्रम और नियोजित मुलाकातें याद नहीं रहती है। वे उदास-उदास से रहते हैं। मनोभ्रंश से ग्रसित व्यक्ति की जब लोग सहायता करते हैं तो वे क्रोधित हो जाते हैं।
परिवारजन अक्सर यह शिकायत करते हैं कि रोगी का व्यक्तित्व बदल गया है। अब वह पहले की तरह व्यवहार नहीं कर रहा है। ऐसे में चिकित्सकों से मिलकर इस बीमारी की शीघ्र पहचान करवानी चाहिए। मेडिसिन विभाग के डॉ. हरिया ने मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल आदि रोगों के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया, अगर समय रहते इस रोग का निदान और इलाज कर लिया जाए तो रोगी को भूलने की बीमारी से बचाया जा सकता है। उन्होंने लोगों से निवेदन किया कि अगर उनके घर में ऐसे बुज़ुर्ग हैं, जो याददाश्त की बीमारी से जूझ रहे हैं तो शीघ्र से शीघ्र चिकित्सकों की सलाह लेनी चाहिए। इसके बाद एक लघु नाटिका दिखाई गयी, जिससे याददाश्त से ग्रसित लोगों की समस्याओं का वर्णन किया गया। इस फिल्म में उनके परिजनों के सामने जो कठिनाइयां आती हैं, उनका बखूबी प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म को देखकर मनोरोग विभाग की प्रोफेसर एवं वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. प्रेरणा गुप्ता बोलीं, जिस तरह हमारे माता-पिता ने हमारा ख्याल रखा है, उसी तरह से जब वे बूढ़े हो जाते हैं, तो हमें उनकी बीमारी को समझना चाहिए। जितना हो सके, उतनी उनकी मदद करनी चाहिए। उन पर गुस्सा नहीं करना चाहिए या उन्हें अपशब्द नहीं बोलने चाहिए। इस आयोजन में ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. प्रेरणा गुप्ता ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी- डॉ. मनीष त्यागी आदि ने याददाश्त सम्बन्धी समस्याओं से निबटने को व्यावहारिक सलाह भी दी। संचालन डॉ. सोनम सक्सेना और डॉ. प्रशांत सिंह ने किया । इस प्रोग्राम में डॉ. गजल गुप्ता, डॉ. शैली मित्तल, डॉ. अर्णव पुरी, डॉ. अकुल गुप्ता डॉ. अभिलक्ष्य, साहिल गोयल आदि मौजूद रहे। अंत में चिकित्सकों से लोगों ने सवाल भी पूछे और बीमारी से सम्बंधित शंकाओं का समाधान भी पूछा । गोष्ठी में मनोभ्रंश के प्रति जागरूकता के लिए पोस्टर्स भी लगे थे।