हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में सटीक हिमस्खलन पूर्वानुमान हेतु डीजीआरई ने विकसित की नयी तकनीकें
The government of India is aware of the threat of avalanches in the Himalayan regions, which pose risks to human life and property. Avalanches are a natural phenomenon/disaster that occurs from time to time in high-altitude areas such as Jammu & Kashmir, Himachal Pradesh, Uttarakhand, and Arunachal Pradesh. Predicting avalanches is crucial for ensuring the safety of lives in the snow-covered Himalayan regions. In this regard, the Defence Geoinformatics Research Establishment (DGRE) has developed several new technologies. These include Artificial Intelligence (AI) and Machine Learning (ML)-based avalanche forecasting, which help accurately predict the likelihood of avalanches in snow-covered areas. Additionally, the number of Automatic Weather Stations (AWS) and surface observatories in these regions has been increased to obtain precise weather information. Avalanche engineering control structures have also been developed to mitigate avalanche risks. Radar technology is being used to provide early warnings about avalanches, enabling timely precautions. Furthermore, Common Alert Protocol (CAP)-based online applications have been developed to disseminate avalanche warnings, ensuring that information reaches a larger number of people.
Edited by- Usha Rawat
सरकार हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन के खतरे से अवगत है जिससे मानव जीवन और संपत्ति को क्षति पहुंचती है। हिमस्खलन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में समय-समय पर होने वाली प्राकृतिक घटना/आपदा है। हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में जीवन की सुरक्षा के लिए हिमस्खलन का पूर्वानुमान करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में डीजीआरई (डिफेंस जियोइन्फॉर्मेटिक्स रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट) ने कई नई तकनीकों का विकास किया है। इनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित हिमस्खलन पूर्वानुमान प्रमुख है, जिससे बर्फीले क्षेत्रों में हिमस्खलन की संभावना का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। इसके अलावा, बर्फीले इलाकों में स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS) और सतह वेधशालाओं की संख्या बढ़ाकर मौसम की सटीक जानकारी प्राप्त की जाती है। हिमस्खलन इंजीनियरिंग नियंत्रण संरचनाएं भी विकसित की गई हैं, जो हिमस्खलन के खतरे को कम करने के लिए काम करती हैं। हिमस्खलन की प्रारंभिक चेतावनी देने के लिए रडार का उपयोग किया जा रहा है, जिससे समय रहते सावधानी बरती जा सके। इसके साथ ही, हिमस्खलन चेतावनी प्रसार के लिए कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल (CAP) आधारित ऑनलाइन ऐप्स विकसित किए गए हैं, जिससे अधिक से अधिक लोगों तक सूचना पहुंचाई जा सकती है। सुदूरवर्ती क्षेत्रों में उपग्रह आधारित संचार का उपयोग करके पूर्वानुमान को प्रसारित किया जाता है। बहु-स्तरीय सामग्री अवस्थाओं का सिमुलेशन भी किया जाता है, जिससे बर्फ के अलग-अलग प्रकार के क्षेत्रों का विश्लेषण किया जा सके। हिमस्खलन से बचाव के लिए कम भार वाली दृढ़ संरचनाएं भी बनाई गई हैं, जो हिमस्खलन की तीव्रता को कम कर सकती हैं। अंत में, उपग्रहों से प्राप्त रडार छवियों का उपयोग करके पृथ्वी की सतह के विरूपण का मापन और भूस्खलन चेतावनी प्रणाली स्थापित की गई है, जो हिमस्खलन के संभावित खतरों की पहचान करती है। इन सभी तकनीकों का उद्देश्य हिमस्खलन से संबंधित खतरों को समय रहते पहचानना और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
सरकार उच्च आशंका वाले क्षेत्रों में हिमस्खलन की पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान के लिए प्रभावी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करती है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) हिमस्खलन पूर्वानुमान देने वाली राष्ट्रीय एजेंसी है और वह रक्षा सैन्य बल के लिए दैनिक परिचालन हिमस्खलन पूर्वानुमान देता है। डीआरडीओ के तहत रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (डीजीआरई), चंडीगढ़ भी हिमस्खलन शमन प्रौद्योगिकी अध्ययन और विकास से संबंधित नोडल एजेंसी है। इसके कार्यप्रणाली में टोही हवाई और जमीनी सर्वेक्षण शामिल हैं जिनका इस्तेमाल हिमस्खलन आशंकित क्षेत्र मानचित्रण में किया जाता है। डीजीआरई उत्तर-पश्चिम हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में सेना और नागरिक आबादी को नियमित परिचालन हिमस्खलन चेतावनी जारी करता है। इसके अतिरिक्त भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) स्थितिजन्य जागरूकता के लिए छह घंटे का मौसम अपडेट देता है। पूर्वानुमान क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए हिमस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में स्वचालित मौसम स्टेशन और डॉपलर रडार स्थापित किए गए हैं। डीजीआरई ने 72 हिम मौसम विज्ञान वेधशालाएं स्थापित की हैं। इसके अलावा, 45 स्वचालित मौसम स्टेशन (एडब्ल्यूएस) कार्यरत हैं, 100 (एडब्ल्यूएस) के परीक्षण चल रहे हैं और 203 (एडब्ल्यूएस) की स्थापना की जा रही है। हिमस्खलन संबंधी डेटा नियमित रूप से 3 घंटे के अंतराल पर हिम वेधशालाओं से और 1 घंटे के अंतराल पर डीजीआरई में एडब्ल्यूएस से प्राप्त होता है। इस जानकारी और विशेषज्ञों की राय से कम से कम 24 घंटे पहले विभिन्न क्षेत्रों के लिए हिमस्खलन पूर्वानुमान तैयार किया जाता है। डीजीआरई ने स्वयं का हिमस्खलन मानचित्र भी विकसित किया है जिसमें समूचे हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन आशंकित क्षेत्रों को दर्शाया गया है। इसका उपयोग सैनिकों द्वारा बर्फीले क्षेत्रों में सुरक्षित गतिशीलता के लिए किया जा रहा है। आवश्यकता अनुरूप अभियान्त्रिकी समाधान भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
डीजीआरई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार देश में पहली बार उत्तरी सिक्किम में हिमस्खलन निगरानी रडार स्थापित किया गया है। आरंभ किए जाने के तीन सेकंड के भीतर यह हिमस्खलन का पता लगा सकती है।
हिमालयी बर्फीले क्षेत्रों में जीवन की सुरक्षा के लिए सटीक हिमस्खलन पूर्वानुमान हेतु डीजीआरई ने निम्नलिखित तकनीकें विकसित की हैं:
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस – कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग आधारित हिमस्खलन पूर्वानुमान।
- बर्फीले क्षेत्रों के लिए स्वचालित मौसम स्टेशन (एडब्ल्यूएस) और सतह वेधशालाओं की संख्या बढ़ाना।
- हिमस्खलन इंजीनियरिंग नियंत्रण संरचनाएं।
- हिमस्खलन संबंधी प्रारंभिक चेतावनी रडार का इस्तेमाल।
- हिमस्खलन चेतावनी प्रसार के लिए कॉमन अलर्ट प्रोटोकॉल (सीएपी) अनुरूप ऑनलाइन ऐप।
- सुदूरवर्ती क्षेत्रों में उपग्रह आधारित संचार के उपयोग द्वारा पूर्वानुमान प्रसार।
- बहु-स्तरीय सामग्री अवस्था सिमुलेशन।
- ढ़लान स्थिरता के लिए प्रक्रिया आधारित 3डी – स्नोपैक मॉडलिंग।
- हिमस्खलन से बचाव के लिए कम भार की दृढ संरचना।
- उपग्रहों से प्राप्त रडार छवियों के उपयोग द्वारा पृथ्वी की सतह के विरूपण मापन और मानचित्रण उपयोग आधारित भूस्खलन चेतावनी तकनीक इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक अपर्चर रडार स्थापित की गई है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के तहत राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ) अपने वैश्विक, क्षेत्रीय और सामूहिक पूर्वानुमान प्रणालियों से दैनिक आधार पर डीजीआरई को अधिक रिजॉल्यूशन (विवरण) वाला मौसम पूर्वानुमान देता है। डीजीआरई अपने पर्वतीय मौसम मॉडल और हिमस्खलन पूर्वानुमान मॉडल के परिचालन के लिए एनसीएमआरडब्ल्यूएफ मॉडल आउटपुट का उपयोग करता है। इसके अलावा शीतकालीन मौसम में एनसीएमआरडब्ल्यूएफ डीजीआरई के साथ युग्मित मॉडल के हिमपात पूर्वानुमान साझा करता है। डीजीआरई की ओर से दी जाने वाली हिमपात और कुल अवक्षेपण पूर्वानुमान हिमस्खलन पूर्वानुमान के लिए बहुत उपयोगी हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने राज्यों को हिमस्खलन से निपटने, तैयारी और शमन रणनीतियों की जानकारी के लिए जून 2009 में भूस्खलन और हिमस्खलन प्रबंधन पर दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें हिमस्खलन के प्रभाव कम करने और प्रारंभिक चेतावनी उपाय शामिल हैं।
कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (सीएपी) आधारित एकीकृत अलर्ट सिस्टम’ 454 करोड़ 65 लाख रुपये के परिव्यय से स्थापित की गई है। इसमें देश के सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों को आपदा संबंधी भू-लक्षित प्रारंभिक चेतावनियों/अलर्ट के प्रसार के लिए विभिन्न प्रसार माध्यमों जैसे एसएमएस, तटीय सायरन, सेल प्रसारण, इंटरनेट (आरएसएस फीड और ब्राउज़र अधिसूचना), गगन और नाविक सैटेलाइट रिसीवर आदि का उपयोग कर सभी चेतावनी एजेंसियों [भारतीय मौसम विभाग, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), डीजीआरई, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई)] के एकीकरण माध्यम से देने की व्यवस्था है।
प्रारंभिक चेतावनी और तैयारियों के अतिरिक्त सरकार हिमस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में बचाव कार्यों के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करती है। इनमें ड्रोन-आधारित इंटेलिजेंट बरीड (बर्फ में दबे हुए) ऑब्जेक्ट डिटेक्शन सिस्टम और हेलीकॉप्टरों की समय पर तैनाती जैसे उपाय शामिल हैं। ये आपात स्थितियों के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया और कुशल निकासी को सक्षम बनाती हैं। इसी प्रकार राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन नियंत्रण कक्षों की स्थापना, हिमस्खलन के दौरान बचाव कार्यों के दौरान चौबीसों घंटे निगरानी और समन्वय सुनिश्चित करती है।